मर्केल चीन समर्थक छवि से बाहर निकलना चाहती हैं, पर अतीत में किये कारनामे उनका पीछा नहीं छोड़ रहे

रंगे हाथों पकड़ी गयी मर्केल!

मर्केल

बीते हुए कल के बारे में एक बात बहुत मायने रखती है – आप उससे जितना भी पीछा छुड़ाना चाहो, वह वापस आकर आपको उतना ही अधिक सताता है। कुछ ऐसा ही हाल इस समय एंजेला मर्केल का है। अगले वर्ष के चुनाव के पश्चात वर्तमान जर्मनी की चांसलर अब सेवानिवृत होने को तैयार है, और ऐसे में वह जाते-जाते अपनी छवि मजबूत करके जाना चाहती थी, विशेषकर चीन के संदर्भ में, क्योंकि वह जाने से पहले अपनी छवि एक मजबूत चीन विरोधी नेता के तौर पर प्रस्तुत करना चाहती थी। लेकिन सच्चाई तो कुछ और ही बताती है।

इन दिनों जर्मनी चीन की गुंडई के विरुद्ध काफी मुखर रहा है। चाहे शिंजियांग और तिब्बत में हो रहा मानवाधिकार उल्लंघन हो, या फिर भारत का समर्थन करती हुई Indo-Pacific नीति का निर्धारण करना हो, जर्मनी की चांसलर अपनी चीन समर्थक छवि को सुधारने के लिए एड़ी-चोटी का ज़ोर लगा रही है। लेकिन Axios की एक रिपोर्ट की माने तो मर्केल द्वारा इमेज मेकओवर का यह प्रयास सफल तो शायद ही होगा।

दरअसल, इस रिपोर्ट के अनुसार एक उच्च स्तरीय जर्मन अफसर ने 2018 में एक अहम रिपोर्ट को दबाकर रखा, जो जर्मनी में चीन के बढ़ते प्रभाव को रेखांकित कर रहा था। यह रिपोर्ट इसलिए दबाई गई क्योंकि इस बात का डर था कि कहीं जर्मनी के साथ चीन अपने व्यापारिक संबंध न तोड़ ले। यह अंदेशा पूरी तरह से गलत भी नहीं है, क्योंकि जून 2020 से पहले जर्मनी ने चीन के विरुद्ध आक्रामक रुख अपनाना तो दूर की बात, चीन की जी हुज़ूरी करने में भी कोई कसर नहीं छोड़ी थी।

परंतु बात यहीं पर खत्म नहीं होती। Axios के अनुसार मर्केल ने भी इस रिपोर्ट को देखा, लेकिन इस रिपोर्ट पर कोई एक्शन नहीं लिया। दो पूर्व अमेरिकी इंटेलिजेंस अफसरों के अनुसार इस रिपोर्ट में चीनी सरकार द्वारा जर्मनी पर हर तरह से प्रभाव डालने के प्रयासों पर बात की गयी थी। ये रिपोर्ट जर्मन उद्योग और चीनी सरकार के बीच के घनिष्ठ सम्बन्धों की भी आलोचना कर रहा था। ऐसे में उच्चाधिकारियों द्वारा इस रिपोर्ट को दबाने का तुक समझ में नहीं आता।

अब ऐसे समय में जर्मन सरकार की स्थिति ऐसी हो चुकी है कि अब उनसे न निगलते बन रहा है और न ही उगलते। Axios द्वारा सवाल पूछे जाने पर जिस प्रकार जर्मनी की फेडरल इंटेलिजेंस सर्विस ने ढुलमुल जवाब दिया, उससे एंजेला मर्केल के लिए मुसीबतें कम होने के बजाए और अधिक बढ़ती हुई दिखाई दे रही है, क्योंकि प्रश्न किया जाना तो वाजिब है – आखिर किस लिए जर्मनी के हितों के साथ समझौता कर जर्मन प्रशासन चीन के साथ घनिष्ठता बढ़ाए जा रही थी?

आज भले ही एंजेला मर्केल धुर चीन विरोधी होने का दावा कर रही है, पर उनका पुराना व्यवहार अब भी उन्हें चैन से नहीं बैठने दे रहा है। अब सारा ध्यान इस बात पर केन्द्रित है कि आखिर चीन का प्रभाव जर्मनी पर किस हद तक था?

यूरोप चीन संबंध पर विशेषज्ञ माने जाने वाले रोडियम ग्रुप के सदस्य Noah Barkin ने कहा, “चीन को लेकर जर्मनी में काफी हद तक Self Censorship रही है। मर्केल की नीति यही है कि चीन की आलोचना खुलेआम नहीं, बल्कि बंद कमरों में होनी चाहिए।”

इसके अलावा समय-समय पर जर्मनी के उच्चाधिकारियों ने अपने चीन प्रेम को जगजाहिर करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। जर्मनी के आर्थिक मंत्री पीटर आल्टमेयर ने यहाँ तक कहा कि पश्चिमी सभ्यता के आर्थिक रिश्ते इस बात पर निर्भर नहीं है कि वे कितने लोकतान्त्रिक हैं। लेकिन जब चीन ने जर्मनी के हितों पर ही हमला करना शुरू किया, तो जर्मनी को अंतत: अपनी नीतियों में बदलाव लाना ही पड़ा।

सच्चाई तो यही है कि अब एंजेला मर्केल अपनी छवि सुधारने के चाहे जितने प्रयास करे, परंतु उनका बीता हुआ कल उनका पीछा नहीं छोड़ने वाला, और अपने 16 वर्षीय कार्यकाल को एक सुनहरे तरीके से खत्म करना सदैव उनके लिए चुनौती ही रहेगी।

 

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