वैश्विक स्तर पर चीन की मुश्किलों में लगातार होते इजाफे के बीच अब नई खबर उसे एक औऱ झटका देने वाली है। दरअसल, जर्मनी की चांसलर एंजेला मर्केल जो हमेशा चीन के पक्ष में बयान देती रही थीं, अब चीन के लिए उन्होंने अपना रुख सख्त करते हुए कहा है कि अगर चीन अपने बाजार को यूरोप के लिए नहीं खोलता है तो फिर चीन के लिए भी यूरोप के बाजार सीमित कर दिए जाएंगे। गौरतलब है कि पिछले कुछ वक्त से एंजेला मर्केल चीन के खिलाफ बोलते हुए अपनी चीन के प्रति विरोध की नीति दिखा रही है।
ये मुख्य बात है कि एंजेला मर्केल पिछले महीने ही इंडो-पेसेफिक क्षेत्र को लेकर अपनी नीतियां जारी कर चुकी हैं जिसमें चीन को ज्यादा स्वीकृति नहीं दी गई है। यही नहीं, कोरोना वायरस से लेकर चीन में मानवाधिकारों तक… मर्केल ने चीन की हर कमजोर नब्ज पर हमला बोलना शुरु कर दिया था। ये महत्वपूर्ण बात है कि अगले वर्ष होने वाले फेडरल चुनावों के बाद मर्केल को सन्यास की ओर जाना ही पड़ेगा। उनकी छवि हमेशा ही चीन समर्थक के तौर पर रही है औऱ अब वो उसे बदलने के लिए लगातार खिलाफत के बयान दे रही हैं जिससे उनके सन्यास में जाने के पहले उनकी छवि चीन विरोधी दिख सके।
एससीएमपी के अनुसार एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में मर्केल के हवाले से कहा गया, यदि कुछ क्षेत्रों के लिए चीन की ओर से बाजार खोलने की कोई बात नहीं होती है तो यकीनन यूरोपियन यूनियन द्वारा भी यहां के बाजार में चीन को प्रतिबंधित किया जाएगा। यूरोपियन यूनियन के दो दिवसीय सम्मेलन में मर्केल ने कहा, चीन के साथ हम परस्पर निवेश की स्थितियां चाहते हैं। जर्मन चांसलर का ये बदलता रवैया चीन के लिए एक और नई मुसीबत से कम नहीं है क्योंकि अभी तक यूरोपियन यूनियन में अकेले उनका ही साथ चीन को मिला हुआ था ।
गौरतलब है कि चीन के प्रति अमेरिका की नीति के खिलाफ जाकर जर्मनी चीन के साथ आर्थिक हितों को भूलना नहीं चाहता था, उस वक्त चीन को खुशी थी कि अमेरिका यूरोपियन यूनियन को चीन के खिलाफ नहीं कर पा रहा है। उस वक्त चीन के मुखपत्र ग्लोबल टाइम्स ने बताया था, अमेरिका चीन के खिलाफ एजेंडा चलाने में नाकाम रहा है। लेकिन अब मर्केल जानती हैं कि अब इस बदले वैश्विक माहौल में चीन का समर्थन करना जर्मनी के लिए भी खतरा ही होगा। इसीलिए अब वो चीन के खिलाफ बोलने में जरा भी नहीं हिचक रही हैं। मर्केल जानती हैं कि जर्मनी को आने वाले समय में चीन विरोधी सख्त नीति पर चलना होगा।
मर्केल का कद जर्मनी की की राजनीति में काफी बड़ा रहा है। ऐसे में वो नही चाहती कि जब वो रिटायर हो तो इतिहास में उनका नाम एक चीन समर्थक नेता के रूप में लिया जाए और यही कारण है कि वो लगातार चीन के विरोध में बयान दे रही है। दूसरी ओर चीन के साथ व्यापार मजबूत होने के बावजूद जर्मनी को नुकसान ही हो रहा है जिसके चलते चीन के साथ व्यापार को लेकर उन्होंने सख्त रुख अपना लिया है।
मर्केल ये बात भी अच्छे से जानती है कि चीन को लेकर उनके उत्तराधिकारियों का रवैया भी विरोध वाला ही होगा जिसके चलते वो उनके लिए जाने से पहले ही एक अच्छी-खासी चीन विरोध की जमीन तैयार कर रही हैं जो ये भी दिखाता है कि चीन के खिलाफ अपना रुख दिखाना न केवल उनकी जरूरत है बल्कि एक मजबूरी भी है।