Nagorno-Karabakh मामला: पुतिन ने एर्दोगन को हरा दिया है, वो भी बिना कोई गोली चलाये

“बब्बर शेर” एर्दोगन पुतिन के सामने “म्याऊँ-म्याऊँ” करने लगता है- फिर यही हुआ

पुतिन

पुतिन ने इस बार काफी बड़ी बाज़ी मारी है। Nagorno Karabakh की हिंसक झड़प को लेकर अर्मेनिया और अज़रबैजान दोनों ही संघर्ष विराम के प्रस्ताव पर सहमत हुए हैं, जो आज से लागू होगा। इस प्रस्ताव की अध्यक्षता रूस के विदेश मंत्री सेर्जेई लावरोव ने की, जिनकी देखरेख में 10 घंटों की वार्तालाप के पश्चात एक आम बात पर सहमति बन गई। साफ शब्दों में कहा तो बिना एक गोली चलाये रूस ने तुर्की के घमंड को चकनाचूर कर दिया।

काफी लंबे वार्तालाप के बाद आखिरकार संघर्षविराम पर सहमति हो गई। लवरोव ने बयान को पढ़ते हुए बताया, “10 अक्तूबर को 12 बजे से मानवीय आधार पर संघर्षविराम की घोषणा की जाती है।” इससे पहले क्रेमलिन ने अपने बयान में कहा था, “अज़रबैजान के राष्ट्रपति और अर्मेनिया के प्रधानमंत्री से हुई निरंतर वार्तालाप के पश्चात रूसी महासंघ के राष्ट्रपति ने Nagorno Karabakh में हो रही हिंसक झड़प पर रोक लगाने की बात की है।” इससे स्पष्ट पता चलता है की आज भी कैसे यूरोप और मध्य एशिया में रूस की तूती बोलती है।

कहने को संघर्षविराम अस्थायी है, परंतु इस दौरान कूटनीति के जरिये स्थिति को सुलझाने के लिए पर्याप्त समय अवश्य मिला है। इस दिशा में दोनों देशों के विदेश मंत्रियों के बीच रूस द्वारा प्रायोजित बैठक न केवल दोनों देशों के बीच सामंजस्य बैठा रहा है, अपितु ये भी सुनिश्चित करा रहा है कि तुर्की का प्रभाव अब अज़रबैजान पर पहले जैसा नहीं रहा है।

इसी बीच काफी मंत्रणा के बाद रूस, फ्रांस और अमेरिका के अफसरों ने इस मुद्दे पर लगभग संयुक्त रूप से अपने बयान जारी किए, जो विचारधारा और समस्या को सुलझाने की दिशा में काफी अहम और एक समान हे। ये अपने आप में इसलिए भी अहम है क्योंकि इससे एर्दोगन की यह धारणा टूटेगी कि वही इस क्षेत्र का निर्विरोध बादशाह है।

जिस प्रकार से तुर्की के तानाशाह एर्दोगन की खतरनाक विदेश नीतियों को पनपने से पहले ही रूस, फ्रांस और अमेरिका ने कुचला, उसने एक तरह से बिना एक चांटा रसीदे तुर्की को दिन में तारे दिखा दिये हैं। अब एर्दोगन को समझ जाना चाहिए कि हर बार उस की नहीं चलेगी।

अज़रबैजान भी इस समय समझ गया है कि तुर्की दो नावों पर पैर रख रहा है और इस पूरी लड़ाई के अंत में तुर्की के साथ-साथ उसका नुकसान भी होना तय है। जिस प्रकार से विश्व के कई शक्तिशाली देश तुर्की के पीछे पड़ चुके हैं, उसके अनुसार अज़रबैजान की लंका लगनी तय थी, और ऐसे में अपने आप को बचाने के लिए ही उसने शांति प्रस्ताव पर सहमति जताई थी।

सच कहें तो इस बार हरियाणवी लहजे में पुतिन ने लट्ठ गाड़ दिया है। बिना एक गोली चलाये और फ्रांस और अमेरिका जैसे देशों को लूप में रखते हुए रूस ने अज़रबैजान और अर्मेनिया के बीच की हिंसक झड़प को एक युद्ध में परिवर्तित होने से पहले ही उसपर विराम लगा दिया है। एर्दोगन को उसकी औकात दिखाते हुए रूस ने ये जताया है कि कैसे आज भी मध्य एशिया, विशेषकर यूरेशिया में उसकी तूती बोलती है। एर्दोगन ने निस्संदेह पुतिन को चुनौती दी, लेकिन पुतिन ने एर्दोगन को कोई भाव न देकर ही उसे बुरी तरह धूल चटाई है।

 

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