नेपाल ने भारत के साथ मिलकर चीन के खिलाफ अपनी लड़ाई शुरू कर दी है

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कहते हैं सुबह का भूला अगर शाम को वापस घर लौट आए तो उसे भूला नहीं कहते। नेपाल के साथ अब यही हो रहा है। कल तक अयोध्या को अपना बताने वाली, कोरोना के लिए भारत को जिम्मेदार ठहराने वाली और भारत के कालापानी और लिंपियाधुरा पर अपना दावा करने वाली नेपाली सरकार अब भारत के प्रति नर्म और चीन के प्रति सख्त रुख दिखाने लगी है, या कहिए कि अब उसने भारत के साथ मिलकर चीन के खिलाफ युद्ध का ऐलान कर दिया है।

यकीन नहीं आता तो यह सुनिए- अभी हुमला में नेपाल ने नेपाल-तिब्बत बॉर्डर पर कई आउटपोस्ट तैयार किए हैं, जो हर पल चीनी गतिविधियों पर नज़र रखेंगे। हुमला वही ज़िला है जहां कुछ दिनों पहले चीनी अतिक्रमण का मुआयना करने गए नेपाली दल पर चीन ने tear gas के गोलों से हमला कर दिया था। अब लगता है- चीन की ऐसी “दोस्ती” से नेपाल का पेट भर गया है।

सिर्फ इतना ही नहीं, हाल ही में ये खबर आई कि भारत के थल सेना अध्यक्ष जनरल मनोज मुकुन्द नरवणे नेपाल के दौरे पर जाने को तैयार है। यूं तो यह दौरा फरवरी में ही स्वीकृत हो चुका था, परंतु वुहान वायरस के बढ़ते प्रकोप के कारण इसे रद्द करना पड़ा था। लेकिन अब ऐसी कोई समस्या नहीं है, और जनरल नरवणे नेपाल दौरे के लिए बिलकुल तैयार हैं। इस दौरे में वे न केवल अपने नेपाली समकक्ष से मिलेंगे, अपितु उन्हें राष्ट्रपति विद्या देवी भण्डारी द्वारा नेपाली सेना प्रमुख के मानद पद [Honorary Rank] से भी सुशोभित किया जाएगा।

पिछले कुछ हफ्तों में नेपाल सरकार ने ऐसे ऐसे निर्णय लिए हैं, जो स्पष्ट करते हैं कि उनका भरोसा चीन पर से उठता जा रहा है। यदि सब कुछ सही रहा, तो संभवत चीन के अतिक्रमण के विरुद्ध नेपाल भारत की सहायता भी ले सकता है। नेपाल के PM KP शर्मा ओली पहले ही अपनी कैबिनेट स भारत विरोधी मंत्रियों को बाहर का रास्ता दिखाना शुरू कर चुके हैं। हाल ही में प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने रक्षा मंत्रालय की कमान उप प्रधानमंत्री ईश्वर पोखरेल से लेकर अपने पास रख ली है। ईश्वर पोखरेल वही नेता हैं जिन्होंने भारत के साथ सारी तनातनी शुरू की थी।

हिन्दुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक नेपाल (Nepal) के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने अपने रक्षा मंत्री ईश्वर पोखरेल को कैबिनेट विस्तार के दौरान हटा दिया है, जिन्हें चीन का समर्थक और भारत का धुर विरोधी माना जाता है। इसी वर्ष मई में जब नेपाल और भारत के बीच कालापानी और लिपुलेख क्षेत्र को लेकर विवाद हुआ था तो जनरल नरवणे ने नेपाल (Nepal) के रवैए की आलोचना करते हुए कहा था कि नेपाल के इस फैसले से न केवल दोनों देशों के बीच रिश्ते खराब हुए हैं, बल्कि उन गोरखा सैनिकों और उनके परिवारों को भी निराशा हुई है जिन्होंने भारत की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति दी थी। इस पूरे मामले में नेपाली रक्षामंत्री ने बेहद ही असंवेदनशील और भद्दे बयान दिए थे जो कि दोनों देशों के रिश्तों को नुकसान पहुंचा रहे थे।

ऐसे में एक ओर जनरल नरवणे के दौरे से पहले नेपाल के बड़बोले रक्षा मंत्री को पद से हटाना, और उसके अलावा नेपाल-तिब्बत बॉर्डर पर चौकियाँ तैनात करना इस बात का संकेत देता है कि अब नेपाल चीन की जी हुज़ूरी करके अपने आत्मसम्मान से कोई समझौता नहीं करेगा, और इस काम में भारत एक सच्चे पड़ोसी की तरह उसका जमकर साथ देगा।

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