बिहार विधानसभा चुनाव 2015 के बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने राज्य में शराब की बिक्री पर रोक लगा दी थी, जिसके बाद उन्हें खूब तारीफें मिलीं थी, लेकिन 2020 आते-आते अब ये एक नया ही मुद्दा बन गया है। शराबबंदी के कानून को लागू करने के मामले में पूरा विपक्ष नीतीश की लानत-मलानत कर रहा है। शराब की कालाबाजारी और तस्करी के बढ़ते मामलों ने नीतीश के लिए ही एक नई चुनौती पैदा कर दी है, जिसको अब उनके विरोधियों ने एक मुख्य मुद्दा बना दिया है।
हाल ही में नीतीश कुमार और एनडीए से बगावत करने वाले लोकजनशक्ति पार्टी के अध्यक्ष चिराग पासवान ने बिहार में शराब बंदी को लेकर नीतीश कुमार पर हमला बोलते हुए कहा कि बिहार में शराबबंदी के नाम पर धोखा हो रहा है। यहां के लोग शराब की तस्करी कर रहे हैं। रोजगार के अभाव में युवा इस तरफ ज्यादा बढ़ रहा है। नीतीश को इसके बारे पता है पर वो इस पर कुछ नहीं बोल रहे हैं, जो कि बिहार की महिलाओं के साथ किए गए एक धोखे की तरह ही है।
केवल चिराग ही नहीं बिहार विधानसभा चुनाव के घोषणापत्र में कांग्रेस ने भी शराबबंदी के कानून की समीक्षा करने की बात कही है। इसको लेकर कांग्रेस महासचिव और बिहार चुनाव में पूरी तरह सक्रिय रणदीप सिंह सुरजेवाला ने कहा, हम बिहार में शराब बंदी पर बने कानून की समीक्षा करेंगे, क्योंकि नीतीश सरकार में शराबबंदी के बावजूद शराब धड़ल्ले से बिक रही है और एक समानांतर इंडस्ट्री चल रही है जो लोगों को तस्करी की ओर आगे बढ़ा रही है।
कांग्रेस का कहना है कि बिहार में शराब बंदी के कानून के उल्लंघन को लेकर लगभग 3 लाख लोग गिरफ्तार हो चुके हैं। इनमें से अधिकतर लोग बेगुनाह है। कांग्रेस का दावा है कि अगर वो सत्ता में आती है तो वो इस कानून की समीक्षा करेगी, और निर्दोष लोगों को रिहा कराएगी।
गौरतलब है कि हाल में हमने अपनी एक रिपोर्ट में बताया था कि एनडीए के ही नेता जीतन राम मांझी किस तरह से शराब बंदी को लेकर सरकार की लाइन से हटकर कानून की समीक्षा की बात कहते नजर आए थे। उन्होंने इसको लेकर कहा था कि दोबारा सत्ता में आने पर नीतीश कुमार से इस कानून की समीक्षा करने की मांग पुरजोर तरीके से उठाएंगे। मांझी ने भी इस बात का इशारा किया था कि बिहार में शराब की तस्करी और एक समानांतर कालाबाजारी की अर्थव्यवस्था चल रही है जो कि बेहद ही खतरनाक है।
बिहार में शराबबंदी के नाम पर तारीफें हो रहीं हैं लेकिन इसके इतर लोगों को नुकसान भी हो रहा है। शराब न मिल पाने की स्थिति में ये लोग अब अन्य तरह के नशीले पदार्थों का सेवन करने लगे हैं। न्यूज 18 की रिपोर्ट में पटना के ही सत्यम सिंह (बदला हुआ नाम) ने इसकी पुष्टि की है जो एक फोटोग्राफर थे, लेकिन फिर वो धीरे-धीरे नशीले पदार्थों के आदी हो गए। ये बेहद ही आश्चर्यजनक बात है कि शराबबंदी के बाद राज्य में ड्रग्स की खपत ज्यादा हो गई है।
शराब न मिलने की स्थिति में ये लोग अब अलग-अलग तरीके के नशीले पदार्थों का सेवन करने लगे हैं। शराब के कारण महिलाओं पर होने वाले घरेलू हिंसा के मामलों में तो कमी आई है लेकिन इसके साथ ही दिक्कत इस बात की भी है कि इन्हीं महिलाओं के अपने बच्चे और पति ड्रग्स के नशे की जद में हैं जो कि इनके लिए शराब से भी बड़ा संकट है। इसको लेकर आंकड़े भी बताते हैं कि 2015 से 2020 के बीच में करीब 2,500 केस नारकोटिक्स विभाग ने दर्ज किए हैं।
न्यायिक प्रक्रिया की बात करें तो पटना हाइकोर्ट में राज्य के शराब बंदी के कानून का उल्लंघन करने वालों के केसों की संख्या करीब ढाई लाख से ज्यादा हो गई है। इनके सारे मामले कोर्ट में लंबित हैं। कोर्ट के पास इसको लेकर सुनवाई करने के लिए कोई अधारभूत व्यवस्था ही नहीं है, क्योंकि जब शराब बंदी की गई तो कोर्ट को इसके लिए तैयार ही नहीं किया गया, और उसकी विफलता आज सामने है। इसी के चलते राज्य सरकार को हाईकोर्ट द्वारा कई बार फटकार भी लगाई जा चुकी है।
बिहार में शराबबंदी के बाद से माफियाओं का युग शुरू हो गया है। ये लोग बिहार के पड़ोसी राज्यों उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पश्चिम बंगाल और मध्यप्रदेश से थोक में शराब की तस्करी करते हैं और दोगुने दामों में बेचते हैं। इससे इन प्रदेशों और तस्करों का तो फायदा होता है, लेकिन शराब के आदती लोग और उनके परिवारों का अधिक नुकसान होता है। ये गरीब लोग दोगुने दामों में शराब खरीद कर न केवल अपने घर पर आर्थिक बोझ डालते हैं बल्कि सरकार को भी नुकसान ही होता है क्योंकि उसके राज्य से जुटाया गया धन, रेवेन्यू के रूप में दूसरे राज्यों में चला जाता है। शराबबंदी के कारण पहले ही राज्य के रेवेन्यू में प्रतिवर्ष करीब 15000 करोड़ की कमी आ चुकी है जिससे बिहार और अधिक पिछड़ता जा रहा है।
इसके अलावा ये भी सामने आया है कि वो युवा जो रोजगार की तलाश में इधर-उधर फिर रहे थे, उन्होंने शराब तस्करी की ओर अपने कदम बढ़ा दिए हैं जिससे उन्हें आमदनी तो हो रही है लेकिन वो अपराध के दल-दल में धंसते जा रहे हैं।
बिहार में शराबबंदी को लेकर ये सभी ऐसे मुख्य बिंदु हैं जो नीतीश कुमार के लिए नुकसानदायक साबित हो सकते हैं, वैसे भी अब शराबबंदी के कानून की लचर व्यवस्था को विपक्ष मुद्दा बना चुका है। ऐसे में बिहार के लिए लिया गया ये अच्छा फैसला सही से लागू न हो पाने के कारण नीतीश के लिए ही गले की हड्डी साबित हो सकता है।