शक्तिहीन, हताश और संभवतः बेदिमाग, नजरबंद से बाहर आए मुफ़्ती और अब्दुल्ला के हसीन सपने

कश्मीर में आजकल बस सपनों का ही दौर चल रहा है..

जम्मू-कश्मीर

राजनीति में प्रासंगिकता रीढ़ की हड्डी की तरह होती है, अगर प्रासंगिकता है तो राजनीति जीवित है और जब वही समाप्त तो राजनीति में नेता का वजूद समाप्त। जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटाये जाने के बाद वहाँ अलगाववाद से अपनी राजनीति चमकाने वालों के सपनों की ऐसी कमर टूटी है कि अब वे सभी मिल कर एक हो चुके हैं और पुनः अनुच्छेद 370 को बहाल करवाने की योजना बना रहे हैं। खैर सपना तो मैं भी अमेरिका का राष्ट्रपति बनने का देख सकता हूँ।

दरअसल, कुछ दिनों पहले महबूबा मुफ़्ती को रिहा किया गया था, उसके बाद से ही जम्मू कश्मीर की राजनीति में रसूख रखने वाले एकजुट होना शुरू हुए। पहले अब्दुल्ला परिवार के फारुख और उमर ने जा कर उनका हाल-चाल लिया और अब एक नए गठबंधन की घोषणा कर दी है। रिपोर्ट के अनुसार अब जम्मू-कश्मीर के सभी क्षेत्रीय दल एक साथ आ गये हैं और इनकी योजना जम्मू कश्मीर में फिर से अनुच्छेद 370 को बहाल करवाने की है। इस गठबंधन को “People’s Alliance for Gupkar Declaration” का नाम दिया गया है तथा इसमें 6 पार्टियां है।

आज जम्मू और कश्मीर नेशनल कॉन्फ्रेंस के संरक्षक फारूक अब्दुल्ला के निवास पर आयोजित बैठक में गठबंधन की औपचारिक घोषणा की गई।  फारूख अब्दुल्ला ने गुरुवार को ऐलान करते हुए कहा कि गठबंधन का मकसद जम्मू-कश्मीर में पांच अगस्त, 2019 से पहले की स्थिति बहाल करना है, यानी अनुच्छेद 370 की वापसी।

पिछले साल पीडीपी, नेशनल कान्फ्रेंस, कांग्रेस, माकपा, जम्मू-कश्मीर पीपल्स कान्फ्रेंस, पैंथर्स पार्टी और जम्मू-कश्मीर अवामी नेशनल कान्फ्रेंस समेत कई पार्टियों ने गुपकार डिक्लेरेशन पर दस्तखत किए थे। आज की बैठक में अब्दुल्ला, पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ्ती, पीपुल्स कॉन्फ्रेंस के चेयरमैन सज्जाद लोन, जेके पीपुल्स मूवमेंट के जावेद मीर और सीपीएम के यूसुफ तारिगामी ने भाग लिया। फारूक अब्दुल्ला ने कहा कि सभी साझेदार “जम्मू-कश्मीर और लद्दाख से जो छीन लिया गया उसकी बहाली के लिए संघर्ष करने के लिए सहमत हुए हैं।’’

माना जा रहा है कि विधानसभा वाले केंद्र शासित प्रदेश बन चुके जम्मू-कश्मीर में अगर चुनाव का ऐलान होता है, तो ये सभी दल मिलकर चुनाव लड़ेंगे।

यह गठबंधन हास्यास्पद भी नहीं है कि व्यक्ति थोड़ा हंस ले। अभी-अभी कस्टडी से छूट कर आने के तुरंत बाद इस तरह के सपने देखने के लिए किसी राजनेता में नेतागिरी के अलग प्रकार की आवश्यकता होती है। यह कुछ और नहीं बल्कि अपनी खोई हुई प्रासंगिकता को बचाने की एक कोशिश है जो उमर अब्दुल्ला और मुफ़्ती परिवार कोशिश कर रहा है।

अनुच्छेद 370 के रहने की वजह से इन नेताओं ने अलगाववाद की राजनीति कर जनता को खूब बेवकूफ बनाया और सत्ता में बैठ कर उन्हें नियंत्रित करते रहे। यही नहीं, अपने फायदे के लिए ये नेता ने जम्मू कश्मीर के युवाओं को आतंक की आग में धकेलने से भी पीछे नहीं हटे। अब्दुल्ला परिवार ने कश्मीर की जनता को लूटा और कश्मीर के विकास के बजाय अपने व्यक्तिगत विकास पर ज्यादा जोर दिया और विदेशों में धन जमा करते रहे। कश्मीर में अपना राज़ स्थापित करने के लिए ‘इंस्ट्रूमेंट ऑफ़ मर्जर’ के स्थान पर शेख अब्दुल्ला ने अनुच्छेद 370 संविधान में शामिल करवाया था ताकि उस राज्य पर भारत के केंद्र सरकार की पकड़ न रहे और उनका और उनकी आने वाली पीढ़ी आराम से राज कर सके। परंतु 5 अगस्त 2019 के बाद न तो अनुच्छेद 370 रहा और न बची इन अलगवादी नेताओं की प्रासंगिकता। अब सभी मिल कर अपनी प्रासंगिकता बनाये रखने के लिए इस तरह से नए-नए तौर-तरीके ढूंढ रहे हैं।

हालांकि, सपने देखना अच्छी बात है। इस लिए TFI के Founder अतुल मिश्रा ने व्यंग करते हुए ट्वीट किया कि, “अब अगर अनुच्छेद 370 वापस आ गया तो लद्दाख J&K का भाग हो जाएगा,  जम्मू-कश्मीर पुनः एक राज्य बन घोषित हो जाएगा, मुफ्ती और अब्दुल्ला को 5 साल की परमानेंट मुख्यमंत्री बना दिया जाएगा। इमरान को दोपहर के भोजन के लिए आमंत्रित किया जाएगा और पथराव को औपचारिक नौकरी का दर्जा मिलेगा और मैं अगला POTUS यानि अमेरिका का राष्ट्रपति बन जाऊंगा।’’

इन सभी पार्टियों का राजनीतिक अस्तित्व पिछले वर्ष 5 अगस्त को अनुच्छेद 370 के साथ समाप्त कर दिया गया है। अब इन्हें न तो जनता का साथ मिलेगा हैं और न सत्ता। ये अब बस ख्याली बिरियानी ही पका सकते हैं।

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