हाल ही में भारत के इन्फ्रास्ट्रक्चर को मजबूती प्रदान करते हुए केंद्र सरकार ने अटल सुरंग को देश को समर्पित किया है। दुनिया में सबसे लंबी राजमार्ग सुरंग ‘अटल सुरंग’ का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा आज आधिकारिक रूप से उद्धाटन हुआ है। लगभग 10 किलोमीटर लंबी यह सुरंग मनाली को वर्ष भर लाहौल स्पीति घाटी से जोड़े रखेगी। इससे यह भी सिद्ध होता है कि पीएम मोदी भारत के लिए विरासत में ऐसा इन्फ्रास्ट्रक्चर छोड़ना चाहते हैं, जिसके सहारे भारत पुनः विश्वगुरु बनने के मार्ग पर आगे बढ़ सके।
सामरिक रूप से महत्वपूर्ण और सभी मौसम में खुली रहने वाली अटल सुरंग का प्रधानंमत्री नरेंद्र मोदी ने रोहतांग पास में उद्घाटन किया। प्रधानमंत्री मोदी ‘अटल सुरंग’ के जरिए लाहौल-स्पीति जिले की लाहौल घाटी में उसके उत्तरी पोर्टल तक भी गए और मनाली में दक्षिणी पोर्टल के लिए हिमाचल सड़क परिवहन निगम (एवआरटीसी) की एक बस को हरी झंडी दी। उद्घाट्न के समय नरेंद्र मोदी ने ये कहा, “….अब देश में नयी सोच के साथ काम हो रहा है। सबके साथ से, सबके विश्वास से, सबका विकास हो रहा है। अब योजनाएं इस आधार पर नहीं बनतीं कि कहां कितने वोट हैं। अब प्रयास इस बात का है कि कोई भारतीय छूट ना जाये, पीछे ना रह जाये। इस बदलाव का एक बहुत बड़ा उदाहरण लाहौल- स्पीति है।”
पिछले छह वर्षों में मोदी सरकार की कार्यशैली का एक प्रमुख हिस्सा रहा है मजबूत इन्फ्रास्ट्रक्चर को बढ़ावा देना। चाहे सड़क हो, रेलवे हो, हवाई मार्ग हो या फिर जलमार्ग, पिछले छह वर्षों में इन्फ्रास्ट्रक्चर के क्षेत्र में भारत ने दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की की है। इसके अलावा तेल की गिरती कीमतों के कारण भारत को इन्फ्रास्ट्रक्चर में निवेश बढ़ाने में आसानी हुई है, क्योंकि अब तेल के आयात पर कम पैसा जो खर्च होगा।
उदाहरण के लिए अटल सुरंग को ही देख लीजिये। अब इस सुरंग के निर्माण से हर दिन लगभग 3000 गाड़ियाँ इस सुरंग के जरिये आ जा सकी। इससे सिर्फ नागरिकों को ही नहीं, बल्कि भारतीय सेना को भी संकट के समय तैनाती के लिए पहुँचने में आसानी होगी। इसी पर प्रकाश डालते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने अपने भाषण में कहा, “अटल सुरंग भारत के बॉर्डर इन्फ्रास्ट्रक्चर को और सशक्त बनाएगा। यह विश्व स्तरीय बॉर्डर कनैक्टिविटी का एक अनोखा उदाहरण है। बॉर्डर इन्फ्रास्ट्रक्चर को सुधारने की मांग बहुत बार रखी गई, लेकिन कभी ये योजना के स्तर पर फंस गई, तो कभी ये बीच में ही अटक गई।”
दशकों तक भारत को एलएसी के पास इन्फ्रास्ट्रक्चर के अभाव की समस्या से जूझना पड़ रहा था, जिसके कारण जिसके कारण रणनीतिक रूप से चीन लाभकारी स्थिति में रहता था। परंतु पिछले छह वर्षों में स्थिति काफी बदल चुकी है। अरुणाचल प्रदेश से लेके लद्दाख तक बॉर्डर इन्फ्रास्ट्रक्चर में भारत ने ज़बरदस्त सुधार किया है, जिसके कारण चीन चाहकर भी भारत पर दबाव नहीं बढ़ा पा रहा –
वहीं एनडीए सरकार की तुलना में पूर्ववर्ती सरकारों, विशेषकर यूपीए सरकार का रवैया काफी उदासीन रहा है। इन्फ्रास्ट्रक्चर पर खर्चे के मामले में यूपीए की कंजूसी का अंदाज़ा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि मोदी सरकार के पहले वर्ष में इनफ्रास्ट्रक्चर पर खर्चा मात्र 1.81 लाख करोड़ रुपये थे। हालांकि, मोदी सरकार के आने से इस दिशा में काफी बदलाव हुआ, और 2018–19 में इन्फ्रास्ट्रक्चर पर खर्चा अब 5.97 लाख करोड़ रुपये तक बढ़ चुका था।
अब अगले पाँच वर्षों में मोदी सरकार ने संकल्प लिया है कि रोड इन्फ्रास्ट्रक्चर को बढ़ावा देने के लिए 102 ट्रिलियन रुपये तक खर्च करने के लिए तैयार है। मंगलवार को इसी दिशा में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने नेशनल इन्फ्रास्ट्रक्चर पाइपलाइन ने 18 राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों में 23 ऐसे क्षेत्र चिन्हित किए हैं, जहां प्रोजेक्ट्स के जरिये इन्फ्रास्ट्रक्चर को मजबूत करने के लिए 102 ट्रिलियन रुपये का निवेश किया जा सकता है। 2024 तक यदि भारत को 5 ट्रिलियन डॉलर मूल्य की अर्थव्यवस्था बनना चाहता है, तो ऐसे प्रोजेक्ट बहुत काम आएंगे, और ऐसे में ये कहना होगा कि पीएम मोदी आने वाले दशकों में एक ‘बिल्डर प्रधानमंत्री’ के तौर पर याद किए जाएंगे।