इन दिनों चीन को भारत ने दिन में तारे दिखा दिये हैं। चाहे एलएसी के मोर्चे पर मुंहतोड़ जवाब देना हो, या फिर चीन के कर्ज़ के चंगुल से मालदीव और श्रीलंका सहित दक्षिण एशिया के अनेकों देश को मुक्त कराना हो, भारत ने चीन को कहीं का नहीं छोड़ा है। लेकिन इस लड़ाई में अकेले भारत ही नहीं है, बल्कि अब चीन के मुंह से निवाला छीनने के लिए QUAD के सदस्य एक-एक कर दक्षिण एशिया के मोर्चे में प्रवेश कर रहे हैं, जिसमें जापान सबसे आगे है, जिसने हाल ही में चीन के हाथ से एक अहम पोर्ट को हथियाने में सफलता पाई है।
हाल ही में द डिप्लोमेट ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि चीन से जुड़े एक अहम प्रोजेक्ट को निरस्त किया गया है। रिपोर्ट के एक अंश अनुसार, “बंगाल की खाड़ी पर प्रस्तावित एक हाई प्रोफाइल प्रोजेक्ट की योजना को आखिरकार निरस्त कर दिया गया है। यह प्रोजेक्ट चीन के हिन्द महासागर में आर्थिक और रणनीतिक मंशाओं को बल प्रदान कर सकता है”।
हालांकि, बांग्लादेश ने इस प्रोजेक्ट पर रोक लगाने के पीछे पर्यावरण संबंधी चिंताओं का हवाला दिया है, क्योंकि सोनाडिया में एक Deep Sea Port उस क्षेत्र की प्राकृतिक सम्पदा को नुकसान पहुंचा सकता था। अब सोनाडिया के बजाए Matarbari में बन्दरगाह का निर्माण होगा, जो सोनाडिया से 25 किलोमीटर दूर है”।
तो इसमें भला जापान की क्या भूमिका है? दरअसल, अब Matarbari में जो बन्दरगाह बनेगा, उसे जापान की सहायता से निर्मित किया जाएगा। यहाँ पर किसी भी प्रकार से चीन कोई हस्तक्षेप नहीं कर पाएगा, और किसी भी सूरत में जापान की सक्रियता से बांग्लादेश को कोई खतरा नहीं होगा। द डिप्लोमेट के रिपोर्ट के अनुसार, “मातरबाड़ी में अब बांग्लादेश जापान की सहायता से पोर्ट निर्मित कराएगा। सोनाडिया की भांति ये पोर्ट बंगाल की खाड़ी के समीप स्थित है और भारत से भी ज़्यादा है। चूंकि भारत और जापान में काफी घनिष्ठ संबंध है, इसलिए भारत को इस निर्णय से कोई आपत्ति नहीं होगी”।
इस एक निर्णय से जापान ने एक तीर से दो शिकार किए हैं। एक तो उसने न केवल चीन के हाथों से बांग्लादेश में अपना वर्चस्व जमाने का अच्छा मौका छीना है, अपितु सेंकाकु द्वीप समूह के पास चीन की जा रही गुंडागर्दी को भी कूटनीतिक तरह से मुंहतोड़ जवाब दिया है। संदेश स्पष्ट है – तुम सेंकाकु को हाथ भी लगाओ, हम भारत और QUAD के अन्य सदस्यों के साथ पूरा दक्षिण एशिया ही तुमसे छीन लेंगे। अभी हाल ही में चीन ने जापान के सेंकाकु द्वीप समूह के पास घुसपैठ करने का प्रयास किया था। अब जापान ने बिना एक गोली चलाये दक्षिण एशिया के मोर्चे पर चीन को मुंहतोड़ जवाब दिया है।
लेकिन इस निर्णय में बांग्लादेश का भी बराबर का फायदा है, क्योंकि वह धीरे धीरे ही सही, पर चीन के प्रभाव से मुक्त हो सकता है। बांग्लादेश में चीन भले ही भर भर के निवेश कर रहा हो, पर बांग्लादेश नेपाल की तरह चीन की अन्धभक्ति में लीन नहीं रहता है। वह अभी भी इस बात को नहीं भूला है कि यह वही चीन है, जिसने 1971 में पाकिस्तान द्वारा ढाये जा रहे अत्याचारों का न केवल समर्थन किया था, बल्कि बांग्लादेश के स्वतन्त्रता संग्राम में कूटनीतिक तौर पर अड़ंगा डालने का भी प्रयास किया था। वहीं दूसरी ओर भारत ने न केवल बांग्लादेश की स्वतन्त्रता में एक अहम भूमिका निभाई थी, अपितु कदम कदम पर उसका समर्थन भी किया। इसीलिए बांग्लादेश चाहकर भी चीन के इशारों पर नहीं चल सकता, क्योंकि भारत से इस समय कोई पंगा मोल नहीं लेना चाहता।
इसके अलावा बांग्लादेश कूटनीतिक और रणनीतिक तौर पर भी चीन के प्रभाव से मुक्त रहना चाहता है। इसी बात पर प्रकाश डालते हुए द डिप्लोमेट ने अपनी रिपोर्ट में ये भी बताया, “बांग्लादेश ने एक सतर्क इन्फ्रास्ट्रक्चर विकास नीति को बढ़ावा दिया है, जिसमें वह अनेकों देशों से इनफ्रास्ट्रक्चर के विकास के लिए आवश्यक उपकरण एवं तकनीक हेतु अनेकों देशों के साथ करार किया है, ताकि एक देश पर आवश्यकता से अधिक निर्भर न होना पड़े। इसीलिए बांग्लादेश भले ही चीन के BRI का हिस्सा क्यों न माना जाता हो, परंतु वह अपने आप को चीन के प्रभाव से मुक्त रखने हेतु भारत, जापान और दक्षिण कोरिया के साथ भी बराबर संबंध स्थापित किए हुए हैं”।
सच कहें तो बांग्लादेश में स्थित रणनीतिक रूप से अहम पोर्ट हथिया कर जापान ने न केवल चीन को मुंहतोड़ जवाब दिया है, अपितु QUAD के अस्तित्व को भी सार्थक सिद्ध किया है। चीन अब चाहे जो भी कहे, पर अब पछताए होत क्या, जब चिड़िया चुग गई खेत!