कुछ लोगों के ऊपर एक ही कहावत सटीक बैठती है – चोर चोरी से जाये हेराफेरी से न जाये। पूर्वी भूमध्य सागर क्षेत्र से दुत्कारे जाने के बाद अब तुर्की ने साइप्रस पर अपनी आँखें गड़ा के रखी है। तुर्की ने इतने देशों से पंगा मोल लिया है कि इसपर आराम से अनेकों पुस्तकें छापी जा सकती है।
लेकिन साइप्रस से भला तुर्की किस बात पर भिड़ रहा है? दरअसल यहाँ विवाद का केंद्र है वरोषा नामक रिज़ॉर्ट शहर, जिसे 1974 में तुर्की ने भुतहा खंडहर में परिवर्तित कर दिया है। डेढ़ लाख लोगों को रातोरात अपना घर छोड़ना पड़ा था। संयुक्त राष्ट्र के हस्तक्षेप के बाद ही यहाँ पर शांति बहाल हुई। तब से यहाँ पर कोई नहीं रहता है और यह एक विवादित क्षेत्र माना गया है और UN के प्रस्ताव के मुताबिक यहाँ पर एकतरफा कार्रवाई नीतिसंगत नहीं है।
अब इसे दोबारा खोलकर तुर्की साइप्रस के साथ-साथ इस शहर के रहने वाले ग्रीक निवासियों को भी खुलेआम भड़का रहा है। ग्रीक सरकार के प्रवक्ता स्टेलियोस पेटसास ने कहा, “तुर्की को यहाँ अपने आप पर संयम रखना चाहिए। यदि वह ऐसा नहीं करता है, तो साइप्रस और ग्रीस को इस मामले को 16-17 अक्टूबर को यूरोपीय काउंसिल की बैठक में लाना पड़ेगा।”
इसके अलावा साइप्रस के राष्ट्रपति ने अपने ट्वीट में कहा, “आज रात मैंने यूरोपीय काउंसिल के अध्यक्ष से फोन पर बातचीत की। मैंने तुर्की के अवैध एक्शन के बारे में हमारी संवेदनाओं से उन्हें अवगत कराया, जो यूएन की सुरक्षा परिषद द्वारा स्पष्ट किए गए प्रावधानों का खुलेआम उल्लंघन कर रहा है।”
इसके साथ ही इसपर रूस ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए तुर्की को चेतावनी दी है कि यह कार्य किसी भी सूरत में बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। मतलब साफ है कि रूस का ऐसा रिएक्शन तुर्की के इस्लामी राज्य के खलीफा बनने के सपने को चूर-चूर करने का माद्दा रखता है। तुर्की विस्तारवाद के नशे में इस तरह डूब गया है कि वह इतने मोर्चों पर एक साथ लड़ाइयाँ मोल ले रहा है जिसके संभावित खतरे का तनिक भी अंदाज़ा उसे नहीं है।
अब तुर्की ने साइप्रस से पंगा मोल लेकर केवल साइप्रस और ग्रीस को ही नहीं, बल्कि अमेरिका और रूस को भी खुलेआम चुनौती दी है। यूएसए के ग्रीस और साइप्रस दोनों में ही सैन्य बेस मौजूद है। अमेरिका के विदेश मंत्रालय ने ये भी कहा कि 1 अक्टूबर से साइप्रस को गैर घातक रक्षा उपकरण एवं सेवाएँ देने पर लगी रोक भी हटा दी जाएगी। ऐसे में तुर्की ने केवल साइप्रस को ही नहीं, बल्कि अमेरिका को भी खुलेआम चुनौती दी है।
इससे पहले ईयू ने भी तुर्की के कारनामों का विरोध किया है। लेकिन वरोषा के तटों को खोलकर तुर्की ने एक बार फिर ग्रीस और साइप्रस के घाव हरे किए हैं। ये निर्णय साइप्रस के तुर्की मूल के नागरिकों को प्रसन्न करने के उद्देश्य से किए गए हैं, ताकि उत्तरी साइप्रस में होने वाले चुनावों में तुर्की का प्रभाव बढ़ सके। तुर्की के राष्ट्रपति चाहते हैं कि उनका प्रिय उम्मीदवार अरसिन तातार ही जीते ताकि साइप्रस पर तुर्की का प्रभाव बढ़ता रहे।
साइप्रस के दक्षिणी क्षेत्र और ग्रीस ने खुलेआम एर्दोगन की गुंडागर्दी के विरुद्ध मोर्चा संभाला है। ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि इतने सारे पंगे मोल ले कर तुर्की ने आधिकारिक तौर पर अपनी शामत बुलाई है, और आगे जो निर्णय लिए जा सकते हैं, उससे तुर्की की अर्थव्यवस्था को कितना भारी नुकसान पहुँच सकता है, इसका कोई अंदाज़ा भी नहीं लगा पाएगा।
एक ओर यूरोपीय संघ तुर्की को सबक सिखाने के लिए आतुर है, तो दूसरी ओर NATO पहले ही तुर्की से सभी प्रकार के नाते तोड़ने के लिए प्रतिबद्ध है। अब साइप्रस से पंगा मोल लेकर तुर्की ने ग्रीस और अमेरिका के साथ अब रूस को भी तुर्की की चटनी बनाने की खुली छूट दे दी है। यदि समय रहते तुर्की नहीं सुधरा, तो आने वाला समय तुर्की के निवासियों के लिए बहुत कष्टकारी होने वाला है।