कहते हैं, समय के साथ सभी को बदलना चाहिए, और ऐसा लगता है की यूएई ने इस बात को बहुत जल्द ही आत्मसात कर लिया है। हाल ही में यूएई ने अपने नागरिकता अधिनियमों में अहम बदलाव करते हुए अपने देश के द्वार पूरी दुनिया के लिए खोल दिये हैं। अब नए अधिनियमों के अंतर्गत यूएई की नागरिकता चाहने वाले लोगों के लिए पहले की भांति ज़्यादा पाबन्दियाँ नहीं होंगी।
अरेबियन बिजनेस की रिपोर्ट के अनुसार, अब यूएई की नागरिकता पाने के लिए याचिकाकर्ता को इन पैमानों पर खरा उतरना होगा:
- किसी अन्य देश की नागरिकता का परित्याग करना
- वैधानिक रूप से देश में निवास करना
- अरबी भाषा में निपुण होना
- जीवनयापन के लिए एक वैधानिक व्यवसाय में लिप्त होना
- शैक्षिक रूप से सम्पन्न होना
- अपना व्यवहार सही रखना
- किसी अपराध में दोषी नहीं पाये जाना
- आवश्यक सुरक्षा मान्यताओं पर खरा उतरना
- राज्य के प्रति वफादारी की शपथ लेना
परंतु यह राह इतनी भी सरल नहीं थी। अगर पहले किसी गैर अरब को यूएई की नागरिकता चाहिए होती थी, तो उसे कम से कम 30 वर्षों के लिए यूएई में निवास करना पड़ता था। इसके अलावा भी एक गैर अरब को अनेकों प्रकार के पापड़ बेलने पड़ते थे, और अरबी भाषा में निपुण रहना पड़ता था, तब जाके उसे यूएई की नागरिकता मिलती। हालांकि, अरबियों के लिए कोई ऐसी समस्या नहीं थी, क्योंकि अगर वे ओमान, क़तर या बहरीन के नागरिक थे, तो वे केवल तीन वर्ष के बाद ही आवेदन कर सकते थे। वहीं, दूसरे देशों में रहने वाले अरबियों को सात वर्षों के अंदर अंदर ही यह सुविधा प्राप्त हो जाती थी।
तो इस अधिनियम से किसे विशेष रूप से फायदा होने वाला है? यूएई में लगभग 90 प्रतिशत आबादी प्रवासियों से भरी हुई है, जिसमें करीब 28 प्रतिशत अकेले भारत से आते हैं, और वे हर वर्ष 14 बिलियन डॉलर से अधिक धनराशि भारत भेजते हैं। यह अमेरिका से प्रवासी भारतीयों द्वारा भेजी जाने वाली रकम से कई गुना ज़्यादा है।
ऐसे में यूएई के वर्तमान निर्णय से अगर किसी को सबसे अधिक फायदा होगा, तो वो निस्संदेह भारत ही है। यूएई के निर्माण क्षेत्र, रिटेल क्षेत्र, वित्तीय क्षेत्र आदि के लिए भारतीय किसी लाइफलाइन से कम नहीं है। इसके अलावा यूएई और भारत के संबंध भी काफी घनिष्ठ हैं, और पाकिस्तान के ऊपर सदैव भारत को ही प्राथमिकता दी है। 2019 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को यूएई के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘ऑर्डर ऑफ जाएद’ से भी सम्मानित किया गया।
अब गैर अरबी लोगों को अपने अर्थव्यवस्था में सम्मिलित कर यूएई अपनी राजनीतिक अर्थव्यवस्था को भी एक नया मंच देगा, जिससे उसकी प्रगति नित नए आयाम छूएगी। इससे नीति निर्धारण में भी यूएई को काफी बल मिलेगा। इतना ही नहीं, इस निर्णय से यूएई को अपनी आबादी बढ़ाने का भी अवसर मिलेगा, जो उसके अनुसार एक चिंताजनक विषय बनता जा रहा था।
लेकिन यदि किसी नई नीति के लाभ हैं, तो चुनौतियाँ भी समान रूप से सामने आती हैं। यूएई हो या चाहे कोई भी अरब देश, ऐतिहासिक रूप से ये देश गैर अरबियों के लिए सदैव बंद ही रहे हैं। लेकिन जिस प्रकार से तेल के दाम में गिरावट आई है, और जिस प्रकार से अतिरिक्त workforce की आवश्यकता पड़ी है, उसके कारण यूएई को अपने नीतियों में काफी बदलाव करना पड़ा है, जिससे वह मिडिल ईस्ट में एक लोकप्रिय पर्यटक एवं निवेश स्थल भी बन चुका है। इसी परिप्रेक्ष्य से यूएई ने 2015 में जहां श्रम सुधार को बढ़ावा दिया, तो वहीं 2019 में कंपनियों की विदेशी स्वामित्व की नीति को भी बढ़ावा दिया है।
अब किसी ने भी खुलकर यूएई की नीतियों का विरोध तो नहीं किया है, लेकिन अरब जगत में जो देश अरबी समुदाय का वर्चस्व चाहते हैं, उन्हें ये बदलाव नहीं पचने वाला। इसके अलावा यूएई द्वारा इजराएल के साथ किए गए शांति समझौते से कुछ देश काफी खफा हैं, विशेषकर वो देश, जो अरबी जगत के नए बादशाह बनना चाहते हैं, जैसे तुर्की।
लेकिन यूएई इन सबसे इतर प्रगति के पथ पर अग्रसर रहने को प्रयासरत है, और वैश्विक परिप्रेक्ष्य से ये बेहद सकारात्मक खबर है। अब नए नागरिक अधिनियमों के साथ यूएई पश्चिमी एशिया को एक समृद्ध और खुशहाल क्षेत्र बनाने की ओर अग्रसर है।