बिहार चुनावों को लेकर सभी राजनीतिक दलों ने अपने उम्मीदवारों की पहली सूची जारी कर दी है, कांग्रेस ने तो इन चुनावों में एक अलग ही कार्ड खेल दिया है। इस पार्टी ने अपनी पहली सूची में किसी भी मुस्लिम उम्मीदवार को टिकट नहीं दिया है। इस फैसले पर विश्लेषकों का कहना है कि पार्टी का मोह मुस्लिमों से भंग हो चुका है, लेकिन कांग्रेस ने अपने इस फ़ैसले की आड़ में एक सियासी दांव चला है।
जनसत्ता की एक रिपोर्ट के मुताबिक बिहार चुनाव को लेकर महागठबंधन में शामिल कांग्रेस को 71 सीटें दीं गईं हैं। जिसके पहले 21 उम्मीदवारों की सूची कांग्रेस द्वारा जारी कर दी गई है। सबसे आश्चर्यजनक बात ये है कि इन 21 उम्मीदवारों में से कोई भी मुस्लिम नहीं है, जबकि ये कांग्रेस का कोर वोटर बेस माना जाता है। इस सूची के ज़ारी होने के बाद से ही सवाल खड़े हो गए हैं कि क्या कांग्रेस का मुस्लिम मतदाताओं से मोह भंग हो गया है ? वास्तव में लोग इस रणनीति के पीछे कांग्रेस के शातिर दिमाग को नहीं समझ पाएं हैं। दरअसल, इस बार कांग्रेस किसी नए दांव के साथ चुनावी मैदान में उतरेगी है। कांग्रेस जानती है कि मुस्लिम मतदाता बीजेपी को सत्ता से दूर रखने के लिए उसे ही वोट देंगे। इसके साथ ही वो अब अपनी मुस्लिम समर्थक होने की छवि को बदलने की कोशिश कर रही है जो कांग्रेस की शातिर सियासत को दर्शाता है।
कांग्रेस के इस रवैए को लेकर जब उसके नेताओं से सवाल पूछे गए तो कोई संतोषजनक जवाब नहीं मिला है। कांग्रेस नेता प्रेम चंद मिश्रा ने कहा, “कांग्रेस को गठबंधन के कारण कम सीटों पर चुनाव लड़ना पड़ रहा है। इसलिए हम मुस्लिमों को इस सूची में जगह नहीं दे पाए हैं। उन्होंने भरोसा दिया है कि आने वाली अन्य सूचियों में मुस्लिम उम्मीदवारों के नाम अवश्य होंगे।”
बता दें कि कांग्रेस पर आरोप लगते रहे हैं कि वो मुस्लिमों के समर्थन में किसी भी हद तक जा सकती है। यही नहीं पूर्व प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह के बयान से और हल्ला हो चुका है। जिसमें उन्होंने कहा था कि देश के संसाधनों पर पहला हक मुसलमानों का है। मुस्लिमों को लेकर कांग्रेस हमेशा ही राजनीतिक रूप से सक्रिय रही है। साल 2014 में हार के बाद भी कांग्रेस की एंटनी कमेटी की रिपोर्ट में सामने आया था कि कांग्रेस की मुस्लिम समर्थक छवि का उसे सबसे ज्यादा चुनावी नुकसान हुआ है।
कई विश्लेषकों और जानकारों की राय के बाद अब कांग्रेस अपनी इस छवि को बदलना चाहती है। इसके संकेत हम पहले ही देख चुके हैं कि कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने कैसे जनेऊ दिखाकर मंदिरों के दर्शन किए और उनकी बहन और कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा प्रयागराज में गंगा में आचमन करतीं नजर आईं। ये सारी क्रियाएं और अब चुनाव में टिकटों को लेकर ये फैसला दिखाता है कि वो अब देश के बहुसंख्यकों को अपनी ओर आकर्षित करने की जुगत में है क्योंकि बहुसंख्यकों की नजर में कांग्रेस की काफी भद्द पिट चुकी है। अब कांग्रेस ये दिखाने बीजेपी भी कई बार कांग्रेस की केवल ‘मुस्लिमों’ की पार्टी वाली छवि पर वार कर चुकी है, ऐसे में खुद को इससे बाहर निकालने के लिए कांग्रेस ने ये नया दांव चला है। हालांकि, इस कदम से कांग्रेस के मतदाताओं पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा इस बात भी ये पार्टी अच्छी तरह समझती है।
मुस्लिमों को लेकर कांग्रेस की धारणा बन गई है कि मुस्लिम समाज का बड़ा वर्ग केवल हमें ही वोट देगा। भाजपा को रोकने के लिए मुस्लिम वर्ग कांग्रेस को ही वोट देगा। हमेशा देखा गया है कि मस्जिदों से निकलने वाले चुनावी फतवों और तकरीरों में केवल एक ही बात होती है कि मुस्लिम बीजेपी को हराने के लिए उसके विरोध में खड़ी पार्टी को ही वोट करें। यहीं कारण है कि कांग्रेस आश्वस्त है कि मुस्लिम मतदाता उसे ही वोट करेंगे।
कांग्रेस के दिमाग में ये खुराफात भी है कि मुस्लिम तो उसे वोट करेंगे ही… क्योंकि वो आरजेडी के साथ गठबंधन में हैं, और आरजेडी को तो एम-वाई समीकरण वाली पार्टी ही माना जाता है। इसलिए हमें बहुसंख्यक समाज की ओर अपना ध्यान केंद्रित करना चाहिए जिससे उसके दोनों हाथों में लड्डू हों, और चुनावी बिसात के साथ ही ज़मीनी राजनीति में बहुसंख्यकों के बीच पार्टी की जगह बने जिससे उसकी मुस्लिमों की पार्टी वाली छवि को बदला जा सके।
कांग्रेस असल में मुस्लिमों का केवल वोट बैंक के लिए इस्तेमाल करती आई है। मुस्लिम समाज आज भी अपनी उसी स्थिति में है जहां वो पहले था इसके इतर कांग्रेस उसके सहारे सत्ता के मजे लेती रही। अब कांग्रेस को अपनी छवि बदलने के लिए इन मुस्लिमों का साथ तो चाहिए पर वो खुलकर मुस्लिमों के तुष्टीकरण वाली नीति पर नहीं चलना नहीं चाहती।
कांग्रेस को लेकर जो लोग ये सोच रहे हैं कि वो अल्पसंख्यकों को भूल चुकी है तो ये शत-प्रतिशत गलत है क्योंकि कांग्रेस की असल सियासत ही उसके तुष्टीकरण पर टिकी हुई है, और उसका हालिया रवैया तो बस एक नकाब है जो कब उतर जाए कुछ नहीं कहा जा सकता।