उत्तर प्रदेश में भू-जल का लगातार दोहन किया जा रहा है जिसमें सबसे बड़ी भूमिका यहां की औद्योगिक इकाइयों की है। जिसके बाद जल संरक्षण को लेकर यूपी की योगी सरकार ने एक बड़ा फैसला किया है कि इस तरह से भू-जल की बर्बादी करने वालों के खिलाफ सरकार द्वारा सख्त कार्रवाई की जाएगी। इस पूरे मामले को लेकर सरकार द्वारा गाइडलाइन जारी कर दी गई है जो दिखाता है योगी सरकार भू-जल संरक्षण को लेकर पूरी प्रतिबद्धता से काम करने को तैयार है और इन गाइडलाइंस का उल्लंघन करने वालों को बुरे अंजाम भुगतने होंगे।
दरअसल, योगी सरकार ने जल प्रबंधन और नियामक प्राधिकरण के गठन के साथ ही नई गाइडलाइन जारी की है। जिसके तहत भू-जल का इस्तेमाल अब बिना सरकार की मंजूरी के नहीं किया जाएगा औऱ इसका गलत इस्तेमाल करने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी। हांलाकि, भू-जल से जुड़ी किल्लतों के लिए यूपी में इन्वेस्टमेंट बोर्ड में एक पोर्टल शुरू किया जाएगा जो कि उद्योगों को जल उपलब्ध कराने में मदद करेगा। इस गाइडलाइन के तहत नियमों का उल्लंघन करने वालों के खिलाफ 2-5 लाख रुपए तक का जुर्माना और 6 महीने से एक साल तक की जेल का प्रावधान किया गया है।
अपर मुख्य सचिव अवस्थापना एवं औद्योगिक विकास आलोक कुमार ने बताया, सेन्ट्रल ग्राउंड वाटर बोर्ड के एनओसी के नवीनीकरण के लिए आवेदन पत्रों को जल्द निस्तारण किया जाए। 82 अतिदोहित और 47 क्रिटिकल विकास खंडो को छोड़कर शेष इलाकों में यूपी इन्वेस्टमेंट द्वारा भूगर्भ जल के उपयोग के लिए पोर्टल से एनओसी जारी की जाएगी। इसके अलावा औद्योगिक इकाइयों में पेयजल व आवासीय परिसरों के लिए पोर्टल के माध्यम से प्रमाण पत्र दिए जाएंगे। वहां पहले से जिन लोगों को एनओसी मिल चुकी हैं उनका पोर्टल पर परीक्षण करके फिर से एनओसी दी जाएगी।
गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश में 27 हजार से ज्यादा उद्योगों में भू-जल का खूब दोहन किया जाता है। उपयोग से ज्यादा बर्बादी एक बड़ी चिंता है। एनजीटी आए दिन इसको लेकर वैकल्पिक व्यवस्थाएं करने को कहती रहती है लेकिन इससे कोई खास फर्क नहीं पड़ा है। र्यावरणविद् आकाश वशिष्ठ ने कहा है कि औद्योगिक क्षेत्रों के अलावा मल्टीस्टोरी बिल्डिंगों में भी भू-जल का दोहन बड़े स्तर पर होता है इसलिए इस पर भी दंड के प्रावधान की आवश्यकता है
वहीं औद्योगिक क्षेत्र में तो बोरवेल के जरिए भू-जल इस्तेमाल किया जाता हैं। इसके चलते यूपी के कई इलाकों में भू-जल का स्तर 200 फिट नीचे तक चला गया है जो भविष्य में भू-जल की एक बड़ी समस्या को जन्म दे सकता है। दूसरी ओर उद्योग यूनिटों का कहना है कि नगर निगम को टैक्स देने के बावजूद जलापूर्ति न होने पर वे ऐसे कदम उठाते हैं। जिसका संज्ञान योगी सरकार ने भी लिया है और इसीलिए एक पोर्टल की बात की गई है जिससे जल की इस किल्लत को दूर किया जा सके।
भू-जल संरक्षण औऱ उद्योग दोनों ही जरूरी हैं इसको लेकर योगी सरकार जहां पोर्टल के जरिए जल की किल्लत के निस्तारण की बात रह रही है तो दूसरी ओर भू-जल संरक्षण को लेकर बनाया गया प्राधिकरण इस बात का पर्याय भी है कि योगी सरकार जल संरक्षण को लेकर कितनी अधिक संवेदनशील है और गैरकानूनी तरीके से इसके दुरुपयोग पर कितना सख्त रुख अपना सकती है।