जब तक चीन कई मोर्चों पर लड़ाई लड़कर ताइवान पर फोकस करेगा, तब तक ताइवान एक अभेद्य शक्ति बन चुका होगा

चीन के सामने सबसे बड़ा धर्मसंकट- ताइवान पर अभी वो हमला कर नहीं सकता, बाद में वो हमला करने लायक नहीं बचेगा

ताइवान

In this photo released by the Taiwan Presidential Office, Taiwanese President Tsai Ing-wen, center, walks ahead of Vice-President Lai Ching-te, left of her, as they attend an inauguration ceremony in Taipei, Taiwan, Wednesday, May 20, 2020. Tsai was inaugurated for a second term amid increasing pressure from China on the self-governing island democracy it claims as its own territory. (Taiwan Presidential Office via AP)

चीन ने दुनिया को एक बहुत अहम पाठ पढ़ाया है। अगर आप शक्तिशाली और सक्षम हैं, तो भी आपको अनेक मोर्चों पर लड़ाई करने का जोखिम नहीं उठाना चाहिए। चीन अब ऐसी स्थिति में है, जहां आगे कुआं तो पीछे खाई है। एक तरफ भारत, चीन की एक भी गलती पर उसे पटक-पटक के धोने के लिए तैयार बैठा है, तो वहीं दूसरी ओर ताइवान, जापान, वियतनाम, इंडोनेशिया, फिलीपींस, ब्रूनेई इत्यादि जैसे देश भी चीन को मुंहतोड़ जवाब देने के लिए कमर कस चुके है तो इस समय ताइवान के साथ किसी भी प्रकार की लड़ाई चीन के लिए बहुत भारी पड़ेगी।

हिमालय पर चढ़ाई करने की चीनी नीति किस तरह से विफल रही है, इस पर विशेष कवरेज की कोई आवश्यकता नहीं है। इसके कारण न केवल चीनी ताकत की पोल खुली, अपितु पीएलए की छवि को भी गहरा नुकसान पहुंचा। लेकिन जिस प्रकार से भारत पर कोई भी हमला चीन के लिए विनाशकारी सिद्ध होगा, वैसे ही ताइवान की वर्तमान स्थिति को देखते हुए चीन का कोई भी गलत कदम उसके वर्तमान प्रशासन के लिए विनाशकारी सिद्ध होगा।

ताइवान एक सशक्त लोकतन्त्र है, जिसने इस महामारी में भी दुनिया भर के देशों की हर संभव मदद की है। जिस प्रकार से विश्व को इस महामारी के खतरों से ताइवान ने अवगत कराया, और अनेकों मास्क एवं पीपीई किट तैयार करके दुनिया भर में ताइवान ने भेजे, उसके कारण ताइवान को काफी प्रशंसा और समर्थन मिल रहा है, जिसके लिए वह दशकों से तरस रहा था।

चीनी विशेषज्ञ पहले कहते थे कि अमेरिका और चीन दोनों ही ताइवान की बजाय चीन के पक्ष का समर्थन करते हैं। लेकिन 1995-96 के बीच तब ताइवान ने लोकतन्त्र को अपनाया, तब से अमेरिका और ताइवान के संबंध काफी सुधरे हैं। इसके अलावा जिस प्रकार से ताइवान ने चीन के विरुद्ध मोर्चा संभाला है, उसके कारण अब अमेरिका भी ‘वन चाइना’ नीति पर पुनर्विचार करने को विवश हुआ है। इस महामारी के बाद ताइवान अपने लिए जो जगह बनाएगा, उसके बारे में कोई सोच भी नहीं सकता।

कहते हैं, विपत्ति में ही व्यक्ति या समाज के चरित्र की वास्तविकता सामने आती है। ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि इस महामारी ने ताइवान की प्रतिबद्धता और चीन के इरादों को समझने की क्षमता को काफी हद तक सुदृढ़ बनाया है। ताइवान भौगोलिक रूप से न केवल समृद्ध है, बल्कि चीन के मुक़ाबले लाभकारी स्थिति में भी है। इसके साथ ही ताइवान के पास 620 अमेरिकी डॉलर के मूल्य Patriot Surface-to-Air’s latest model PAC-3 है , जिसकी अधिकतम इंटेर्सेप्शन रेंज 70 किलोमीटर है, और जिसके रडार की सर्च रेंज 100 किलोमीटर है। यह एक साथ 100 निशानों को खोज निकाल सकती है, और शायद इसीलिए अब चीन अपनी सुधबुध भी खो बैठा है।

साथ ही ताइवान यह भी जानता है कि किसी शत्रु को अनेक मोर्चों पर उलझाने से कैसे लाभ मिलता है। इसीलिए प्रत्यक्ष युद्ध के साथ ताइवान मनोवैज्ञानिक युद्ध, छद्म युद्ध, डिजिटल युद्ध, और यहाँ तक कि कूटनीतिक युद्ध के लिए भी कमर कस चुका है, जिसे ताइवान की राष्ट्राध्यक्ष त्साई इंगवेन ने पूरी छूट दे रखी है।

ऐसे में इस समय चीन के लिए ताइवान पर चढ़ाई करने का यह बिलकुल भी सही मौका नहीं है, क्योंकि ताइवान इसी की प्रतीक्षा कर रहा है, ठीक वैसे ही, जैसे भारत एलएसी के मोर्चे पर चीन के आपा खोने की प्रतीक्षा कर रहा है। लेकिन अगर चीन को ऐसा लगता है कि वह सही समय की प्रतीक्षा करने का जोखिम उठा सकता है, तो उससे बड़ा बेवकूफ़ इस संसार में कोई नहीं है, क्योंकि जब तक चीन अनेक मोर्चों से निपट चुका होगा, तब तक ताइवान इतना शक्तिशाली हो चुका होगा कि उसे चीन हाथ भी नहीं लगा सकता।

त्साई इंगवेन ने लगातार दूसरी बार सत्ता प्राप्त की है, और उनकी स्वतन्त्रता समर्थक नीतियों का लगभग पूरा ताइवान समर्थन करता है। ताइवान ने अब स्पष्ट संकेत दे दिया है कि उसे वन चाइना पॉलिसी में कोई दिलचस्पी नहीं है, और यूएन में सुधार के साथ-साथ ताइवान की बतौर यूएन सदस्य के तौर पर स्वीकार किए जाने की संभावना दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। स्वतंत्र ताइवान की संभावना के बारे में अब चीन को छोड़ किसी को भी संदेह नहीं है, और चीन अब चाहकर भी ताइवान के विरुद्ध कोई गलत कदम नहीं उठा सकता, क्योंकि अगर ताइवान ने अब पलटवार किया, तो चीन कहीं का नहीं रहेगा।

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