International Hunger Index कभी भारत की “भूख की समस्या” का सही आंकलन कर ही नहीं पाएगा, कारण यहाँ हैं

क्या वाकई भारत में भूख की समस्या इतनी भीषण है? शायद नहीं!

पिछले कुछ दिनों से ग्लोबल हंगर इंडेक्स खूब चर्चा में है। कई लोग इस इंडेक्स में भारत की स्थिति को लेकर सरकार की आलोचना कर रहे हैं। जारी किए गए नए डेटा में भारत का स्थान 107 देशों में 94 वें स्थान पर है जबकि भारत के गरीब पड़ोसी जैसे पाकिस्तान, बांग्लादेश और म्यांमार में आय स्तर कम होने के बावजूद बेहतर स्थान पर हैं। बांग्लादेश 75 वें, म्यांमार और पाकिस्तान 78 वें और 88 वें स्थान पर हैं।

परंतु आज हम बात करेंगे कि क्यों ग्लोबल हंगर इंडेक्स भारत में की स्थिति को हमेशा गलत तरीके से बताता है। वास्तव में यह इंडेक्स भारतीय जनसंख्या पर पश्चिमी मानकों को लागू कर यहाँ की वास्तविक तस्वीर को और अधिक बिगाड़ देता जिससे भारत रैंक में पिछड़ जाता और स्थिति भयावह दिखाई देती है।

आइए देखते हैं कि GHI की गणना किन मापदंडों पर की जाती है और क्या यह भारत में भूख की सच्ची तस्वीर का दिखाता करता है या इसे विकृत करता है?

GHI की गणना चार मापदंडों पर की जाती है:

1) Undernourishment: आबादी के उस भाग की गणना की जाती जिनकी कैलोरी सेवन अपर्याप्त होती है।

2) Child Wasting: उन बच्चों की गणना जिनकी ऊंचाई के हिसाब से उनका वजन वजन है;

3) Child Stunting: उन बच्चों की गणना जिनकी उम्र के हिसाब से ऊंचाई कम है;

4) Child Mortality: पांच वर्ष से कम बच्चों की मृत्यु दर की गणना

यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि चार में से तीन पैरामीटर बाल स्वास्थ्य को संदर्भित करते हैं। ऐसे में इसे भूख सूचकांक या हंगर इंडेक्स कहना अपने आप में एक घोटाला है।

जैसा कि कृषि अर्थशास्त्री शिवेंद्र कुमार श्रीवास्तव ने सही तर्क दिया है कि इस समग्र सूचकांक की संरचना को “ग्लोबल हंगर इंडेक्स” के बजाए “ग्लोबल हंगर एंड चाइल्ड हेल्थ इंडेक्स” कहा जाना अधिक उपयुक्त होगा।

एक ऐसा इंडेक्स जिसका दो तिहाई भार बाल स्वास्थ्य को दिया जाता है, उसे जानबूझकर हंगर इंडेक्स कहा जाता है क्योंकि यह शब्द बाल स्वास्थ्य सूचकांक की तुलना में अधिक सनसनीखेज है।

इन चार मापदंडों में से, दो यानी चाइल्ड वेस्टिंग और चाइल्ड स्टंटिंग जो कि पश्चिमी पैरामीटर के अनुसार वजन और ऊंचाई पर आधारित हैं। इस तथ्य के बावजूद कि कई शोधकर्ताओं ने तर्क दिया है कि सभी देशों के लिए अलग-अलग ऊंचाई और वजन की आवश्यकताएं होनी चाहिए क्योंकि ये भी देश की आबादी की रूप रेखा वहाँ की भौगोलिक स्थिति के अनुसार होता है।

भारतीय बच्चों और यहां तक ​​कि भारतीय युवाओं का ऊंचाई और वजन आम तौर पर पश्चिमी बच्चों की तुलना में कम है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि वे कुपोषित हैं या किसी प्रकार की कमी से पीड़ित हैं।

NITI Aayog के सदस्य रमेश चंद कहते हैं, “बच्चों का वजन और ऊंचाई पूरी तरह से भोजन के सेवन से निर्धारित नहीं होती है, बल्कि आनुवांशिकी, पर्यावरण, भोजन के सेवन और स्वच्छता से जुड़े कारकों का परिणाम है।”

उदाहरण के लिए सचिन तेंदुलकर का कद अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेटरों में सबसे कम है, लेकिन उन्हें सर्वकालिक महान बल्लेबाज बनने से कोई नहीं रोक पाया। वहीं फुटबाल में लियोनल मेस्सी भी कम ऊंचाई वाले फुटबॉलरों में से हैं, लेकिन फिर भी वे सर्वकालिक महान फुटबॉलर हैं। तेंदुलकर और मेस्सी, जब वे पांच साल से कम उम्र के थे तब अगर जीएचआई के मानकों के अनुसार मापा जाता, तो शायद वे भूखे और कुपोषित में गिने गए होते।

इसके अलावा, इस तथ्य को देखते हुए कि जीएचआई मुख्य रूप से बच्चे के स्वास्थ्य से संबंधित है, यानि यह पांच वर्ष की आयु से ऊपर भारत की लगभग 89 प्रतिशत आबादी GHI से बाहर हो जाती है। इसका अर्थ यह हुआ कि यह सूचकांक अपने मापदण्डों में भारत के अल्पसंख्यक(ओंच वर्ष से कम बच्चों) आबादी का इस्तेमाल करते हुए आंकड़े पेश करता है और कहता है कि वह भारत में भूख की स्थिति बता रहा है। यह एक स्कैम नहीं तो और क्या है।

अगर आंकड़ों पर नजर डालें तो भारत मुख्य रूप से चाइल्ड स्टंटिंग और चाइल्ड वेस्टिंग में पिछड़ जाता है, दो पैरामीटर जिनका भोजन की उपलब्धता के साथ बहुत कम है और आनुवांशिक, भौगोलिक, स्वच्छता और कई अन्य कारकों के साथ है।

दो संकेतक जहां देश को काम करने की आवश्यकता है, उनमें से पहला अल्पपोषित आबादी हैं जिन्हें पहले से ही सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के माध्यम से पोषित किया जाता है। भारत का 70 प्रतिशत से अधिक हिस्सा पहले से ही राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा के अंतर्गत है, सरकार को बस अब वितरण प्रणाली को बेहतर बनाना है और इस क्षेत्र में होने वाले भ्रष्टाचार पर लगाम लगाना है। राशन कार्ड के डिजिटलाइजेशन और पोर्टेबिलिटी के माध्यम से, इन मुद्दों को पहले से ही मोदी सरकार द्वारा हल किया जा रहा है।

वहीं, दूसरा संकेतक बाल मृत्यु दर है। भूख सूचकांक में बाल मृत्यु दर को शामिल करने का औचित्य अभी भी समझ से परे है क्योंकि पांच साल से कम उम्र के बच्चों की मौत में आधे से ज्यादा का भूख और कुपोषण से कोई लेना-देना नहीं है। इसके अलावा, भारत में सार्वजनिक स्वास्थ्य और एकीकृत बाल विकास कार्यक्रम (ICDS) में निवेश की बदौलत पिछले दो दशकों में बाल मृत्यु दर में लगातार गिरावट आई है।

जैसा कि भारत में सार्वजनिक खाद्य वितरण की आवश्यकता सभी लोगों के लिए है, भोजन की अनुपलब्धता का सामना करने वाले किसी भी नागरिक का कोई सवाल नहीं है। भारत एक ऐसा देश है जहां खाना सरप्लस हैं। भारत का कृषि निर्यात एक वर्ष में 10 बिलियन डॉलर से अधिक है। इसलिए, जो भी समस्याएं बनी रहती हैं, वे योजनाओं की निष्पादन में कमी के कारण होती हैं और इनमें से अधिकांश स्वास्थ्य से संबंधित हैं न कि भूख से। ऐसे में अगर यह कहा जाए कि GHI यानि ग्लोबल हंगर इंडेक्स को भूख सूचकांक कहना अपने आप में एक घोटाला है क्योंकि यह मुख्य रूप से बाल स्वास्थ्य से संबंधित है तो यह गलत नहीं होगा।

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