ट्रम्प के दोबारा सत्ता में लौटने के आसार को देखते हुए जर्मनी ने बदला पाला, अब यह भी चीन की धुलाई करेगा

मर्केल की मौकापरस्त राजनीति!

जर्मनी

विश्व के सबसे शक्तिशाली देश अमेरिका में अगले कुछ दिनों में राष्ट्रपति चुनाव होने वाले हैं। ऐसे में सभी देशों के लिए ये बेहद महत्वपूर्ण हो जाता है कि वो अपनी कूटनीति का भी मूल्यांकन करे। जर्मनी की चांसलर एंजेला मर्केल भी इन देशों के राष्ट्र प्रमुखों में से एक है। वो अपनी रणनीति ऐसी अपना रही हैं जो कि अमेरिका और अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप के अनुरूप है। मर्केल ने ये मान लिया है कि अमेरिका में दोबारा ट्रंप सरकार बनने वाली हैं।

अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव से ठीक पहले जर्मनी के दो उच्च स्तरीय अधिकारियों ने अमेरिका के सामने ये प्रस्ताव रखा है कि जर्मनी और यूरोप अमेरिका के साथ मिलकर चीन के खिलाफ कार्रवाई के लिए तैयार हैं। ये बेहद ही आश्चर्यजनक बात है कि बर्लिन खुद लोकतांत्रिक देश अमेरिका के साथ मिलकर चीन के खिलाफ बोल रहा है क्योंकि ऐसा पहले कभी हुआ नहीं है। इससे ये भी साबित होता है कि मर्केल अब अपनी चीन समर्थक छवि को सुधारने में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती हैं।

चीन के खिलाफ मोर्चा खोलने की ये सारी बातें किसी सामान्य अधिकारी द्वारा नहीं बल्कि विदेश और रक्षा मंत्रालय की तरफ से कही जा रही हैं। मर्केल की ये विदेश नीति असल में अमेरिकी चुनाव और उसके परिणामों को लेकर है। एक तरफ जो बाइडेन है जो रूस विरोधी और चीन समर्थक हैं तो दूसरी ओर ट्रंप जो खुद को दुनिया का सबसे बड़ा चीन विरोधी साबित करने में जुटे हुए हैं।

ऐसे में बाइडेन को लेकर मर्केल का रवैया नर्म होना लाजमी है क्योंकि जर्मनी की रूस से हमेशा ही तनातनी रहती है। बाइडेन को लेकर ये भी सामने आया है कि वो भी मर्केल की तरह ही रूस के विरोधी हैं जिसके चलते ये माना जा रहा है कि वो भी नहीं चाहती होगीं कि ट्रंप जीतें। राजनीति और कूटनीति की दुनिया में नेताओं को मनमुताबिक ही सबकुछ नहीं मिलता हैं। उन्हें उसी के आधार पर नेतागिरी करनी पड़ती है जो उन्हें हासिल है। ऐसे में अमेरिकी चुनावों को लेकर मर्केल ये बात अच्छे से समझ चुकी हैं कि ट्रंप की दोबारा चुनाव में वापसी हो सकती है जिसके चलते वो जर्मनी के प्रशासन को उसी अनुसार सेट करने में जुट गई हैं।

अगले वर्ष ही मर्केल का कार्यकाल समाप्त हो जाएगा, ऐसे में मर्केल ये जानती है कि यदि वो जर्मनी को चीन समर्थक छवि के रूप में दिखाकर सत्ता से बाहर होती है तो आने वाला प्रशासन उन्हें इसके लिए खूब खरी-खोटी सुनाएगा। इस आलोचना से बचने के लिए ही वो चीन समर्थक होने की छवि को बदलने के साथ ही अमेरिका के साथ अपनी नजदीकियां बढ़ा रही हैं।

लंबे समय से मर्केल ये उम्मीद कर रही थीं कि रूस के खिलाफ अमेरिका के साथ मिलकर काम करेंगी, लेकिन ट्रंप के शासन काल में ये मुमकिन न हो सका। इससे इतर ट्रंप लगातार इंडो पैसेफिक क्षेत्र में चीन के खिलाफ जमीन तैयार कर रहे हैं जिस कारण जर्मनी भी अब चीन के खिलाफ खड़ा दिखना चाहता है। जबकि वो हमेशा ही चीन समर्थक रहा है। यही वो कारण है कि जर्मनी अब लगातार इंडो पैसेफिक क्षेत्र में अपनी नीतियों भारत और अमेरिका समर्थक के रूप में केंद्रित कर रहा है। वो चीन के खिलाफ खुलकर तो नहीं बोल रही है लेकिन ट्रंप के वापस आने की स्थिति में वो जर्मनी की चीन विरोधी नीति दिखाने के लिए काम जरूर कर रही है।

मर्केल जानती हैं कि आने वाले समय में अगर चीन समर्थक छवि बनी रही तो जर्मनी अप्रसांगिक हो सकता है। इसलिए वो अब अमेरिका के साथ दिखना चाहती हैं। जर्मनी के विदेश मंत्री भी ये मान चुके हैं कि आने वाले समय में चीन विरोधी नीति ही ट्रांस अटलांटिक क्षेत्र के रिश्तों के बीच नजदीकी में मददगार होगी। मर्केल की नीतियां ये साफ बता रहीं हैं कि दोबारा ट्रंप अमेरिका में आने वाले हैं जिसके चलते मार्केल अपनी नीतियां पहले ही उनके अनुसार तय कर रहीं हैं, जिससे दोनो देशों के बीच संतुलन स्थापित करने में आसानी हो।

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