पाकिस्तान को सऊदी अरब से एक और थप्पड़ पड़ा है, और वो भी सऊदी अरब की राजधानी रियाध में! दरअसल, रियाध में मौजूद पाकिस्तान का दूतावास 27 अक्टूबर को कश्मीर के “काले दिवस” के रूप में मनाने की तैयारी कर रहा था। इसको लेकर पाकिस्तानी दूतावास एक सार्वजनिक कार्यक्रम के आयोजन कराने की फिराक में भी था। हालांकि, इस खबर के आते ही तुरंत सऊदी प्रशासन एक्टिव हुआ और पाकिस्तानी दूतावास को आसान भाषा में यह समझा दिया गया कि वे ऐसे किसी कार्यक्रम का आयोजन रियाध में नहीं कर सकते। सऊदी सरकार ने यह भी स्पष्ट किया कि अगर पाकिस्तान को कोई ऐसा कार्यक्रम करना ही है, तो वह अपने दूतावास की चार-दीवारी के अंदर ही आयोजन कर सकता है, लेकिन उसके बाहर उसे कोई अनुमती नहीं दी जाएगी।
बता दें कि 27 अक्टूबर वही तारीख है जब कश्मीर पर पाकिस्तान के आक्रमण के जवाब में भारत ने कश्मीर में अपनी सेना को उतारा था और पाकिस्तानी सेना को धूल चटाने का काम किया था। इससे पहले 22 अक्टूबर 1947 को पाकिस्तानी सेना ने कश्मीर पर धावा बोला था, जिसके बाद कश्मीर के राजा हरिसिंह को भारत के साथ “instrument of accession” पर हस्ताक्षर करने पड़े थे। 22 अक्टूबर को भारत में कश्मीर के “काले दिवस” के रूप में मनाया जाता है।
सऊदी अरब द्वारा पाकिस्तान को भारत-विरोधी आयोजन कराने से रोके जाने से एक बार फिर स्पष्ट हो गया है कि अब अरब दुनिया के लिए कश्मीर कोई मुद्दा रहा ही नहीं है। पिछले कुछ दशकों में सऊदी अरब और भारत के बीच आर्थिक और रणनीतिक रिश्ते इतने मजबूत हुए हैं, कि अब अरब देशों को कश्मीर मुद्दे से दूर रहने में ही अपनी भलाई नज़र आने लगी है। इसी कारण कुंठित होकर अगस्त महीने में पाकिस्तानी विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने OIC का नेतृत्व कर रहे सऊदी अरब को OIC के इतर एक अलग मुस्लिम मंच स्थापित करने की धमकी तक दे डाली थी, जिसके बाद सऊदी अरब और पाकिस्तान के रिश्तों में तनाव देखने को मिला था।
आज सऊदी अरब और भारत रणनीतिक साझेदारी बन चुके हैं। वर्ष 2014 में देश में मोदी सरकार आने के बाद से UAE, ओमान, बहरीन और सऊदी अरब भारत के बड़े साझेदार बनकर उभरे हैं। यह वही समय था जब दुनियाभर में तेल के दामों में तेजी से गिरावट देखने को मिल रही थी। उस समय अमेरिका द्वारा बड़ी मात्रा में तेल उत्पादन से तेल के दामों में भारी कमी आ गयी थी, जिसके कारण सऊदी की अर्थव्यवस्था को और बड़ा झटका लगा था। पिछले एक दशक से सऊदी भारत की तेल आवश्यकताओं को पूरा करता आया है, तो वहीं भारत भी सऊदी का बड़ा व्यापारिक साझेदार बनकर उभरा है। वर्ष 2017 में सऊदी के कुल ऑइल एक्स्पोर्ट्स का करीब 11 प्रतिशत हिस्सा अकेले भारत ने खरीदा था। इस उभरती आर्थिक साझेदारी का ही परिणाम है कि अरब देशों में से एक भी देश ने कश्मीर, राम मंदिर, CAA और NRC जैसे मुद्दों पर एक शब्द भी नहीं बोला है, जबकि पाकिस्तान हर मुद्दे पर चीख-चीख कर अरब देशों से भारत के खिलाफ बोलने की अपील करता रहा है।
यह कश्मीर मुद्दा ही है, जिसके कारण आजकल पाकिस्तान तुर्की के साथ अपने सम्बन्धों को मजबूत कर रहा है। हालांकि, इसकी वजह से अरब देशों और पाकिस्तान के बीच दूरियां और ज़्यादा बढ़ी हैं। पाकिस्तान को यह समझ लेना चाहिए कि कश्मीर मुद्दे पर अब तुर्की के अलावा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कोई और देश शायद ही उसका साथ दे। साथ ही उसे अरब देशों से किसी प्रकार की सहायता की उम्मीद भी छोड़ देनी चाहिए। पाकिस्तान जितनी जल्दी इस सच्चाई को स्वीकार करेगा, उसके लिए उतना ज़्यादा ही अच्छे रहेगा!