जैसे-जैसे अमेरिका के मौजूदा राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प का कार्यकाल समाप्ती की ओर बढ़ रहा है वैसे-वैसे, वे अपने शुरू किए गए रणनीतिक कार्यों को अंजाम तक पहुंचाने में लगे हैं। इसी में से एक इजरायल और मुस्लिम देशों बीच शांति समझौता करवाना है। UAE और बहरीन के बाद अब सऊदी पर सभी की नजर लगी हुई है। परंतु खबर अब सामने आ रही है कि अमेरिका और कई देश जिनमें से कुछ पाकिस्तान के करीबी भी हैं, पाकिस्तान पर इजरायल के साथ शांति समझौता करने के लिए दबाव बना रहे हैं। हालांकि इमरान खान ने प्रखर हो इजरायल के साथ शांति समझौता करने से इंकार किया है लेकिन कई ऐसे कारण है जो पाकिस्तान को Two State Solution को छोड़ इजरायल के साथ सम्बन्धों को सामान्य करने पर मजबूर कर सकते हैं।
ट्रम्प का आखिरी दांव:
इन कारणों में से पहला है पाकिस्तान को बुरे वक्त में मदद करने वाला सऊदी अरब का दबाव। दरअसल सोमवार को इज़राइली मीडिया ने एक रिपोर्ट के साथ विश्व भर में एक तूफान खड़ा कर दिया जिसमें दावा किया गया था कि प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू सऊदी के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान के साथ एक गुप्त बैठक के लिए सऊदी अरब गए थे। रिपोर्ट में यह भी दावा किया गया था कि बैठक में अमेरिका के विदेश मंत्री माइक पोम्पियो भी थे।
GUARDIAN UK: Benjamin Netanyahu made unannounced trip to Saudi Arabia to meet Saudi Crown Prince Mohammed bin Salman and U.S. Secretary of State Mike Pompeo, according to Israeli cabinet member
— Josh Caplan (@joshdcaplan) November 23, 2020
माना यह जा रहा है कि यह बैठक UAE और बहरीन की तरह सऊदी अरब के भी इजरायल के साथ सम्बन्धों को सामान्य करने के लिए थी। ट्रम्प अपनी विदाई से पहले यह सुनिश्चित कर देना चाहते हैं कि इस्लामिक जगत का सबसे महत्वपूर्ण देश इजरायल के साथ अपने सम्बन्धों को सामान्य बना ले।
ट्रंप सिर्फ सऊदी ही नहीं बल्कि पाकिस्तान पर भी इजरायल के साथ संबंधों को सामान्य करने के लिए दबाव बना रहे हैं। कुछ दिनों पहले ही इमरान खान ने एक इंटरव्यू में यह दावा किया था कि अमेरिका सहित कई देश उन पर इजरायल के साथ संबंधों को सामान्य करने के लिए दबाव बना रहे हैं।
सऊदी का दबाव:
अगर सऊदी अरब यह निर्णय लेता है तो कई इस्लामिक देश उसके नक्शेकदम पर चलने के लिए मजबूर होंगे जिसमें पाकिस्तान भी होगा। Haaretz की एक रिपोर्ट के अनुसार एक सेवारत पाकिस्तानी राजनयिक और एक वरिष्ठ सैन्य अधिकारी के हवाले से यह दावा किया गया था अमेरिका के अलावा सऊदी अरब भी पाकिस्तान पर इजरायल के साथ सामान्य रिश्तों के लिए दबाव बना रहा है।
इस लेख में दावा किया गया था कि रियाद महीनों से इस्लामाबाद पर दबाव बना रहा है, क्योंकि क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान सऊदी अरब से इजरायल के लिए औपचारिक कदम उठाने से पहले “सामान्यीकरण को सामान्य बनाना” चाहते हैं। यानि अगर पाकिस्तान सऊदी से पहले यह कदम उठता है तो अन्य देशों को भी अच्छा संदेश जाएगा। पाकिस्तान, दुनिया का दूसरा सबसे अधिक आबादी वाला मुस्लिम देश है, और एकमात्र परमाणु-हथियार वाला देश भी, अगर वह इजरायल के साथ अपने सम्बन्धों का सामान्यीकरण करता है तो उससे सऊदी के लिए और बेहतर होगा।
यह नहीं भूलना चाहिए कि तुर्की के साथ दोस्ती कर पाकिस्तान ने पहले ही सऊदी के साथ अपने रिश्तों को बिगाड़ने की ओर कदम बढ़ा दिया है लेकिन उसकी डांवाडोल अर्थव्यवस्था को बचाने के लिए सऊदी कहीं गुना अधिक महत्वपूर्ण है। यह सऊदी ही हैं जिसके 2 बिलियन डॉलर ऋण के बाद पाकिस्तान अपनी अर्थव्यवस्था को चला पा रहा है। हालांकि उसके पास चीन है लेकिन उसे भी चीन की विस्तारवादी नीतियों का अंदाजा है और उसे पता है कि चीन सऊदी जैसा विश्वसनीय सहयोगी नहीं है।
अर्थव्यवस्था और UAE से पाकिस्तान के लिए बुरी खबर:
पाकिस्तान इसे पसंद करे या न करे, वह सऊदी अरब और UAE के साथ अधिक निकटता से जुड़ा हुआ है। सिर्फ धर्म से ही नहीं बल्कि अर्थव्यवस्था और पाकिस्तानियों के रोजगार की वजह से भी। तीन लाख से अधिक पाकिस्तानी खाड़ी देशों में काम करते हैं, जो पाकिस्तान की कुल विदेशी मुद्रा कमाई का आधे से अधिक भेजते हैं। ऐसे में सऊदी अरब और U.A.E-तथा मध्य पूर्व के अन्य देशों के साथ जिन्होंने इजरायल को मान्यता देने का फैसला किया है, संबंध तोड़कर पाकिस्तान को कोई फायदा नहीं होगा।
UAE से कई ऐसे रिपोर्ट सामने आ रहीं हैं जिनसे पाकिस्तानियों के खिलाफ रोष बढ़ रहा है। पाकिस्तानियों को UAE में सड़कों पर ताना मारने और उनके लिए “घर जाओ” जैसे नारे लगाने की भी खबर सामने आ रही है। यही नहीं कई फिलिस्तीन समर्थक पाकिस्तानियों को गिरफ्तार करने की भी खबर सामने आई। UAE ने हाल ही में उन 11 देशों के नए वीजा जारी करने पर रोक लगा दी थी जो इजरायल को मान्यता नहीं देते हैं, जिसमे पाकिस्तान का नाम भी था।
अगर इमरान खान इजरायल के साथ सम्बन्धों को सामान्य नहीं करते हैं तो वे पाकिस्तान को सऊदी अरब, यूएई, बहरीन, मिस्र, जॉर्डन, तुर्की, भारत और सूडान जैसे देशों से अलग कर देंगे जिसका भविष्य में भयंकर परिणाम हो सकता है। एक समय अरब फिलिस्तीनियों के सबसे बड़े समर्थक थे लेकिन आज के जियोपॉलिटिक्स को समझते हुए और समय की मांग को देखते हुए अपने विदेश नीति में बदलाव कर रहे हैं। उन्हें यह समझ आगया है कि इजरायल को मान्यता न देने की नीति से कोई हल नहीं निकला और आज, मुस्लिम देश एक-दूसरे के खिलाफ रहते हैं जो बेतुका लगता है।
अगर पाकिस्तान अपने उसी मुस्लिम कारणों में बंधा रह जाता है तो यह उसे बरबादी की ओर ले जाएगा। आज के समय में तुर्की कहीं अधिक बड़ी समस्या है और उससे निपटने के लिए सऊदी और UAE अपने विदेश नीति में बदलाव कर इजरायल के साथ आना चाहते हैं।
हालांकि, कुछ ऐसे भी अनुमान है कि पाकिस्तान की सेना भी हथियारों के मामले में भारत के साथ प्रतिस्पर्धा करने के लिए इजरायल से संबंध बढ़ाने के लिए इक्छुक है। अगर यह सच है तो येकोई सामान्य बात नहीं है क्योंकि पाकिस्तान का डीपस्टेट उसकी सेना ही चलाती है। ऐसे में पाकिस्तान आने वाले कुछ दिनों में अपने विदेश नीति में बदलाव कर इजरायल के साथ सम्बन्धों को सामान्य करने की घोषणा करे तो कोई बड़ी बात नहीं।