देश की राजधानी दिल्ली में वैश्विक महामारी कोरोनावायरस के मामले एक बार फिर से बढ़ने लगे हैं जिसने दिल्ली की आम आदमी पार्टी की सरकार के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की कोविड से जुड़ी नीतियों पर एक बार फिर सवाल खड़े कर दिए हैं। जिस दिल्ली में केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह के उतरने के बाद प्रतिदिन आने वाले कोरोना मरीजों की संख्या में कमी आई थी वो अब फिर रफ्तार पकड़ चुकी है जिसने मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को कठघरे में खड़ा कर दिया है।
दिल्ली में एक दिन में कोरोनावायरस के 7 हजार मामले सामने आए हैं। यहीं नहीं पिछले 10 दिनों से लगातार देश की राजधानी में 5 हजार से ज्यादा केस आ रहे हैं। जिसके बाद मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल समेत उनके मंत्रियों ने इसे दिल्ली में कोरोनावायरस की तीसरी लहर बताया है। उन्होंने इस दौरान लोगों से सभी तरह के सावधानियां बरतने की अपील की है। इसी तरह दिल्ली के स्वास्थ मंत्री भी स्वीकार कर चुके हैं कि दिल्ली में कोरोनावायरस की तीसरी लहर आ चुकी है।
इस मामले में दिल्ली हाईकोर्ट ने भी दिल्ली सरकार को कोरोनावायरस की रोकथाम में असफल रहने के लिए फटकार लगा दी है। जस्टिस हेमा कोहली और जस्टिस सुब्रमण्यम प्रसाद की बेंच ने दिल्ली सरकार को लेकर कहा, “दिल्ली सरकार के लिए बहुत मुश्किल है लेकिन उसे ज़वाब देना चाहिए।” कोर्ट ने सवाल उठाए कि दिल्ली सरकार सरकारी कर्मचारियों के साथ वेतन के मुद्दे पर छींटाकशी कर रही है। कोर्ट ने इसको लेकर कहा कि आप कोरोनावायरस से क्या लड़ेंगे जब आप अपने कर्मचारियों को वेतन ही नहीं दे पा रहे हैं।
दिल्ली सरकार का कहना है कि त्योहार के इस दौर में लोग ज्यादा ढिलाई कर रहे हैं जिससे राज्य में कोरोनावायरस के केस बढ़े हैं। दिल्ली सरकार ने कोरोनावायरस के बढ़ने के लिए प्रदूषण को भी एक बड़ी वजह बताया है। सरकार का कहना है कि दिल्ली में लोग सोशल डिसटेसिंग से लेकर मास्क लगाने जैसी सरकारी गाइडलाइन का पालन नहीं कर रहे हैं।
गौरतलब है कि जब-जब दिल्ली में कोरोनावायरस केस बढ़ने लगते हैं तब-तब दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल समेत उनके कैबिनेट मंत्री आकर वर्चुअल मीटिंगों पर ज्ञान देने लगते हैं और जैसे ही केस कम होते हैं तो ये तुरन्त बाहर निकल जनता के बीच केंद्रीय सरकार और प्रधानमंत्री नरेन्द्र के साथ भिड़ने लगते हैं। सरकारी कर्मचारियों समेत डॉक्टर्स (जिन्हें कोविड वॉरियर कहा गया है।) को अभी तक अपनी सैलरी नहीं मिली है। केजरीवाल सरकार उन्हें सैलरी देने के बजाए उनसे भी भिड़ने पर उतारू हो गई जिस कारण कई डॉक्टर्स और कर्मचारी हड़ताल भी कर चुके हैं लेकिन केजरीवाल के कान में जूं तक नहीं रेंगी है।
लगभग डेढ़ महीने पहले जब दिल्ली में प्रतिदिन 6 हजार केस आने लगे थे तो मामले की संवेदनशीलता को देखते हुए देश के गृहमंत्री अमित शाह खुद ग्राउंड जीरो पर उतरकर हालातों का जायजा लेने लगे थे। रैपिड टेस्टिंग और टेस्टिंग लेकर कोविड सेंटरों का सारा जिम्मा देश के गृहमंत्री ने अपने हाथों में ले लिया था, जिसके बाद स्थिति ऐसी आ गई थी कि प्रतिदिन आने वाले केसों की दर 6000 से मात्र 700 हो गई थी। दिल्ली की स्थितियां इतनी बुरी हो गईं थी कि ग्राउंड जीरो पर उतरकर काम करने वाले अमित शाह खुद कोरोना संक्रमित हो गए थे जिस कारण वो काफी वक्त तक सार्वजनिक जीवन से दूर रहने को मजबूर हो गए थे।
इन सबसे इतर जब देश के गृहमंत्री केसों की संख्या कम कर चुके थे तो दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल ने उन्हें और कम करने का नहीं सोचा वो राजनीति में मस्त हो गए। प्रदूषण से लेकर अन्य सभी मुद्दों पर वो पड़ोसी राज्य की सरकारों को घेरने लगे, और इस दौरान उन्होंने केंद्र को भी निशाने पर लिया। जनता के मुद्दों से इतर वो राजनीति करने लगे और राज्य में अब फिर कोरोनावायरस के मामले बढ़ने पर वो फिर अपने घर में वर्चुअल अड्डा लगा चुके हैं। उनके इस कारनामों ने उनकी नीयत पर सवालिया निशान लगा दिए हैं।
ऐसे में ये कहना गलत नहीं होगा कि जिस दिल्ली में कोरोनावायरस के मामलों की रफ्तार को केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने अपने कर्तव्य निष्ठा से थाम लिया था, जरा सी पकड़ ढीली होने पर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने एक बार फिर उसी दिल्ली को मुसीबतों में ढकेल दिया है।