बिहार में पुराने नताओं को हटाकर, बड़े बदलावों के साथ बीजेपी ने तैयार की नई टीम

राजनीति में ऐसे परिवर्तन बहुत कम ही देखने को मिलते हैँ..

बीजेपी

बिहार में गठबंधन सरकार चलने के कारण बीजेपी की राज्य इकाई के वरिष्ठ नेताओं ने संगठन पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया, जिसका उन्हें अब नुकसान भुगतना पड़ रहा है क्योंकि अब बीजेपी का राष्ट्रीय नेतृत्व बिहार में नए जमीनी नेताओं की टीम तैयार कर रहे है, जिसका उदाहरण वहां के दो डिप्टी सीएम हैं। हाल में विधानसभा स्पीकर के चुनाव में बीजेपी के विजय सिन्हा जीत गए , जो एक और बड़ा चौंकाने वाला निर्णय था। पार्टी में नेतृत्व को धार देने के ये कदम बता रहे हैं कि उसने अब बिहार में नई टीम बनाने का फैसला कर लिया है जो कि जमीनी स्तर पर पार्टी के लिए काम कर सके, और इसीलिए पार्टी पुराने नेताओं का बोझ अपने सिर से उतार रही है।

बीजेपी ने उस दिन ही राज्य की इकाई में नेतृत्व परिवर्तन के संकेत दे दिए थे, जिस दिन बिहार बीजेपी के वरिष्ठ नेता और पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी को इस बार डिप्टी सीएम का पद नहीं दिया था। पार्टी ने एक की जगह दो नए डिप्टी सीएम दे दिए। तारकिशोर प्रसाद को जहां पार्टी ने जातिगत रणनीति के तहत एक नया नेता डिप्टी सीएम बनाया तो दूसरी डिप्टी का पद दिया रेणु देवी को। इसके जरिए जतिगत और महिला सशक्तिकरण दोनों के ही मुद्दों पर पार्टी ने सीधी पकड़ बना ली। इसके साथ ये तय हो गया कि अब बिहार में बीजेपी बदलाव की ओर है।

सुशील मोदी को पहले ही डिप्टी सीएम न बनने पर झटका लग चुका था, लेकिन बीजेपी के ही नेता नंद किशोर यादव ने भी डिप्टी सीएम की उम्मीदें पाल रखी थीं। तारकिशोर प्रसाद नंद किशोर के आगे काफी नए हैं इसके बावजूद बीजेपी ने नंद किशोर को दरकिनार किया। नंद किशोर को उम्मीद थी कि जब डिप्टी सीएम का पद नहीं मिला तो अब स्पीकर का पद तो मिलेगा ही, लेकिन पार्टी ने अपने नेताओं को सक्रिय बनाने का जारी रखा। पार्टी ने स्पीकर के लिए विजय सिन्हा का नाम दे दिया। विजय भूमिहार जाति से आते हैं तो इससे पार्टी ने एक बार जातिगत कार्ड भी खेला और नई टीम के मोर्चे पर तो अपना काम किया ही।

ऐसा नहीं है कि पार्टी ने ये फ़ैसला अचानक लिया है, इसके पीछे पार्टी के शीर्ष नेतृत्व को जमीनी कार्यकर्ताओं से मिलने वाली प्रतिक्रियाओं की बड़ी भूमिका है। बिहार की राजनीति में जितने भी बीजेपी के नेता हैं वो अधिकतर केन्द्र की राजनीति में ही हैं। इनमें रविशंकर प्रसाद से लेकर रामकृपाल यादव और अश्विनी चौबे समेत गिरिराज सिंह का नाम शामिल है। राज्य की राजनीति में बीजेपी के नेताओं ने कभी अपनी सक्रियता दिखाई ही नहीं। कार्यकर्ताओं ने खुद सीएम नीतीश और डिप्टी सीएम सुशील मोदी से लेकर नंद किशोर यादव तक के खिलाफ कैंपेन चलाए और पार्टी को ये संदेश दिया कि नीतीश कुमार की गलत नीतियों को भी बीजेपी के नेता यहां की जनता पर थोपते हैं। गठबंधन में बराबर की भागीदारी होने के बावजूद बीजेपी के हित के मुद्दों को तव्वजो नहीं दी जाती।

ऐसी स्थिति में पहले ही बीजेपी गठबंधन में अब बड़ी पार्टी हो चुकी है जिसके चलते मुख्यमंत्री नीतीश कुमार समेत जेडीयू के किसी नेता का किसी मुद्दे पर बीजेपी के खिलाफ खुलकर बोलना नामुमकिन है। ऐसे में बीजेपी अपनी पुरानी बिहार बीजेपी की टीम को मार्गदर्शक मंडल का रास्ता दिखाते हुए नए चेहरों को जनता के सामने ला रही है जिससे जनता के सामने अगले पांच साल ये सभी बीजेपी नेता सक्रिय रहें। पार्टी चाहती है कि नीतीश के जाने के बाद राज्य की राजनीति में बीजेपी का नेतृत्व करने वाले बड़े नेता हों, और उसे हालिया नेताओं पर भरोसा नहीं रह गया है जिसके चलते अब डिप्टी सीएम से लेकर स्पीकर सभी पदों पर नए चेहरे हैं।

ऐसा नहीं है कि इससे थोड़ी स्थिति असहज नहीं हो रहीं, लेकिन बीजेपी ये रिस्क लेने में तनिक भी परहेज़ नहीं कर रही है क्योंकि ये कठिन फ़ैसले ही आगे पार्टी के भविष्य की दिशा और दशा तय करेंगे। इन नए नेताओं में डिप्टी सीएम, स्पीकर समेत मंगल पांडे जैसे कद्दावर बीजेपी नेताओं के अलावा एक नाम और भी है वो है केंद्रीय मंत्री नित्यानंद राय का। भले ही वो केंद्र में हैं लेकिन इससे उनकी राज्य की राजनीति की प्रासंगिकता पर कोई सवाल नहीं खड़े हो सकते। बीजेपी ने अपने हालिया कदमों से ये दिखा दिया है कि वो काम न करने वाले पुराने नेताओं को पार्टी में एक कोना दिखाने में तनिक भी गुरेज नहीं करेगी, क्योंकि पार्टी के सामने एक लंबा रोड मैप है।

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