बीजेपी ने दक्षिण भारत के दो प्रमुख राज्यों में अपनी पकड़ बनाने के कोई यथार्थ प्रयास नहीं किए। तमिलनाडु जो द्रविड़ राजनीति का गढ़ बन गया और केरल कम्युनिस्टों समेत कांग्रेस और मुस्लिम लीग के तुष्टीकरण के एजेंडों की भेट चढ़ गया। इन सबको बदलने का फैसला बीजेपी ने 2014 में जनता के प्रचंड फैसले के बाद लिया। 2016 में पार्टी ने तमिलनाडु और केरल में चुनाव लड़ा। हार हुई, लेकिन तब से लेकर अब तक पार्टी इन राज्यों में जमीनी स्तर पर काम कर रही है।
2016 में विधानसभा चुनाव के दौरान केरल में पार्टी को 2.86 प्रतिशत वोट मिले थे तो वहीं तमिलनाडु में करीब 10.6 प्रतिशत वोट मिले थे। ऐसे में बीजेपी अब अपना पूरा ध्यान तमिलनाडु की राजनीति में केंद्रित कर रही है। जयललिता के निधन के बाद से ही यहां पर एक राजनीतिक शून्यता है जिसका फायदा उठाने में बीजेपी कोई कोर-कसर नहीं छोड़ना चाहती है। जयललिता की पार्टी हमेशा से ही लेफ्ट विरोधी और सेंटर समेत दक्षिण पंथ की समर्थक रही है।
जयाललिता की पार्टी एआईएडीएमके और डीएमके दोनों ही दविड़ राजनीति कि धुरी हैं। ऐसे में एआईडीएमके के पास कोई बड़ा चेहरा नहीं है जिसकी चलते इस राजनीतिक शून्यता को भरने के लिए बीजेपी अपने कदम उठाना शुरू कर चुकी है। खास बात ये भी है कि भाजपा ये सब एक गैर-द्रविड़ राजनीति को केंद्रित करके कर रही है, और उसका एजेंडा बस हिंदुत्व है।
तमिलनाडु की अधिकांश हिंदू जनसंख्या ऐसी है जो पूजा पाठ और आस्था में विश्वास रखती हैं। ऐसे में पार्टी लालकृष्ण आडवाणी की रथयात्रा की तरह ही अब राज्य में 6 नवंबर को भगवान मुरुगन के सम्मान में वेल यात्रा करने की योजना बना रही थी जिससे हिंदुओं को आकर्षित किया जा सके। ये यात्रा तमिलनाडु के उत्तर में तिरुत्तानी मंदिर से तिरूचेंदूर मंदिर तक प्रस्तावित थी। गौरतलब है कि मुरुगन दक्षिण भारत में भगवान शिव के पुत्र कार्तिकेय को कहा जाता है और यहां उन्हीं की पूजा होती है। अब इन रवैयो के बाद अमित शाह 21 नवंबर को तमिलनाडु की यात्रा पर आने वाले हैं।
गौरतलब है कि राज्य कि एआईडीएमके सरकार ने इस यात्रा को लेकरअनेकों प्रतिबंध लगाए हैं और यात्रा की अनुमति नहीं दी है। इसके खिलाफ बीजेपी ने जमकर प्रदर्शन किए और उनके राज्य बीजेपी अध्यक्ष एल मुरुगन को गिरफ्तार कर लिया गया। इस मामले को लेकर राष्ट्रीय महिला मोर्चा की राष्ट्रीय अध्यक्ष विनाथी श्रीनिवासन ने कहा कि अगर सरकार ऐसे हम पर केस लगाएंगी तो हम इस स्थिति से निपटने के लिए तैयार हैं। बीजेपी यहां उसी नीति पर आगे बढ़ रही है जो कि उसने बंगाल में अपनाई थी।
पिछले कुछ महीनों में बीजेपी लगातार यहां अपना किला बनाने पर जोर दे रही है जिससे उसे फायदा हो सके। हाल ही में तमिल फिल्म इंडस्ट्री की अभिनेत्री खुशबू सुंदर भी कांग्रेस छोड़ बीजेपी में आ गईं थीं और उन्होंने जमकर बीजेपी की तारीफ करते हुए कांग्रेस पर दबाव बनाकर रखने का आरोप लगाया था।
तमिलनाडु के इस राजनीतिक माहौल में जल्द ही देश के गृहमंत्री और बीजेपी के वरिष्ठ नेता अमित शाह अपना दौरा करने वाले हैं। इस दौरान वो राज्य की जनता से भी रूबरू होंगे। इसी कारण अमित शाह के आने से पहले पार्टी राज्य में अपनी स्थिति को बेहतर करने पर काम कर रही है। खुशबू असल में तमिलनाडु के सिनेमा में महिलाओं के आकर्षण का केंद्र है जो कि खुशबू को पसंद करती हैं ,बीजेपी के लिए एक प्लस पॉइंट है। बीजेपी डीएमके नेता करुणानिधि के छोटे बेटे को अपने साथ लाना चाहती है जिसे उनके बड़े भाई ने किनारे कर दिया है।
When your journey is cut short by force, you know you are on right track. I question @AIADMKOfficial n #CM of TN @EPSTamilNadu avl, why we are denied of our democratic right for a peaceful protest when other parties are given the permission to do the same? Why this partiality?
— KhushbuSundar (Modi ka Parivaar) (@khushsundar) October 27, 2020
एक तरफ करुणानिधि के बेटे अलागिरी के लिए ये सबसे बड़ा फायदा होगा, और इसके जरिए बीजेपी राज्य में अपनी जमीन मजबूत करना चाह रही है। कई बीजेपी नेताओं ने भी अंदरखाने ये बातें कहना शुरू कर दी हैं। बीजेपी अब तमिलनाडु में इस गैर-द्रविड़ राजनीति की शून्यता को भरने में कामयाब हो सकती है क्योंकि वो यहां अपने हिंदुत्व का शानदार विकल्प रख रही है जो कि द्रविड़ राजनीति के अंत की पटकथा लिखेगा, साथ ही अमित शाह का दौरा राज्य में एक नए राजनीतिक समीकरण को जन्म भी दे सकता है।