कहते हैं, समय बदलते देर नहीं लगती, और चीन से बेहतर ये बात कौन जान सकता है। जब राष्ट्रपति चुनाव के दौरान जो बाइडन और डोनाल्ड ट्रम्प में मुकाबला ज़ोरों पर था, तब चीन चाह रहा था कि बाइडन चुनाव जीते, क्योंकि उन्हें आशा थी कि बाइडन चीन की नैया पार लगाएंगे। लेकिन अब जब बाइडन के राष्ट्रपति बनने के आसार ज्यादा दिखाई दे रहे हैं, तो चीन का बाइडन से मोहभंग हो गया है।
हाल ही में प्रकाशित ग्लोबल टाइम्स के एक लेख में इस बात पर ध्यान देने का पूरा प्रयास किया गया है कि कैसे बाइडन आए या ट्रम्प, चीन के विरुद्ध अमेरिका की नीतियों पे कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है। अपने लेख में ग्लोबल टाइम्स बताता है, “अमेरिका के नेतृत्व में बदलाव भले ही हो जाए, परंतु वाशिंगटन की चीन नीति में कोई विशेष बदलाव नहीं होने वाला। विश्लेषकों का मानना है कि बाइडन की चीन नीति ओबामा वाली चीन नीति की ओर कतई नहीं मुड़ने वाली, और बाइडन से इस दिशा में आशा करना बेकार है।”
लेकिन ऐसा भी क्या हुआ, जो चीन का बाइडन से मोहभंग हो गया? ऐसा इसलिए है क्योंकि अभी भले ही बाइडन के राष्ट्रपति बनने की संभावनाएँ ज्यादा हो, परंतु 20 जनवरी तक शासन डोनाल्ड ट्रम्प के हाथ में ही है, और यदि सुप्रीम कोर्ट ने उनके पक्ष में निर्णय सुनाया, तो शायद वे सत्ता में वापसी भी कर सकते हैं।
चीन अपनी सोच में गलत भी नहीं है, क्योंकि हाल ही में ट्रम्प प्रशासन ने एक अहम निर्णय में अमेरिका द्वारा उन सभी कंपनियों में निवेश पर प्रतिबंध लगाने का निर्णय लिया गया, जिनमें प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर से चीनी सेना के साथ संबंध पाए गए हो ।
इसी परिप्रेक्ष्य में ग्लोबल टाइम्स ने अपने लेख में आगे ये भी लिखा, “बाइडन से अधिक उम्मीदें लगाना व्यर्थ है, क्योंकि चीन को नियंत्रण में रखने की नीति दोनों अमेरिकी पार्टियों के लिए समान प्राथमिकता है। ग्लोबल टाइम्स से बातचीत के अनुसार सेंटर फॉर स्ट्रेटीजिक एंड इंटेरनेश्नल सेक्युरिटी स्टडीज़ ऑफ द यूनिवर्सिटी ऑफ इंटेरनेश्नल रिलेशन्स बीजिंग के निदेशक डा वेई ने बताया, “बाइडन की नीति ट्रम्प काल से अवश्य प्रभावित होगी। सच कहें तो चीन से संबंधी नीतियों में ट्रम्प की कृपया से एक व्यापक बदलाव हुआ है, जिसका वापिस लिया जाना लगभग असंभव है”।
चीन की ये शंका यूं ही नहीं है, क्योंकि पिछले कुछ दिनों में बाइडन द्वारा विदेशी नीतियों के परिप्रेक्ष्य में लिए गए निर्णय भी इसी ओर इशारा करते हैं। उदाहरण के लिए बाइडन ने हाल ही में जापानी प्रधानमंत्री सुगा से बात की और विश्वास दिलाया कि अमेरिका-जापान का सुरक्षा समझौता सेनकाकू द्वीपों पर भी लागू होगा। इसके साथ ही दोनों नेताओं ने “Free and Open Indo Pacific” के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को भी जाहिर किया। अमेरिका जापान अति महत्वपूर्ण Quad समूह के सदस्य हैं और इन दोनों का सहयोग चीन के बढ़ते खतरे से निपटने के लिए बेहद महत्वपूर्ण है।
इसी प्रकार बाइडन ने दक्षिण कोरिया के नेता मून-जे-इन से भी बात की है। दोनों देशों ने द्विपक्षीय रिश्तों को आगे बढ़ाने और कोरियन द्वीप के denuclearization के मुद्दे को आगे बढ़ाने को लेकर चर्चा की। ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री Scott Morrison ने भी बाइडन से बात की है और उनके साथ पर्यावरण और Indo Pacific जैसे मुद्दों पर चर्चा की। बाइडन का राष्ट्रपति बनना अभी तय नहीं हुआ है और अमेरिका की कूटनीति को आगे बढ़ाने के लिए विदेश मंत्री Mike Pompeo पहले ही 7 देशों के टूअर का ऐलान कर चुके हैं। दूसरी ओर अभी तक चीन और रूस जैसे देशों ने बाइडन की जीत को आधिकारिक स्वीकृति भी प्रदान नहीं की है।
सच कहें तो जो बाइडन की संभावित विजय से चीन बिल्कुल भी खुश नहीं है, क्योंकि उसे भय है कि कहीं बाइडन उनका साथ देने के बजाए अपनी जुबान से न पलट जाए। इसके अलावा जिस प्रकार से फ्रेंच राष्ट्रपति मैक्रो ने हाल ही में अपने तेवर दिखाए हैं, उससे चीन को ये भय भी है कि कही ऐसा न हो कि बाइडन ट्रम्प से भी अधिक चीन विरोधी नीतियों को बढ़ावा दें!