चिराग का राजनीतिक दांव हुआ कामयाब, खुद तो डूबे ही नीतीश को भी कहीं का नहीं छोड़ा

नीतीश की बर्बादी की असली कहानी तो चिराग ने लिखी है..

चिराग

बिहार चुनावों के परिणाम आ चुके हैं और NDA 125 सीटों के साथ सरकार बनाने जा रही है। वहीं महागठबंधन को 110 सीटों से संतोष कर एक बार फिर से विपक्ष में बैठना होगा। इस चुनाव में एक बात जो सबसे अहम देखने को मिली, वो है लोजपा और जदयू की टक्कर। अगर यह कहे कि चिराग पासवान ने राजनीति में सुसाइड स्क्वॉड स्ट्रेटजी को अपनाते हुए अपना सबसे पहला निशाना नीतीश कुमार को बनाया तो यह गलत नहीं होगा।

जो नीतीश कुमार हर चुनाव में अधिक सीट के साथ NDA में बड़े भाई की भूमिका में रहते थे, वही नीतीश कुमार को लोजपा के कारण बीजेपी के 74 के मुकाबले सिर्फ 43 सीटों पर जीत मिली। इससे सिर्फ नीतीश कुमार का NDA में कद ही नहीं घटेगा बल्कि अगर वे मुख्यमंत्री बनते हैं तो सरकार पर उनकी पकड़ भी ढीली होगी।

लोजपा ने उम्मीद की थी कि वह जदयू को टक्कर देगी और अधिक सीटों पर कब्जा जमाएगी। हालांकि, ऐसा हुआ नहीं और लोजपा के कुल 134 सीटों पर चुनाव लड़ने के बावजूद सिर्फ एक सीट पर जीत मिली है। परन्तु यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि जहां भी लोजपा ने चुनाव लड़ा वहां वह जदयू के वोट बैंक पर हमला करती नजर आयी जिसका नतीजा यह हुआ कि नीतीश कुमार की पार्टी को कई विधानसभा सीटों को बेहद कम अंतर से गंवाना पड़ा।

उदाहरण के लिए देखा जाए तो करहगर विधानसभा

चुनाव में जदयू प्रत्यासी वशिष्ठ सिंह, कांग्रेस से मात्र 2 प्रतिशत वोट से हार गए लेकिन लोजपा का वोट प्रतिशत देखा जाए तो 8.6 % रही। यानी अगर लोजपा एनडीए में रहती या नीतीश कुमार से चिराग पासवान नाराज नहीं होते तो यह 8 प्रतिशत वोट जदयू के खाते में आया होता और वे आसानी से जीत जाते।

इसी तरह के नजदीकी परिणाम अत्री विधानसभा क्षेत्र से भी देखने को मिला।

इस विधानसभा क्षेत्र से जदयू के उम्मीदवार को RJD के हाथो मात्र 5 प्रतिशत वोट से हारना पड़ा, जबकि लोजपा के उम्मीदवार को कुल 15 प्रतिशत वोट मिले। कई क्षेत्रों में तो जदयू बेहद कम मार्जिन से जीतने में कामयाब रही नहीं तो वहां भी लोजपा ने खेल बिगाड़ दिया था।

एनडीए से अलग होकर लड़ रही लोक जनशक्ति पार्टी की कमान संभाल रहे चिराग पासवान ने नीतीश की सत्ता उखाड़ने का दावा किया था, हालांकि सत्ता से वे उखाड़ तो नहीं पाए लेकिन उन्हें कमजोर अवश्य कर दिया है।

लोक जनशक्ति पार्टी ने कुल 134 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे, लेकिन सिर्फ एक सीट हासिल कर सकी। यहां ध्यान देने वाली बात वोट प्रतिशत है। लोजपा को वाम दलों से अधिक 5. 6 प्रतिशत वोट मिला जो पिछले बार से अधिक था।

वहीं नीतीश कुमार की जदयू ने पिछली बार के 2015 विधानसभा चुनावों में 70 सीटों पर जीत हासिल की थी और आरजेडी के बाद दूसरी सबसे बड़ी पार्टी थी। इस बार लोजपा ने ऐसा खेल बिगाड़ा की नीतीश कुमार 43 सीटों पर लुढ़क गए और अब उनकी स्थिति NDA में इतनी कमजोर हो गई की अब वे मनमानी से फैसले नहीं ले सकते हैं।

चिराग पासवान चुनावों के कई महीने पहले से ही नीतीश पर हमला शुरू कर दिया था, चाहे वो कोरोना का मामला हो या नौकरी का, किसी भी मुद्दे पर चिराग ने नीतीश को नहीं छोड़ा था। चिराग पासवान को यह पता था कि उनकी पार्टी उतनी सीटें नहीं जीत सकती जितनी की वह उम्मीद कर रहे हैं, लेकिन जदयू का खेल जरूर बिगाड़ सकती है। चिराग ने पीएम मोदी के नाम पर कभी उनका भक्त बता कर तो कभी स्वयं को ही हनुमान बता कर वोट मांगते नजर आए, जिसका परिणाम यह हुआ कि नीतीश से नाराज़ जनता LJP को वोट देती गई और इससे JDU कमजोर होती गई।

ऐसा लगता है कि यह चिराग पासवान का अमित शाह के साथ मिल कर नीतीश कुमार को कमजोर करने का रामबाण तरीका था। यह चिराग की एक सुसाइड स्क्वॉड स्ट्रेटजी थी जिसंमे स्वयं के अस्तित्व को डर नहीं था, बल्कि सामने वाले को हराना एक मात्र लक्ष्य था, जिसमें वे सफल भी हुए।

 

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