दुनिया की मेनस्ट्रीम Geopolitics में कम होते प्रभाव के बीच अब जर्मनी ने अपनी कूटनीति को हवा देने के लिए Indo-Pacific में धमाकेदार एंट्री लेने का फैसला लिया है। जर्मनी के रक्षा मंत्री Annegret Kramp के मुताबिक जर्मनी अब जल्द ही Indo-Pacific में अपने युद्धपोत को तैनात कर सकता है, जो कि “इस क्षेत्र में अंतर्राष्ट्रीय कानून और नियमों को लागू करने में सहायक सिद्ध होगा।”
जर्मनी एक तरफ़ चीन से दूरी बनाता जा रहा है, तो वहीं अब वह भारत और Quad के साथ नज़दीकियाँ बढ़ा रहा है। भारत के विदेश सचिव हर्षवर्धन शृंगला जर्मनी के दौरे पर हैं और इस दौरान दोनों देश “रणनीतिक साझेदारी” को आगे बढ़ाने पर ज़ोर दे रहे हैं। दोनों देश आतंकवाद की समस्या के समाधान के लिए भी साथ मिलकर काम कर रहे हैं।
जर्मनी को कभी चीन के प्रति सबसे नर्म रुख रखने वाले देश के तौर पर जाना जाता था। हालांकि, अब उसकी नीति देखकर साफ कहा जा सकता है कि उसने चीनी कम्युनिस्ट पार्टी को डंप कर Quad का हाथ थामने का फैसला ले लिया है, ताकि अंतर्राष्ट्रीय जगत में उसकी प्रासंगिकता बनी रहे! जर्मनी के विदेश मंत्री के एक बयान के मुताबिक “जर्मनी को भी अब Indo-Pacific में अपनी मौजूदगी को ज़ाहिर करना है, हम आने वाले सालों में अपने डिफेंस बजट को बढ़ाने वाले हैं, हमें Indo-Pacific में शक्ति प्रदर्शन करना ही होगा।”
जर्मनी अचानक से “चीनी खतरे” के प्रति सजग दिखाई दे रहा है। पहले जर्मनी बीजिंग से कोई पंगा मोल नहीं लेना चाहता था, क्योंकि जर्मनी चीन को एक खतरे के रूप में देखता ही नहीं था। अब जर्मनी को यह अहसास हो गया है कि अगर उसे वैश्विक राजनीति में अपनी जगह बनाए रखनी है, तो उसे Indo-Pacific के रण में कूदना ही होगा और लोकतान्त्रिक देशों के चीन-विरोधी गुट में अपनी अहम भूमिका निभानी ही होगी! जिस प्रकार भारत के विदेश सचिव ने अपने दौरे के दौरान जर्मनी के विदेश सचिव, वहाँ की मीडिया और थिंक टैंक्स के साथ वार्ता की है, उससे स्पष्ट हो गया है कि भारत भी अब Indo-Pacific में जर्मनी के स्वागत के लिए पूरी तरह तैयार है।
Strategic Partners #India and #Germany continue high-level exchange during challenging times.
Foreign Secretary @harshvshringla begins 12 hours of back-to-back engagements in Berlin, at the Federal Chancellery, Foreign Office, and with the media and leading think tanks. pic.twitter.com/nn24xT98Vs
— India in Germany (@eoiberlin) November 2, 2020
जर्मनी ने हाल ही में अपनी Indo-Pacific नीति को भी जारी किया था, जिसका एकमात्र मकसद क्षेत्र में चीन का रणनीतिक घेराव करना है। भारत और जर्मनी सिर्फ रणनीतिक स्तर पर ही सहयोग को बढ़ावा नहीं दे रहे हैं, बल्कि दोनों देश चीन पर आर्थिक चोट करने की भी तैयारी कर रहे हैं। विदेश सचिव द्वारा जर्मनी के दौरे के दौरान दोनों देश अपनी सप्लाई चेन की चीन पर कम से कम निर्भरता सुनिश्चित करने को लेकर भी विचार कर रहे हैं।
जर्मनी की प्राथमिकताएँ अब बदल चुकी हैं। पहले यूरोप के लिए चीन सबसे अहम था, अब उसके लिए Quad बेहद महत्वपूर्ण हो गया है। उदाहरण के लिए जर्मनी अब Indo-Pacific में ऑस्ट्रेलियन नेवी के साथ मिलकर सहयोग करेगा और इसके साथ ही जर्मनी अपने Navy officers को ऑस्ट्रेलियाई नौसेना के साथ Indo-Pacific में तैनात कर सकता है। इतना ही नहीं, जर्मनी जापान के साथ मिलकर एनर्जी सेक्टर में सहयोग को बढ़ावा दे सकता है। स्पष्ट है कि जर्मनी अब Quad शक्तियों के साथ सहयोग को बढ़ाकर दुनिया में अपने “Major power” के दर्जे को बरकरार रखना चाहता है।
बेशक अब तक जर्मनी चीन के साथ उसकी आर्थिक साझेदारी का भरपूर फायदा उठाता आया है, लेकिन अब जर्मनी समेत अधिक से अधिक पश्चिमी ताकतों को चीन के साथ साझेदारी की भारी कीमत का अहसास हो रहा है। आने वाले दिनों में जर्मनी Quad के साथ अपने सहयोग को और बढ़ा सकता है। Indo-Pacific में बर्लिन की बढ़ती भूमिका के साथ ही भारत-जर्मनी के रिश्तों में और मजबूती आना भी निश्चित है।