गोरखालैंड के नेताओं का ममता बनर्जी से हाथ मिलाना उनके खुद के अस्तित्व को मिटा देगा

अपने नेताओं के सेल्फगोल की कीमत गोरखा चुकाएंगे !

गोरखालैंड

pc -patrika

पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव से पहले गोरखालैंड का मुद्दा एक बार फिर चर्चा का विषय बन गया है। ये मुद्दा हल हो या न हो लेकिन इसके जरिए राजनीतिक पार्टियां अपने हित साधती रहती हैं। गोरखा जनमुक्ति मोर्चा का हाल भी अब ऐसा ही हो गया है जिसके नेता बिमल गुरुंग राजनीतिक स्वार्थ की सिद्धि के लिए एक नए ही रंग में आ गए है और उनको ये लालच कहीं और से नहीं बल्कि ममता बनर्जी से मिला हैं, जो कि कभी-भी इस संवेदनशील मुद्दे को हल कर ही नहीं सकती हैं। इसके पीछे दोनों ही लोगों का राजनीतिक स्वार्थ छिपा है।

दरअसल, लंबे वक्त से मुख्यधारा से दूर रहे गोरखा जनमुक्ति मोर्चा के नेता बिमल गुरुंग हाल ही में अचानक ही कोलकाता पहुंच गए और इसके बाद उन्होंने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि उनकी पार्टी जीजेएम 2021 विधानसभा चुनावों में ममता बनर्जी की पार्टी टीएमसी को समर्थन देने के लिए बीजेपी के नेतृत्व वाली एनडीए से अपना गठबंधन तोड़ सकती है। उनका ये ऐलान गोरखालैंड की मांग को लेकर एक बड़ा राजनीतिक एजेंडा हो सकता हैं, जोकि पश्चिम बंगाल की पूरी राजनीति को एक नई धुरी की ओर मोड़ सकता है।

गौरतलब है कि 2017 में दर्जिलिंग के इलाके में गुरुंग के नेतृत्व में हुए हिंसक आदोलन के बाद ममता सरकार ने उनके खिलाफ एक्शन लेते हुए यूएपीए एक्ट लगा दिया था जिसके चलते उन्हें राज्य में दर-दर भटकना पड़ रहा था। उन्हें राजनीतिक शरण की आवश्यकता थी। इस दौरान वो कहीं भी नहीं दिखाई दिए, लेकिन उन्हें अचानक दिल्ली में बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा के बेटे की शादी के फंक्शन में देखा गया था, उस दौरान बंगाल पुलिस उन्हें पकड़ नहीं पाई थी।

2019 के लोकसभा चुनाव में भी गुरुंग ने बीजेपी के समर्थन किया था। जीजेएम की गोरखालैंड के मुद्दे पर काफी राजनीतिक पकड़ भी है। इसलिए बीजेपी को भी इससे फायदा हुआ हैं, लेकिन उन चुनावों में भी ममता सरकार इनके पीछे हाथ धो के पड़ी थी। गुरुंग ने बीजेपी की मदद तो की लेकिन छिप-छिप कर, क्योंकि सामने आ जाते तो जेल में होते। ऐसे में बीजेपी की जीत तो हुई लेकिन राज्य में गुरुंग को वैसे ही छिप कर गुजारा करना पड़ रहा था। जीजेएम की राजनीतिक पकड़ कमजोर पड़ रही थी जिसके बाद अब उन्होंने एक नया ही दांव चल दिया है।

बिमल गुरंग को लेकर ममता के चुनावी सलाहकार प्रशांत किशोर एक नया राजनीतिक गणित लेकर चल रहे थे जिसके तहत अंदरखाने दोनों के बीच बातचीत जारी थी। बीजेपी के लगातार बढ़ते दायरे के चलते टीएमसी 2021 चुनाव से पहले खुद को मजबूत करने पर काफी तेजी से काम कर रही है। ममता भी चाहती हैं कि गोरखाओं का वोट उनके खाते में आए लेकिन ये इतना आसान नहीं है। इसीलिए टीएमसी जीजेएम के साथ एक नया राजनीतिक दांव चलने जा रही है। संभावनाएं हैं कि जल्द ही ममता और गौरंग के बीच मुलाकात भी हो सकती है।

गौर करने वाली बात है कि जो बंगाल पुलिस लगातार बिमल गुरुंग को गिरफ्तार करने के लिए तत्पर थी वो अचानक मूक दर्शक बन गई। बिमल गुरुंग ने सरेआम बंगाल की राजधानी में प्रेस कॉन्फ्रेंस की। वो घूमते रहे और बंगाल पुलिस उन्हें हाथ तक नहीं लगा सकी। इसका साफ संदेश ये है कि बंगाल सरकार की एक तगड़ी सांठ-गांठ गुरुंग से हो गई हैं जो कि राजनीतिक लिहाज से दोनों के लिए फायदेमंद है।

गोरखालैंड बनाना बीजेपी का एजेंडा है। बीजेपी ने अपने चुनावी घोषणा पत्रों में ये साफ कहा था कि वो गोरखालैंड बनाने की मांग का पूर्णतः समर्थन करती है। हाल ही में गृह मंत्रालय की इस मुद्दे पर बैठक भी हुई थी जो दिखाता है कि वो इस मुद्दे पर आगे बढ़ने के लिए प्रतिबद्ध है।

गुरुंग अपना राजनीतिक भविष्य बचाने के लिए ममता के साथ जाने को तैयार हो गए हैं, तो दूसरी ओर राज्य में विधानसभा चुनाव को देखते हुए टीएमसी को भी जीजेएम की जरूरत है। ऐसे में इन दोनों ने एक दूसरे की जरूरतों को देखते हुए हाथ मिलाने का निर्णय किया है जो कि इन दोनों के लिए राजनीतिक रूप से तो काफी महत्वपूर्ण हो सकता है लेकिन गोरखालैंड के आम लोगों की दृष्टि से ये काफी अफसोसजनक बात होगी क्योंकि राजनीतिक एजेंडे के लिए गोरखालैंड का मुद्दा उठाने वाले जीजेएम के नेता ही विरोधी नीयत वाली सरकार  के साथ मिल गए हैं।

Exit mobile version