भारत ने वियतनाम के साथ किया समुद्री-डाटा साझा करने का करार, चीन की बढ़ी मुश्किलें

अब भारत चीन को उसी की चाल से पटखनी

वियतनाम

दिन प्रतिदिन इंडो-पैसिफिक में चीन के लिए मुश्किलें बढ़ती जा रही हैं। अब एक नई खबर में भारत ने वियतनाम के साथ हाइड्रोग्राफी के क्षेत्र में सहयोग करने वाले समझौते पर हस्ताक्षर किया है। 

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और उनके वियतनामी समकक्ष जनरल Ngo Xuan Lich ने शुक्रवार को वीडियो-कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए इस बेहद महत्वपूर्ण समझौते पर हस्ताक्षर किया।

बता दें कि हाइड्रोग्राफी की प्रक्रिया के जरिये महासागरों और समुद्रों की भौतिक विशेषताओं के माप और विवरण के साथ-साथ नेविगेशन की सुरक्षा के प्राथमिक उद्देश्य के लिए समय के साथ उनके परिवर्तन से संबंधित जानकारी जुटाई जाती है। यही नहीं महासागरों में मौजूद खनिज और तेल का भी पता लगाया जाता है। यानि आसान शब्दों में कहें तो हाइड्रोग्राफी से हम समुद्र के बारे में पता लगाते हैं जिससे वहाँ नेविगेशन आसान हो जाए और अगर किसी प्रकार का खनिज मौजूद है तो उसका दोहन हो सके।  

इसी वर्ष अगस्त में वियतनाम के राजदूत ने भारत के विदेश सचिव हर्षवर्धन श्रृंगला से मुलाक़ात के दौरान यह पेशकश की थी कि भारत दक्षिण चीन सागर में आकर यहाँ के खनिज पदार्थों और तेल जैसे बहुमूल्य संसाधनों की खोज कर सकता है।

वार्ता के दौरान, दोनों मंत्रियों ने भारत-वियतनाम रक्षा सहयोग के मजबूत होने की पुष्टि की जो दोनों देशों के बीच व्यापक रणनीतिक साझेदारी का एक प्रमुख स्तंभ है। 

यह सर्वविदित है कि वियतनाम ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल खरीदने में दिलचस्पी रखता है जिससे वह दक्षिण चीन सागर में बीजिंग की गुंडागर्दी का मुंहतोड़ जवाब दे सके। यही नहीं वियतनामी सैनिक भी अपने पानी के भीतर युद्ध कौशल को सुधारने के लिए भारत में प्रशिक्षण लेते हैं। अब इस समझौते के बाद भारत को वियतनाम के EEZ में हाइड्रोग्राफी, ड्रिलिंग और खनिजों का पता लगाने के लिए रिसर्च की अनुमति होगी जो चीन के लिए किसी बुरे संपने से कम नहीं है। 

बता दें कि भारत और वियतनाम के बीच संबंधों, विशेष रूप से रक्षा संबंधों को भारत की look East नीति से काफी लाभ हुआ है।

भारत और वियतनाम के बीच बढ़े हुए द्विपक्षीय सैन्य सहयोग में खुफिया जानकारी साझा करना, सैन्य उपकरणों की बिक्री, आतंकवाद और संयुक्त नौसेना अभ्यास और जंगल युद्ध में प्रशिक्षण शामिल है। भारतीय सेना ने नियमित रूप से वियतनामी समुद्रों की सद्भावना यात्राओं के लिए अपने युद्धपोतों को तैनात किया है। अब हाइड्रोग्राफी पर समझौते से भारत की सेना की मौजूदगी भी बढ़ेगी। यह खबर ही चीन के पसीने छुड़ाने के लिए काफी है। 

पिछले कुछ महीनों में QUAD के सभी देशों ने वियतनाम पर अपना ध्यान केन्द्रित किया है। भारत भी चीन से निपटने के लिए वियतनाम को हरसंभव मदद कर रहा है उसके बदले में भारत को उस क्षेत्र में रणनीतिक बढ़त मिल रही है। इस बात में कोई दो राय नहीं है कि वियतनाम की Geopolitical location बेहद महत्वपूर्ण है। यह देश चीन के ठीक दक्षिण में है, और दक्षिण चीन सागर के ठीक पश्चिम में! ऐसे में अगर चीन के लिए किसी देश से सबसे ज़्यादा मुश्किलें खड़ी की जा सकती है, तो वह वियतनाम ही है। 

वियतनाम अब खुद चाहता है कि दक्षिण चीन सागर में अमेरिका के साथ-साथ उसे और भी बड़ी ताकतों का साथ मिले। इसी कड़ी में वह भारत के साथ भी नज़दीकियाँ बढ़ा रहा है। अब भारत के साथ वियतनाम के हाइड्रोग्राफी पर सहयोग के समझौते के बाद चीन को आर्थिक और रणनीतिक, दोनों मोर्चों पर ज़बरदस्त झटका लगेगा। चीन दक्षिण चीन सागर को अपनी निजी संपत्ति मानता है, जहां उसे चुनौती देने वाला कोई बड़ा देश नहीं है। लेकिन यदि भारत ने यहाँ अपने पाँव जमा लिए, तो चीन के लिए ये किसी बुरे सपने से कम नहीं होगा। चीन की सोच के विपरीत भारत की सबसे बड़ी ताकतों में से एक है भारतीय नौसेना, जिसे यदि दक्षिण चीन सागर में एंट्री मिली, तो रणनीतिक तौर पर ये चीन के लिए काफी घातक होगा।

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