‘इंडो-पैसिफिक छोड़, “एशिया-पैसिफिक” नीति अपनाओ बाइडन’, जिनपिंग अब तय कर रहे बाइडन की विदेश नीति

बाइडन

PC: ABC

अमेरिकी राष्ट्रपति चुनावों में डोनाल्ड ट्रम्प की हार, और जो बाइडन की जीत जियोपॉलिटिक्स में एक भारी बदलाव का कारण बनने जा रही है। जो बाइडन के चीन के प्रति नर्म रुख से सभी परिचित हैं और अब चीन ने इसी का फायदा उठाना शुरू कर दिया है। चाहे तो यूरोप हो या अफ्रीका, खाड़ी के देश हो या फिर इंडो पैसिफिक हो, चीन एक बार फिर से अपनी पकड़ बनाने के लिए प्रोपोगेंडा आरंभ कर दिया। इसकी शुरुआत उसने ग्लोबल टाइम्स में एक लेख प्रकाशित कर किया जिसमें बाइडन को “इंडो-पैसिफिक” छोड़, “एशिया-पैसिफिक” नीति अपनाने की सलाह दी है। यह नाम कारण चीन इसलिए बदलना चाहता है क्योंकि “इंडो-पैसिफिक” होने से भारत को किसी भी देश की विदेश नीति में अधिक महत्व मिलता है और चीन यही नहीं चाहता है। ऐसा लगता है कि शी जिनपिंग जो बाइडन के इंडो-पैसिफिक नीतियों को प्रभावित कर अपने अनुसार चलना चाहते हैं और चीन को केंद्र में रखना चाहते हैं।

ग्लोबल टाइम्स ने अपने लेख में लिखा है कि बाइडन को अब अपने एशियाई विदेश नीति को डोनाल्ड ट्रम्प की इंडो-पैसिफिक को छोड़ देना चाहिए जो चीन को टार्गेट करने के लिए प्रसारित किया गया था। ग्लोबल टाइम्स ने अपने ही प्रोपेगेंडावादी अंदाज में लिखा है कि, “एशिया और प्रशांत का वर्णन करने के लिए दो भौगोलिक अवधारणाएं हैं: ‘एशिया- पैसिफिक’ और ‘इंडो-पैसिफिक’। ‘एशिया- पैसिफिक’ शब्द ट्रम्प प्रशासन से पहले उपयोग किया जाता था लेकिन ट्रम्प के पद संभालने के बाद, ‘इंडो-पैसिफिक’ के उपयोग होने लगा। दोनों शब्दों का वर्तमान में राजनीतिक अर्थ एक जैसा ही है, लेकिन सूक्ष्म अंतर हैं। ‘एशिया-पैसिफिक’ में आर्थिक और सहयोग शामिल हैं, जबकि ‘इंडो-पैसिफिक’ शब्द सीधे तौर पर भूराजनीतिक प्रतिस्पर्धा और गठबंधन टकराव से जुड़ा हुआ है।“

यहाँ चीन यह कहना चाहता है कि पैसिफिक में इंडो यानि भारत जुड़ने से तनावपूर्ण शब्द हो जाता है। यह हास्यास्पद ही है कि चीन ऐसे शब्दों के इस्तेमाल पर इतनी गहरी रुचि रखता है। प्रोपोगेंडा में शब्दों के इस्तेमाल का विशेष महत्व होता है जिससे लोगों के दिमाग पर प्रभाव छोड़ा जा सके और चीन से बेहतर इस बात कौन समझ सकता है। शायद इसलिए शी जिनपिंग ‘इंडो-पैसिफिक’ नाम से भारत को मिलने वाले लाभ के डर से ‘एशिया- पैसिफिक’ करवाना चाहते हैं।

ग्लोबल टाइम्स ने आगे लिखा कि ‘एशिया- पैसिफिक’ काफी हद तक इस क्षेत्र में अमेरिकी भू-राजनीतिक युद्धाभ्यास को संतुलित करता है। इसलिए, लोग “एशिया-प्रशांत” नाम से अधिक सकारात्मक महसूस कर सकते हैं।

CCP के इस मुखपत्र ने आगे लिखा कि, ‘एशिया- पैसिफिक’ के विपरीत, “इंडो-पैसिफिक का शब्द ट्रम्प प्रशासन द्वारा बेरहमी से बदल दिया गया है। हालांकि, यह शब्द अक्सर “Free and Open” के विशेषण के बाद लिखा जाता है, लेकिन इसका इस्तेमाल ज्यादातर चीन-लक्षित मुद्दों के लिए किया जाता है। इंडो-पैसिफिक अवधारणा की रीढ़ अमेरिका, जापान, भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच QUAD सुरक्षा संवाद है। जब भी वे बैठकें करते हैं या सैन्य अभ्यास करते हैं, सभी मीडिया रिपोर्ट चीन को निशाने पर लेते हुए ही होती हैं। ‘इडो-पैसिफिक’ के के लिए आर्थिक सहयोग संगठन नहीं है, लेकिन सैन्य अभ्यास और खुफिया सहयोग के लिए QUAD हैं।“

ग्लोबल टाइम्स ने आगे लिखा है कि, “ताइवान ‘इंडो-पैसिफिक रणनीति’ का हिस्सा बनना चाहता है जो चीन के नग्न दुश्मनी दिखाया है। ‘इंडो-पैसिफिक रणनीति’ से वास्तव में अमेरिका को कोई लाभ नहीं हुआ है। एशिया-प्रशांत देशों के अधिकांश हिस्से को ‘इंडो-पैसिफिक देश’ बनने में कोई दिलचस्पी नहीं है।“

अंत में बाइडन प्रशासन को सुझाव देते हुए ग्लोबल टाइम्स ने लिखा है कि, “बाइडन टीम को इंडो-पैसिफिक रणनीति को छोड़ देना चाहिए, जो क्षेत्रीय तनाव पैदा करता है। वाशिंगटन को बीजिंग के साथ गंभीर रणनीतिक बातचीत करने की आवश्यकता है। एशिया पैसिफिक दोनों देशों के लिए win-win की स्थिति हो सकती है और इसे आगे बढ़ाने की आवश्यकता है।“

इस लेख में चीन का भारत और QUAD देशों से डर स्पष्ट होता है और वह नहीं चाहता कि बाइडन इस रणनीति पर काम करें जिससे चीन को आगे भी अनिश्चित डर बना रहे। यही कारण है कि वह अपने प्रोपेगेंडा से बाइडन की विदेश नीति को प्रभावित करने का भरपूर प्रयास करेगा।  जिस विश्वास के साथ CCP के मुखपत्र ग्लोबल टाइम्स ने इस लेख को प्रकाशित किया है उसे देखते हुए तो यह स्पष्ट हो जाता है कि चीन जो बाइडन की विदेश नीति को भारत के खिलाफ और चीन के पक्ष में करने का भयावह एजेंडा शुरू कर दिया है।

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