दुनिया का सबसे बड़ा मुक्त व्यापार सौदा RCEP यानि Regional Comprehensive Economic Partnership आखिरकार कई वर्षों की बातचीत के बाद हस्ताक्षरित कर दिया गया है। एशियाई और प्रशांत क्षेत्र के देशों के बीच व्यापारिक गतिविधियों को बढ़ावा देने के उद्देश्य से हस्ताक्षरित RCEP में दस आसियान सदस्यों के साथ जापान, दक्षिण कोरिया, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और चीन शामिल हैं। इस समझौते पर हस्ताक्षर होने के बाद कई विशेषज्ञ इसे चीन की जीत बता रहे हैं। परंतु एक बात ध्यान देने वाली यह है कि ऑस्ट्रेलिया और जापान के इस समझौते में होने और भारत के साथ आसियान देशों के बढ़ते सम्बन्धों के कारण यह समझौता चीन केन्द्रित नहीं होने जा रहा है।
RCEP में चीन की जीत का दावा करने के साथ यह कहा जा रहा है कि यह सौदा चीन को पूरे इंडो पैसिफिक क्षेत्र के लिए व्यापारिक नियम तय करने की अनुमति देता है। परंतु अगर देखा जाए तो RCEP भी चीन के BRI की तरह ही एक Dead Deal साबित हो सकता है। RCEP के सपने को तोड़ने के लिए चीन के तीन विरोधी यानि जापान, भारत और ऑस्ट्रेलिया पहले से ही तैयार बैठे हैं।
जापान और ऑस्ट्रेलिया RCEP में शामिल हैं, पर अंदाजा यह लगाया जा रहा है कि उनका इस समझौते में शामिल होने का एक मात्र कारण RCEP वार्ताओं के दौरान पिछले आठ वर्षों में खर्च किया गया समय और ऊर्जा है। दोनों देशों का अब चीन के साथ छत्तीस का आंकड़ा है तथा पिछले 6 महीनों के दौरान चीन के साथ इनके व्यापारिक सम्बन्धों में भी खटास आई है।
उदाहरण के लिए ऑस्ट्रेलिया तथा चीन के बीच हुए ट्रेड वार को ही देखा जा सकता है। चीन ने जौ, वाइन और गेहूं सहित कई ऑस्ट्रेलियाई उत्पादों के आयात को प्रतिबंधित करने या कम करने के लिए टैरिफ बढ़ाया हुआ है। चीन ने ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ यह कदम सिर्फ कोरोना के मामले पर प्रखर रूप से विरोध के कारण किया गया था। यह कदम वैचारिक और राजनीतिक मतभेद के कारण उठाया गया था जो RCEP नहीं हल कर सकता।
इसलिए अब यह सवाल उठना लाज़मी है कि क्या RCEP इस तरह के व्यापारिक मुद्दों को हल करेगा?
SCMP की रिपोर्ट की माने तो ऐसा नहीं होगा और RCEP ऐसे विवादास्पद व्यापारिक विवादों को हल नहीं कर सकता है। अगर ऐसे मुद्दे हल नहीं हुए तो उसका परिणाम भी RCEP पर पड़ेगा जिससे यह समझौता आगे नहीं बढ़ पाएगा और इससे दुनिया के सबसे बड़े व्यापारिक ब्लॉक का नेतृत्व करने के चीन के सपनों को भारी झटका लगना तय है।
अगर जापान को देखा जाए तो नए प्रधानमंत्री सुगा ने विदेश नीति को वहीं से शुरू किया किया है जहां से शिंजो आबे ने छोड़ा था यानि व्यापार को चीन पर आश्रित न करने की रणनीति। सुगा के नेतृत्व में, टोक्यो दक्षिण पूर्व एशिया क्षेत्र में अपना प्रभाव जमाने के लिए बीजिंग के साथ जमकर प्रतिस्पर्धा कर रहा है। इस संदर्भ में, यह समझना चाहिए कि पिछले साल तक, जापान भारत के बिना RCEP में शामिल होने के लिए तैयार नहीं था। अब अगर सुगा ने RCEP में शामिल होने का फैसला किया, तो इसका कारण अमेरिकी राजनीतिक में डोनाल्ड ट्रम्प की हार के बाद बढ़ती अनिश्चितता हो सकती है। दुनिया भर के देशों ने स्वीकार किया है कि राष्ट्रपति चुनाव परिणाम में विवादों के बावजूद जो बाइडन अमेरिका के अगले अमेरिकी राष्ट्रपति बनने जा रहे हैं और जापान कोई अपवाद नहीं है।
अब तक, आसियान को चीन से दूर कर अपने पक्ष में लुभाने के लिए टोक्यो और वाशिंगटन एक संयुक्त मोर्चा बनाने के लिए तैयार थे। अब, अमेरिकी नेतृत्व बदलने से जापान को यह यकीन नहीं है कि अब अमेरिका इस क्षेत्र में उसके प्रयासों का समर्थन करेगा।
अगर व्हाइट हाउस में बाइडन सत्ता में आते हैं, तो वह शायद चीन के खिलाफ डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा शुरू किए गए टैरिफ वार को समाप्त कर देंगे, जिससे पेपर ड्रैगन को राहत मिलेगी। ऐसे परिदृश्य में, आसियान बीजिंग के करीब आने की जरूरत महसूस कर सकता है। ऐसे में उन्हें चीन से दूर रखने के लिए टोक्यो को अपने मैनुफेक्चुरिंग कंपनियों को चीन से हटाने और दक्षिण पूर्व एशियाई देशों में स्थापित करने के लिए प्रोत्साहित करने के अतिरिक्त और कई कदम उठाने पड़ सकते हैं। इस कारण जापान को आसियान के साथ सम्बन्धों को बढ़ाने के लिए RCEP के भीतर रहना आवश्यक होगा।
RCEP कितना सफल होता है यह आसियान देशों पर अधिक निर्भर करता है। यदि दक्षिण पूर्व एशियाई राष्ट्र कम टैरिफ या गैर-टैरिफ के साथ अपनी मांगों पड़ अड़े रहते हैं तो, RCEP चीन के लिए बोझ बन जाएगा। अगर ऐसा नहीं होता है तो इन देशों को भी चीन के चंगुल में जाने से कोई नहीं रोक सकता है।
वहीं भारत के लिए अभी भी RCEP का मार्ग खुला है और वह जब चाहे तब इसमें शामिल हो सकता है लेकिन भारत के इस व्यापार ब्लॉक में शामिल होने की संभावना नहीं है। भारत ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण कोरिया, जापान और यहां तक कि आसियान जैसे देशों के साथ RCEP के बाहर व्यापार को प्रोत्साहित करके चीन के लिए समस्याएं पैदा कर सकता है।
भारत ने BRI में भी शामिल न हो कर चीन का खेल बिगड़ा था। अब नई दिल्ली ऑस्ट्रेलिया, जापान के साथ मिल कर चीन के RCEP के सपनों पर पानी फेरने के लिए तैयार है।