पश्चिम बंगाल में जिस तरह से भाजपा का दायरा बढ़ रहा है उससे मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की पार्टी टीएमसी की नींद उड़ी हुई है, ये बात अब किसी से छिपी नहीं है। इसके अलावा अब टीएमसी के कारनामे भी ये जाहिर कर रहे हैं कि वो हैदराबादी पार्टी एआईएमआईएम से कितना डरी हुई है l अब वो AIMIM की बंगाल इकाई के नेताओं को तोड़ने मे लग गई है जिससे लोकसभा सांसद असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी का एक्स फैक्टर बंगाल के चुनाव में थोड़ा कम चले क्योंकि उसका ज्यादा चलना ममता दीदी को नुकसान पहुंचा सकता है।
न्यूज 18 की रिपोर्ट के मुताबिक पश्चिम बंगाल की एआईएमआईएम ईकाई के नेता अनवर पाशा समेत कई पार्टी नेताओं ने टीएमसी का दामन थाम लिया है। इसके साथ ही पाशा ने ओवैसी की पार्टी को निशाने पर लेते हुए कहा, “एआईएमआईएम अपनी ध्रुवीकरण की राजनीति से बीजेपी को फायदा पहुंचा रही है जिससे ममता को नुक़सान हो सकता है। इसलिए हम बंगाल में बीजेपी को रोकने के लिए और एआईएमआईएम को बंगाल से भगाने की नीति पर ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस के साथ काम करेंगे।”
वहीं इस मामले में बंगाल के मंत्री ब्रत्या बसु और मोलय घटक ने कहा है कि बंगाल की 30 फीसदी मुस्लिम जनता पर बिहार के सीमांचल में चले ओवैसी फैक्टर के जादू का कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। ये सभी बंगाल में ममता बनर्जी का ही समर्थन करते आए हैं और आगे भी करेंगे। इस पूरी बयानबाजी के साथ ही टीएमसी ये दिखाना चाहती है कि वो उसका मुस्लिमों के बीच आज भी वही दबदबा है, लेकिन हकीकत इन सबसे इतर है।
बंगाल में बीजेपी का जनाधार बढ़ रहा है। ऐसे में ममता बनर्जी अपने तुष्टीकरण के जरिए मुस्लिम वोट को एकमुश्त करने में लगी हुई हैं। बीजेपी के लोक-सभा में बढ़ें जनसमर्थन के चलते ही अब ममता शरणार्थियों को बसाने के फ़ैसले ले रही हैं। साथ ही हिंदुओं के तुष्टीकरण में भी वो कोई कोर कसर नहीं छोड़ रही हैं। इसीलिए पिछले दो सालों से दुर्गा पूजा पंडालों को सरकार द्वारा धनराशियां भी दिलवा रही हैं। इस फैसले से वो हिंदुओं के प्रति अपनी आस्था दिखाना चाह रही थी, लेकिन ये उनके ही कोर वोटरों को पसन्द नही आया।
हिंदुओं के प्रति ममता का रुख मुस्लिमों को अच्छा नहीं लगा है और ये बात ममता बनर्जी भी समझ चुकी हैं। इसके साथ ही असदुद्दीन ओवैसी के बंगाल में चुनाव लड़ने के ऐलान से मुस्लिमों को ममता के आलावा भी एक मजबूत मुस्लिम हितैषी नेतृत्व मिला है। ऐसे में ये माना जाने लगा था कि अब ममता के किले में दो गुनी सेंध लगेगी। एक तरफ ममता बनर्जी का कोर मुस्लिम वोट खिसकेगा तो दूसरी ओर बीजेपी की बढ़ती लोकप्रियता से ममता के सीएम पद की कुर्सी भी उनके हाथ से निकलेगी।
ऐसे में ममता ने समझ लिया है कि बीजेपी के अलावा ओवैसी की पार्टी भी अब उनके लिए चुनौती साबित होगी और इसीलिए वो ओवैसी की पार्टी के नेताओं के साथ लगातार अपने नेताओं के संपर्क बढ़ा रहीं हैं जिससे एआईएमआईएम का धड़ा बंगाल में कमजोर हो जाए और टीएमसी को मुस्लिम वोटों का अधिक नुकसान न हो। साफ है कि ममता बनर्जी तैयारी तो पिछले दो सालों से बीजेपी के खिलाफ कर रही थीं लेकिन जिस तरह से उन्होंने ओवैसी की पार्टी के खिलाफ अभियान छेड़ा है वो दिखाता है कि ममता ने भी अब एआईएमआईएम को भी चुनौती मान लिया है।