ममता के भतीजे अभिषेक बनर्जी और रणनीतिकार PK बंगाल में ममता का पतन सुनिश्चित कर रहे हैं

ममता की पार्टी में हैं अनगिनत घाव, अपने ही डुबो देंगे टीएमसी की नाव

ममता

पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव की दस्तक के साथ ही मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के लिए मुश्किलें बढ़ने लगी हैं। उनकी इन दिक्कतों को आगे बढ़ाने में सबसे बड़ी भूमिका उनके ही सहयोगी कैबिनेट मंत्री शुभेंदु अधिकारी की है जो पार्टी से नाराज चल रहे हैं। उनकी नाराजगी की वजह ममता के भतीजे अभिषेक बनर्जी और टीएमसी के चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर हैं। शुभेंदु ने अब इसी नाराजगी के चलते हुबली कमीशन चेयरमैन के पद से अपना इस्तीफा दे दिया है। जिसके बाद ये कहा जाने लगा है जल्द ही वो पार्टी भी छोड़ सकते हैं, जिसके सीधे जिम्मेदार अभिषेक और पीके ही होंगे।

अचानक दिया इस्तीफा

ममता सरकार के सबसे रसूखदार मंत्रियों में से एक परिवहन मंत्री शुभेंदु अधिकारी अब ममता के लिए आए दिन मुसीबत खड़ी कर रहे हैं। पहले ही उन्होंने ममता बनर्जी के खिलाफ बगावत की बयार चला रखी है। इसी बीच अब उन्होंने हुबली कमीशन चेयरमैन के पद से भी अपना इस्तीफा दे दिया है। शुभेंदु पहले ही टीएमसी और ममता बनर्जी के पोस्टरों की गैरमौजूदगी में कई जनसभाएं कर चुके हैं। उनके बगावती रुख को लेकर ये कहा जा रहा है कि वो जल्द ही पार्टी छोड़ सकते हैं।

ममता के सबसे करीबी और रसूखदार

गौरतलब है कि ममता बनर्जी के मंत्री शुभेंदु को सबसे करीबी नेताओं में से एक माना जाता है। शुभेंदु ने नंदीग्राम में ममता के लिए सिपाही की भूमिका निभाई थी। शुभेंदु केवल ममता के करीबी ही नहीं हैं, उनके पास जमीनी स्तर की राजनीति का अनुभव भी है। बंगाल के 6 जिलों की 65 सीटों पर शुभेंदु अधिकारी की मजबूत पकड़ है। कुल 294 में इन 65 सीटों का महत्व अधिक है। 2006 के विधानसभा चुनावों में पूर्व मिदनापुर से लेकर बर्दमान तक की इन 65 सीटों पर टीएमसी का वोट प्रतिशत करीब 27 प्रतिशत था, जो 2016 आते-आते 48 प्रतिशत पर चला गया है। ये दिखाता है कि इन सीटों पर शुभेंदु की भूमिका कितनी अहम है। ऐसे में उनकी नाराजगी ममता को भारी पड़ सकती है लेकिन शुभेंदु अब अपने कदम पीछे न लेने की स्थिति में आ चुके हैं और इसकी सबसे बड़ी वजह ममता बनर्जी के भतीजे अभिषेक बनर्जी और चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर हैं।

नाराजगी की दो वजहें

स्पषट है कि टीएमसी के अपने ही अब पार्टी की मुसीबत का कारण बन गए है, जिनमें एक बड़ा कारण कोई और नहीं बल्कि टीएमसी के ही सांसद अभिषेक बनर्जी हैं जो कि ममता बनर्जी के भतीजे भी हैं। उनके कारण पहले भी कई बार पार्टी में बगावत के सुर उठ चुके हैं, लेकिन अब शुभेंदु मुखरता से इस मुद्दे पर बोलकर सीधे पार्टी से बगावत करने लगे हैं। शुभेंदु की नाराजगी इस बात पर भी है कि उन्हें उनकी मजबूत 65 सीटों पर उनके पसंदीदा उम्मीदवारों को उतारने की स्वीकृति नहीं दी जा रही है। इसके चलते शुभेंदु भड़के हुए हैं। बगावत के बावजूद अगर वो पार्टी में रहते हैं तो टीएमसी के लिए नई मुसीबत लाएंगे, क्योंकि शुभेंदु जब भी पार्टी छोड़ेंगे तो पार्टी का एक बड़ा हिस्सा उनके साथ टूट सकता है जो कि ममता के राजनीतिक भविष्य को अंधेरे में ले जाएगा।

शुभेंदु की बगावत की बड़ी वजह केवल ममता बनर्जी के भतीजे ही नहीं, बल्कि चुनावी रणनीतिज्ञ प्रशांत किशोर भी हैं। प्रशांत किशोर को लेकर लगातार शुभेंदु समेत कई नेता बगावत कर चुके हैं। प्रशांत किशोर पार्टी में संगठनात्मक स्तर के निर्णय कर रहे हैं। पार्टी में कई नेता इससे नाराज़गी जाहिर कर चुके हैं। उनकी दखलंदाजी का बढ़ना टीएमसी को नुक़सान पहुंचा रही है। नतीजा ये कि शुभेंदु समेत निचले स्तर के कार्यकर्ताओं को भी पार्टी की कार्यशैली पसंद नहीं आ रही है। यही कारण है कि अब ये तक कहा जाने लगा है कि पीके का ये फैक्टर ही ममता की पार्टी को तोड़ देगा और शुभेंदु की बगावत उसका साक्षात सबूत है।

ऐसे में विधानसभा चुनावों के पहले शीर्ष स्तर के नेता का इस तरह से ममता बनर्जी के खिलाफ बगावती तेवर अख्तियार करना, और पार्टी छोड़ने का संकेत देना टीएमसी को भारी पड़ने वाला है जिसकी मुख्य वजह ममता के ही भतीजे अभिषेक बनर्जी और रणनीतिकार प्रशांत किशोर होंगे। ऐसे में ये कहना गलत नहीं होगा कि जिस समय पार्टी को मजबूत करने पर जोर देना चाहिए उस समय पार्टी की रणनीति बनाने वाले प्रशांत किशोर और पार्टी को आगे ले जाने वाले अभिषेक बनर्जी ही इसकी कमजोरी का कारण बन रहे हैं। या यूं कहें कि पार्टी की जीत कम हार ज्यादा सुनिश्चित कर रहे हैं।

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