भारत ने हमेशा उन देशों का साथ दिया है, जिन्हें विदेशी आक्रान्ताओं द्वारा अनेकों प्रकार के अत्याचारों का सामना करना पड़ा है। भारत भली-भांति जानता है कि गुलामी के प्रकोप से उबरना किसी भी देश के लिए कितना मुश्किल होता है। इसीलिए भारत अपनी पहचान को मजबूत करने के लिए उन देशों से अपने संबंध बढ़ा रहा है, जो यूरोप में उनके ट्रेड रूट्स को बरकरार रखे, और भूमध्य सागर के जरिए व्यापार का एक नया मार्ग प्रशस्त करे।
इसी परिप्रेक्ष्य में भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर ने अपने मोरक्को के समकक्ष नासिर बूरीटा के साथ एक वर्चुअल मीटिंग में आपसी संबंध को और मजबूत करने की दिशा में रक्षा सहायता के लिए एक अहम एमओयू पर हस्ताक्षर किया। इसके अलावा मोरक्को के विदेश मंत्री ने आईटी, साइबर सुरक्षा, शिक्षा, संस्कृति, कृषि और आतंकरोधी गतिविधियों में परस्पर सहायता का भी विश्वास दिया है।
यह कूटनीतिक और रक्षात्मक लिहाज से भारत के लिए बेहद लाभकारी है, क्योंकि मोरक्को भूमध्य सागर और एटलांटिक महासागर के बीचोंबीच स्थित है, जिससे अमेरिका और यूरोप दोनों से ही वह भली-भांति जुड़ा है। इसके अलावा उसके पास फॉस्फेट का भंडार है, जो उर्वरक यानि फर्टिलाइजर के उत्पादन में अति आवश्यक है। यूं तो मोरक्को में राजशाही है, परंतु वहाँ का प्रशासन बिल्कुल इंग्लैंड और जापान की तरह है, जिसके पीछे वर्तमान शासक, सम्राट मोहम्मद की सूझ बूझ का परिणाम है। इसी कारण से लोकतान्त्रिक सरकार ने कई सफलताएँ अर्जित की हैं, और आतंकवाद के विरुद्ध वह विश्व की सहायता करने के लिए भी पूरी तरह प्रतिबद्ध है।
भारत की तरह ही मोरक्को भी आतंकवाद के प्रकोप से जूझ रहा है। इस देश में अलगाववादी गतिविधियों को अल्जीरिया द्वारा बढ़ावा दिया जा रहा है, ठीक वैसे ही, जैसे भारत में अलगाववादियों को पाकिस्तान और चीन जैसे आतंक समर्थक देशों द्वारा बढ़ावा दिया जा रहा है। इसीलिए भारत मोरक्को के सहारा क्षेत्र में अपना कॉन्सुलेट खोलने जा रहा है, जो एक प्रकार से मोरक्को के लिए भारत द्वारा समर्थन के तौर पर भी देखा जा सकता है।
अब भूमध्य सागर में तुर्की द्वारा व्याप्त गुंडई से कोई भी अपरिचित नहीं है, लेकिन एक देश है जो तुर्की की गुंडई को अब कतई बर्दाश्त नहीं कर सकता, और वो है ग्रीस। इसीलिए अब ग्रीस ने तुर्की को चुनौती देने के लिए भारत का दामन थामा है। जिस प्रकार से भारत का कूटनीतिक और सैन्य कद बढ़ रहा है, उससे ग्रीस आश्वस्त है कि वह तुर्की से निपटने में उसका साथ अवश्य देगा।
इसी परिप्रेक्ष्य में अभी हाल ही में दोनों देशों ने वर्चुअल मुलाकात की थी, जिसमें दोनों देशों के विदेश मंत्री शामिल हुए थे। दोनों ने पूर्वी भूमध्य सागर में तुर्की की बढ़ती गुंडई और दोनों देशों को तुर्की से उत्पन्न खतरे के बारे में काफी गहन चर्चा की। कुछ ग्रीक विशेषज्ञों ने ये भी गुजारिश की कि ग्रीस और भारत के बीच पूर्वी भूमध्य सागर में एक युद्ध अभ्यास हो, ताकि तुर्की को उसकी औकात बताई जा सके।
लेकिन भारत की गतिविधियां केवल ग्रीस और मोरक्को तक ही सीमित नहीं है। 7 नवंबर को पीएम मोदी ने इटली के प्रधानमंत्री जूशेप कॉन्टी [Giuseppe Conte] से एक वर्चुअल सम्मिट के जरिए कई मुद्दों पर चर्चा की, जिसमें वुहान वायरस और आतंकवाद से निपटने पर हुई चर्चा भी शामिल थी। दोनों देशों ने इसी दिशा में 15 एमओयू पर हस्ताक्षर किए, जिसके अंतर्गत ऊर्जा, मछली व्यापार, शिपबिल्डिंग, फैशन और टेक्सटाइल्स, ऑटोमोटिव उपकरण और इन्फ्रास्ट्रक्चर इत्यादि में आपसी सहयोग का वादा किया गया है।
भारत और इटली ने सप्लाई चेन के विस्तार पर भी बातचीत की, क्योंकि भारत भली-भांति जानता है कि अब समय आ गया है कि चीन पर से दुनिया की अति निर्भरता को कम करने का। इसीलिए जहां एक ओर भारत, ऑस्ट्रेलिया और जापान मिलकर एक वैकल्पिक आपूर्ति व्यवस्था का सृजन कर रहे हैं, तो वहीं वे इटली जैसे देशों के साथ भी उस व्यवस्था से जुड़ने हेतु एक अलग नेटवर्क तैयार कर रहे हैं। अब ये बात सिद्ध हो चुकी है कि भारत रुकने वाला नहीं है, और वह आगे ही बढ़ता रहेगा, और इसीलिए, अब वह भूमध्य सागर के जरिए एक तीर से दो शिकार करेगा – तुर्की के आतंक पर भी लगाम लगेगा और चीन की साम्राज्यवादी नीतियों पर भी पानी फिरेगा।