भारतीय राजनीति में अब धार्मिक आधार पर मतदान होने के तथ्य सामने आने लगे हैं, जिसका उदाहरण बिहार विधानसभा चुनाव में एआईएमआईएम के उम्मीदवार को मुस्लिम बहुल सीटों पर मिला वोट है। ऐसे में देश की राजनीति में असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी समेत असम में मुस्लिमों का नेतृत्व करने वाली एआईयूडीएफ और केरल की Muslim लीग का दायरा अब धीरे-धीरे बढ़ने की संभावनाएं हैं जो आने वाले समय में देश की मुस्लिम राजनीति में एक बड़ा विकल्प बन कर सामने आएंगी जिनके पास एक पक्ष का संपूर्ण समर्थन होगा।
परेशान हो चुके मुस्लिम
इस बात में किसी को कोई शक नहीं है कि देश की राजनीति में मुस्लिम तुष्टीकरण सबसे ज्यादा होता है। कांग्रेस समेत सपा बसपा, या कहा जाए तो देश की हर राष्ट्रीय, क्षेत्रीय पार्टी ने समय-समय पर Muslim तुष्टीकरण की राजनीति की है। इन लोगों ने मुस्लिमों से वोट लिया है और अपनी सरकारें चलाईं हैं लेकिन देश के मुस्लिम समाज की हालत कभी बदली ही नहीं है। रंगनाथ मिश्रा कमेटी से लेकर सच्चर कमेटी सभी ने यही कहा है कि मुस्लिमों की हालत देश के दलितों से भी ज्यादा बुरी हो चुकी है। मुस्लिम समाज को बीजेपी के नाम का डर दिखाकर वोट लिया जाता है ओर वो एक मुश्त वोट भी देते हैं लेकिन फायदा कुछ नहीं होता। यही कारण है कि अब मुस्लिम समाज बंटता जा रहा है और वो इन पार्टियों से तंग आ चुका है।
ओवैसी ने दिखाई राह
Muslim समाज को लेकर ये भी कहा जाता है कि वो उसी उम्मीदवार को वोट करते हैं जो मुस्लिम होता है। ऐसी स्थिति में बिहार चुनाव सबसे बड़ा उदाहरण बना है जहां विधानसभा चुनावों में सीमांचल क्षेत्र की सीटों पर ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम ने एक बड़े मुस्लिम समाज का वोट हासिल किया है जिससे महागठबंधन की नैय्या डूब गई। ओवैसी ने अन्य Muslim समाज के इर्द-गिर्द घूमने वाली पार्टियों को भी राह दिखाई है कि कैसे ये समाज एक बड़े राजनीतिक धड़े को जन्म दे सकता है।
नहीं कर रहे हस्तक्षेप
मुस्लिम राजनीति के लिए जानी जाने वाली पार्टियां देश में मुख्य रूप से तीन ही हैं। हैदराबादी एआईएमआईएम, असम की एआईयूडीएफ, और केरल वाली मुस्लिम लीग। इन तीनों ही पार्टियों की पूरी राजनीतिक धुरी Muslim समाज के इर्द-गिर्द घूमती होती है। खास बात ये है कि ओवैसी बिहार के बाद बंगाल उत्तर प्रदेश मध्य प्रदेश राजस्थान महाराष्ट्र में अपनी पैठ जमाने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन वो एआईयूडीएफ के गढ़ असम और मुस्लिम लीग के किले केरल में जाने की कोई घोषणा नहीं कर रहे हैं।
इसी तरह मुस्लिम लीग देश के कई राज्यों में जाने की कोशिश कर रही है लेकिन ओवैसी को उसने फ्री-हैंड दे रखा है। एआईयूडीएफ जो असम के बाद बंगाल में एक अच्छा-खासा वोट बैंक रखती है उसके नेता बदरुद्दीन अजमल ने भी बंगाल में चुनाव लड़ने की ओवैसी की बातों के बाद राज्य में चुनाव लड़ने की बातों को नजरंदाज करना शुरू कर दिया है। इन तीनों ही पार्टियों का ये रुख दिखाता है कि ये आपस में पूरा समन्वय स्थापित कर चुकी हैं। जिससे मुस्लिम समाज को राष्ट्रीय राजनीति में उनके नेतृत्व के लिए एक बड़ा विकल्प मिल रहा है।
इन तीनों ही दलों ने मुस्लिम तुष्टीकरण करने वाली कांग्रेस समेत सभी पार्टियों क़ राजनीतिक रूप से कमजोर करना शुरू कर दिया है। बिहार चुनाव इसकी बानगी है। ऐसा नहीं है कि ये लोग एक दूसरे का वोट काटेंगे, ये अपने-अपने क्षेत्रों में अन्य राजनीतिक पार्टियों के लिए मुसीबत बनेंगे और राष्ट्रीय स्तर पर मुस्लिम समाज के लिए एक नया एजेंडा लेकर आएंगे जो देश में Muslim राजनीति को एक नई दिशा देने वाला होगा।