NDA चुनाव हारने वाली थी, और फिर PM मोदी की रैली ने पूरा पासा ही पलट दिया

'पीएम मोदी' का जादू कायम है!

मोदी

बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर मतदान से पहले एक हवा बनाई गई थी कि एनडीए गठबंधन इस बार हारने वाला है क्योंकि आरजेडी नेता तेजस्वी ने बड़ी ही आसानी के साथ अपना जनाधार मजबूत कर लिया है, लेकिन नतीजों के दिन आ रहे रुझानों ने एक बार फिर सारे हवाई गुब्बारे फोड़ दिए हैं, जिसकी बड़ी वजह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की रैलियां हैं क्योंकि एनडीए के विपरीत चल रही चुनावी हवाओं का रुख पलटकर पीएम मोदी ने बिहार में अपने गठबंधन की जीत की इबारत लिख दी है। एनडीए को नीतीश की 15 साल की सत्ता विरोधी लहर से फर्क तो पड़ा है लेकिन सरकार अब बनती दिख रही है।

बिहार चुनावों नतीजों के दिन वो लोग चुपचाप बैठे हैं, जो लगातार एनडीए की हार के दावे कर रहे थे। नतीजों के जो रुझान सामने रहे हैं वो एनडीए-4 की ओऱ इशारा कर रहे हैं और इस बड़ी जीत की भूमिका प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने लिखी है। प्रधानमंत्री को लेकर ये कहा जाने लगा था कि वो इस बार कोरोना की वजह से चुनाव प्रचार में शायद रैलियां नहीं करेंगे। विपक्ष इस बात से बेहद खुश था, लेकिन ऐसा हुआ नहीं पीएम मोदी ने इस बार पहले की तरह ज्यादा रैलियां तो नहीं की, लेकिन जितनी भी रैलियां की वो एनडीए के लिए फायदेमंद रही और विपक्ष के तोते उड़ गए।

पीएम मोदी ने विधानसभा चुनावों  के दौरान सासाराम, गया, भागलपुर, मुजफ्फरपुर, पटना, छपरा, पूर्वी पश्चिमी चंपारण, समस्तीपुर, दरभंगा, सहरसा, अररिया,  फारबिसगंज में बैक-टू-बैक 12 रैलियां की और एनडीए के विरोध में चल रही हवा का रुख पूरी तरह मोड़ दिया। पीएम ने इस दौरान परिवारवाद से लेकर बिहार के जंगलराज का खूब जिक्र किया और विपक्ष को आड़े हाथों ले लिया और साथ ही अपनी योजनाओं का जिक्र करते हुए जनता के मुद्दे उठाए।

ऐसा पहली बार नहीं है कि विरोध में चल रही हवा को पीएम मोदी ने अपनी रैलियों से बेअसर कर दिया। गुजरात चुनाव इसका सबसे बड़ा उदाहरण है जहां कांग्रेस के सारे बीजेपी विरोधी एजेंडे की पीएम मोदी ने हवा निकाल दी थी और चुनाव नतीजों में प्रधानमंत्री एक बड़े चुनावी गेम चेंजर बनकर उभरे थे। कुछ ऐसा ही इस बार बिहार विधानसभा चुनाव नतीजों में भी सामने आया है जिसमें बीजेपी राज्य की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी बनकर उभरी है, और उसे जिताने में सबसे बड़ी भूमिका है प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की।

बिहार विधानसभा चुनाव जहां एक तरफ बीजेपी के लिए सबसे सकारात्मक साबित हुआ है तो वहीं नीतीश के लिए ये उनके राजनीतिक करियर की ढलान बनकर सामने आया है। नीतीश कुमार को लेकर जनता के प्रति इन चुनावों में काफी नाराजगी थी। लोग प्रधानमंत्री मोदी के नाम पर तो वोट देने को तैयार थे, लेकिन नीतीश के नाम पर नहीं। बिहार में जिस तरह से बीजेपी नंबर वन पार्टी बनी हैं वो इस बात की ओर साफ संकेत भी देता है कि अब बिहार एनडीए में नीतीश किनारे किए जाएंगे।

नीतीश कुमार के 15 साल के कार्यकाल और सत्ता विरोधी लहर के कारण एनडीए को नुकसान हुआ है। एनडीए के प्रमुख दल बीजेपी ने इस नुकसान को देखते हुए ये निर्णय भी कर लिया है कि अब बिहार में नीतीश की विदाई तय है, जिसका उदाहरण नीतीश कुमार का वो बयान है जिसमें उन्होंने कहा था कि ये उनका आखिरी चुनाव है। नीतीश ने अपने इस बयान से ही बीजेपी की प्लानिंग जग-जाहिर कर दी थी।

बीजेपी अब 15 साल के कार्यकाल और सत्ता विरोधी लहर के बावजूद नीतीश को सीएम तो बना सकती है लेकिन पूरे कार्यकाल के लिए नहीं…। बीजेपी अपना सीएम बिहार में बनाना चाहती है लेकिन वो ये नहीं चाहती कि उसकी छवि राजनीतिक स्वार्थ से प्रेरित लगे। ऐसे में बीजेपी के पूर्व अध्यक्ष की अमित शाह की भूमिका सबसे ज्यादा अहम हो जाती है। नीतीश को ऐसे अचानक सीएम पद से हटाना मुमकिन नहीं होगा। इसलिए ऐसा अनुमान है कि बीजेपी अपनी प्लानिंग के तहत एक तय सीमा के लिए ही नीतीश को सीएम बनाएगी, और उसके बाद किनारे करके बिहार की सरकार का स्टेयरिंग अपने हाथ में ले लेगी। इस कदम से नीतीश के कद को भी नुकसान नहीं होगा, और उनकी ससम्मान राजनीतिक विदाई हो जाएगी।

नीतीश कुमार के पास इस मौके पर बीजेपी से बोलने के लिए कुछ नहीं होगा, क्योंकि उनकी लोकप्रियता पहले ही काफी गिर चुकी है। इसके साथ ही उनके पास विधानसभा में सीटें भी कम हैं तो वो सत्ता के लिए बीजेपी से ज्यादा ना-नुकुर कर भी नहीं पाएंगे। बीजेपी के कई नेताओं ने इसको लेकर अदंरखाने बयानबाजी भी शुरु कर दी हैं कि नीतीश जाने वाले हैं। हालांकि, अभी इस मुद्दे पर कोई भी सीधे-सीधे कुछ नहीं बोला है लेकिन जैसे-जैसे परत-दर-परत चुनाव परिणाम स्पष्ट हो रहे हैं, वैसे-वैसे नीतीश की विदाई तय होती जा रही है।

नीतीश कुमार की घटती लोकप्रियता के कारण जहां विधानसभा चुनावों के बाद उनकी विदाई तय है तो दूसरी ओर इन चुनावों ने पीएम मोदी को राजनीति के एक नए शिखर पर पहुंचा दिया है, क्योंकि एक बार फिर न सिर्फ केवल अपनी पार्टी के लिए बल्कि अपने सहयोगियों के लिए भी पीएम मोदी एक गेम चेंजर बनकर सामने आए हैं।

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