नीतीश कुमार केवल औपचारिकता के लिए मुख्यमंत्री, सत्ता की असली बागडोर इस बार भाजपा संभालेगी

अब ड्राइवर की सीट संभालने की बारी भाजपा की है

बिहार नीतीश कुमार

69 वर्षीय नीतीश कुमार रिकॉर्ड 7 वीं बार बिहार के मुख्यमंत्री बनने जा रहे हैं, परंतु इस बार कहानी काफी अलग है। इस बार मुख्यमंत्री भले नीतीश कुमार हो, पर बिहार की असली सत्ता तो भारतीय जनता पार्टी के हाथ में रहने वाली है। शासक भले नीतीश हों, लेकिन प्रशासन भाजपा ही संभालने वाली है। कभी बिहार में छोटे भाई की भूमिका से संतोष करने वाली भाजपा अब फ्रंट फुट पर खेलने को पूरी तरह तैयार है, और नीतीश कुमार चाहकर भी कुछ विशेष बदलाव नहीं कर पाएंगे।

इस बार सभी को चौंकाते हुए एनडीए ने विधानसभा चुनाव में 125 सीटें प्राप्त की हैं, और भाजपा ने पहली बार JDU से अधिक सीटें अर्जित करते हुए 74 सीटें प्राप्त की हैं।इस बार भाजपा, एनडीए में वरिष्ठ साझेदार होगी, क्योंकि JDU इस बार मात्र 4 सीट ही अर्जित कर पाई है, जबकि एनडीए के बाकी साथी दल – हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा और विकासशील इंसान पार्टी ने 4 – 4 सीटें अर्जित की हैं।

नीतीश कुमार को एक बार फिर सर्वसम्मति से एनडीए का नेता चुना गया है, लेकिन इस बार भाजपा के नेतृत्व में व्यापक बदलाव किए हैं। उदाहरण के लिए पिछले 15 वर्षों से बिहार के उपमुख्यमंत्री के पद पर रहे सुशील कुमार मोदी को हटाया गया, और तारकिशोर [तारकेश्वर] प्रसाद एवं रेणु देवी के उपमुख्यमंत्री पद दिया गया।

मुख्यमंत्री और दो उपमुख्यमंत्री द्वारा शपथ लेने के अलावा 12 अन्य मंत्री भी कैबिनेट मंत्री की शपथ ली। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार इनमें विजेन्द्र यादव, विजय चौधरी, अशोक चौधरी, मेवालाल चौधरी एवं शीला मण्डल जनता दल यूनाइटेड यानि JDU की ओर से शपथ ली जबकि भारतीय जनता पार्टी की ओर से मंगल पांडेय और रामप्रीत पासवान, हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा की ओर से संतोष मांझी और विकासशील इंसान पार्टी की ओर से मुकेश मल्लाह शपथ ली।

इन बदलावों से स्पष्ट है कि नीतीश कुमार अब केवल नाम के सीएम होंगे, क्योंकि उनकी चाटुकारिता करने वाले सुशील मोदी को अब बाहर का रास्ता दिखा दिया गया है। इसके अलावा जिस प्रकार से मंत्रिमंडल की व्यवस्था की गई है, उससे स्पष्ट पता चलता है कि भाजपा धीरे-धीरे करके JDU का जनाधार ही खत्म करन चाहती है, ताकि आगे चलकर भाजपा को बिहार में अपना शासन स्थापित करने में कोई समस्या नहीं आए।

अब आप रेणु देवी का उदाहरण ही देख लीजिए। वे अति पिछड़ी जाती यानि EBC से संबंध रखती है, जो अप्रत्यक्ष तौर से भाजपा की सबसे बड़ी ताकतों में से एक बनकर उभरी हैं। चूंकि नीतीश कुमार ने EBC को ओबीसी के 27 प्रतिशत कोटा से एक निश्चित कोटा प्रदान किया है, इसलिए भाजपा अब नीतीश कुमार के इस वोट बैंक को अपने पाले में करना चाहती है। इसके अलावा वैश्य समुदाय में अपना जनाधार बनाए रखने के लिए तारकिशोर प्रसाद हो, उच्च जाति के लिए मंगल पांडेय हो, या फिर दलित और महादलित समुदाय के लिए रामप्रीत पासवान और मुकेश मल्लाह ही क्यों न हो, भाजपा ने हर जाति के लिहाज से अपने समीकरण नियंत्रित करने शुरू कर दिए हैं।

इसके अलावा रेणु देवी को एक और कारण से आगे बढ़ाया जा रहा है – महिलाओं का समर्थन। जी हाँ, जिस बात को लगभग सभी एक्ज़िट पोल्स और कथित चुनावी विशेषज्ञों ने नज़रअंदाज किया था, वो था महिलाओं का एनडीए के लिए समर्थन, और भाजपा इसी विशेषता को पूरी तरह से अपने पक्ष में करना चाहती है।

संक्षेप में कहे तो वर्तमान कैबिनेट से एनडीए, और प्रमुख तौर पर भाजपा का संदेश स्पष्ट है – अब ड्राइवर की सीट संभालने की बारी भाजपा की है। जिस प्रकार से भाजपा अपने समीकरण बिठा रही है, उससे वह नीतीश कुमार की समय से पूर्व विदाई सुनिश्चित कराना चाहती है और वह चाहती है कि किसी भी स्थिति में नीतीश कुमार के बाद अगला सीएम भाजपा का ही हो।

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