नीतीश की रैलियों में लगे विरोधी नारे और फेंके गए प्याज और चप्पल, नीतीश के सियासी सफर के अंत का संकेत है

तो क्या "कुर्सी कुमार" की कुर्सी जाने वाली है!

नीतीश

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को एक वक्त देश के प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार माना जाने लगा था, उनकी छवि ऐसे विकास पुरुष की हो गई थी कि वो एनडीए और यूपीए दोनों के लिए ही अछूते नहीं थे, लेकिन ताजा स्थिति की बात करें तो नीतीश के लिए सीएम पद की कुर्सी बचा पाना भी मुश्किल हो रहा है। मधुबनी की जनसभा में उन पर फेंके गए पत्थर और प्याज इस बात का उदाहरण है कि अब नीतीश का राजनीतिक जीवन अपने अंत की ओर जा चुका है।

बिहार विधानसभा चुनाव के प्रचार के दौरान नीतीश के साथ रोजाना कुछ ऐसा हो रहा है जो कि उनके लिए मुसीबतों की शुरुआतों का संकेत दे रहा है। मधुबनी की रैली भी कुछ ऐसी ही थी जहां जनसभा में संबोधन के दौरान नीतीश पर जनता की तरफ से प्याज फेकें गए। प्याज फेंकने वाले शख्श को तो तुरंत हिरासत में ले लिया गया लेकिन इस मामले में नीतीश के प्रति  जनता का गुस्सा फिर सामने आ गया। नीतीश कहते रहे, और फेंको, प्याज फेंको या जो मन हो फेंको। नीतीश के इस बयान से असल में उनकी खीझ निकल रही थी क्योंकि वो इस अप्रत्याशित हमले के लिए तैयार नहीं थे।

ऐसा पहली बार नहीं हुआ कि नीतीश के ऊपर किसी तरह का हमला या बयानबाजी हुई हो। हम आपको अपनी एक पहली रिपोर्ट में भी बता चुके हैं कि किस तरह से नीतीश को जनसभा में संबोधन के बीच अपने विरोध में नारे सुनने को मिले थे। नीतीश इस दौरान अपना आपा भी खो चुके थे और उन नारेबाजी करने वालों से वोट न करने की अपील तक करने लगे थे। ये इस बात का प्रमाण था कि नीतीश की लोकप्रियता अब पहले जैसी नहीं है।

गौरतलब है कि नीतीश की साख को लगातार बट्टा लग रहा है। इनके खिलाफ पिछले 15 सालों की सत्ता विरोधी लहर है। इसके चलते लोगों का उनसे मोह भंग हो चुका है। नीतीश अपनी रैलियों में कामकाज का जिक्र तो कर रहे हैं लेकिन जनता की असंतुष्टि उनकी रैलियों में ही सामने आ रही है। नीतीश की सुशासन वाली छवि को एक बड़ा झटका बिहार में शराब बंदी के कानून ने ही दिया है।

नीतीश ने पूरे जोश के साथ साल 2016 में शराबबंदी की थी, उन्हें उम्मीद थी कि इससे उन्हें महिलाओं का एक बड़ा जनसमर्थन मिलेगा जो कि काफी हद तक मिला भी, लेकिन परिस्थितियां एक बार फिर बदल गई हैं। राज्य में शराबबंदी के कानून का प्रभावी रूप से लागू न होना अब उन्हें भारी पड़ा है। बिहार में शराब तस्करी के कारण लोगों का गुस्सा भड़क गया है। इसके अलावा हाल ही में प्रवासी मजदूरों से लेकर बेरोजगारी तक के मुद्दे उनके लिए मुसीबत का सबब बन गए हैं।

नीतीश अपने कामों के कारण ही अपनी छवि खराब कर बैठे हैं। इन्हें लेकर एक समय ये कहा जाता था, कि वो विपक्ष की ओर से पीएम पद के उम्मीदवार हो सकते हैं लेकिन इस चुनाव के बाद तो स्थिति ये हो गई है कि  जनता से ही उनका विरोध सामने आ रहा हैं। ये दिखाता है कि अब इनका राजनीतिक करियर ढलान पर है और उनके राजनीतिक भविष्य की संभावनाएं खत्म होती दिखने लगी हैं।

 

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