केरल में अब सोशल मीडिया पर सरकार के विरोध में लिखने पर होगी पाँच साल की सजा

कम्युनिस्ट सरकार के तुगलकी फरमान पर तथाकथित लिबरलों की भी मौन सहमति

केरल

pc - india today

देश में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सत्ता संभालने के साथ ही वामपंथियों और तथाकथित बुद्धिजीवियों के लिए अभिव्यक्ति की आजादी एक बड़ा मुद्दा बन गया है। असहिष्णुता गैंग के ये लोग आए दिन मोदी सरकार को निशाने पर लेते रहते हैं, लेकिन केरल में इनकी ही पसंदीदा लेफ्ट सरकार ने अभिव्यक्ति की आजादी का गला घोंटने का निर्णय कर लिया है। लेफ्ट सरकार ने सोशल मीडिया के माध्यम से विरोध दर्ज कराने वालों के लिए कानून बनाते हुए पांच साल की सजा का प्रावधान तय कर दिया है, लेकिन मजाल है कि कोई इस फैसले का विरोध करे।

केरल के एलडीएफ नेता पिनराई विजयन की सरकार ने पुलिस की शक्तियों को अधिक मजबूत कर दिया है। राजभवन के मुताबिक लेफ्ट सरकार की अनुसंशा पर पुलिस एक्ट में धारा 118(A) जोड़ने वाले अध्यादेश को मंजूरी दे दी गई है। इस अध्यादेश के तहत अब अगर कोई व्यक्ति किसी के प्रति अपमानित करने वाला या किसी की गरिमा गिराने वाला पोस्ट सोशल मीडिया पर करता है तो उसे 5 साल की सजा हो सकती है या 10 हजार रुपए का जुर्माना भी भरना पड़ सकता है। सरकार दावा कर रही है कि वो सोशल मीडिया पर महिलाओं के खिलाफ आपत्तिजनक पोस्ट, फेक न्यूज, नफरती बयान देने वालों के खिलाफ कार्रवाई करना चाहती है। इसीलिए इस कानून को पारित करवाया गया है और इससे किसी को भी डरने की आवश्यकता नहीं है। कुल मिलाकर सरकार अपने इस तुगलकी फरमान को सही साबित करने में जुटी है।

केरल सरकार पूर्ण रूप से अपने इस कानून को सही बताने में जुटी है, लेकिन असल में वो जितनी पाक साफ नियत का दिखावा कर रही है, उनका ये नियम उतना पाक साफ नहीं है। इस नियम के बाद अब राज्य में अभिव्यक्ति की आजादी खतरे में आ जाएगी। इसमें कोई शक नहीं है कि इस कानून की मदद से पुलिस के हाथ अब पहले से ज्यादा मजबूत हो जाएंगे। ऐसे में इस तुगलकी कानून का दुरुपयोग बढ़ जाएगा। इस कानून के बाद यदि केरल में किसी भी व्यक्ति द्वारा सरकार या प्रशासन की आलोचना होगी तो उसकी आवाज दबाने के लिए इस कानून का सहारा लिया जाएगा, और यहीं से इस कानून का दुरुपयोग शुरू होगा। इस कानून के साथ ही राज्य में प्रेस की स्वतंत्रता से लेकर आम जनता के बोलने पर प्रतिबंध लग जाएगा और वो अपनी जुबां बंद रखने को मजबूर होंगे, वरना उन्हें सलाखों के पीछे ढकेल दिया जाएगा ।

देश का एक खास धड़ा पूरी तरह से मोदी सरकार का इसलिए विरोध करता है क्योंकि उनके अनुसार मोदी सरकार असहिष्णु है और अभिव्यक्ति की आजादी का हनन कर रही है। ऐसे में केरल की विजयन सरकार के इस तुगलकी कानून के बाद इन सभी वामपंथियों और तथाकथित बुद्धिजीवियों ने अपने जुबां पर लगाम लगा ली है। ये सभी इस पूरे मामले पर कुछ भी बोलने की स्थिति में नहीं है क्योंकि इन लोगों के लिए केरल सरकार एक नरमपंथी और अभिव्यक्ति की आजादी की झंडाबरदार थी, लेकिन उसका ही ये कदम इनके लिए मुश्किलें खड़ी कर रहा है। उन तथाकथित अवार्ड वापसी गैंग के लोगों के बोल भी इस मुद्दे पर नहीं फूटे हैं।

इन बुद्धिजीवियों का दोगलापन अर्नब गोस्वामी की गिरफ्तारी के वक्त भी सामने आया था जो कि महाराष्ट्र में इनकी पसंदीदा सरकार के अंतर्गत काम करने वाली पुलिस ने किया था। ये भी किसी से छिपा नहीं है कि महाराष्ट्र सरकार के खिलाफ बोलने वाले समीत ठक्कर को किस तरह से मुंबई पुलिस प्रताड़ित कर रही है। अब कुछ ऐसा ही केरल के इस तुगलकी कानून के साथ भी हुआ है। केरल सरकार के इस फैसले ने लेफ्ट की नीतियों को तो एक बार फिर उजागर किया ही है, साथ ही उजागर हुए हैं ये दोगले बुद्धिजीवी, जो सरकार देखकर विरोध करते हैं।

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