दीदी की जीत के लिए प्रशांत किशोर कोलकाता गए, उनके जाने से पार्टी में खटपट

ममता बनर्जी प्रशांत किशोर

PC: MyNation Hindi

इन दिनों प्रशांत किशोर पर एक ही कहावत चरितार्थ होती है – आए थे हरी भजन को, ओटन लगे कपास। चुनावी ‘विश्लेषण’ में निपुण प्रशांत किशोर आए तो थे ममता बनर्जी का सिंहासन बचाने, लेकिन ममता को गाजे बाजे के साथ सत्ता से बाहर खदेड़ने की पूरी व्यवस्था कर गए । 

पिछले कुछ दिनों से पश्चिम बंगाल में सत्ताधारी पार्टी तृणमूल कांग्रेस की हालत बहुत ही खराब है। एक ओर उनकी नेता और बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पूरे देश में अपने कारनामों के कारण हंसी का पात्र बनी हुई हैं तो दूसरी ओर तृणमूल कांग्रेस द्वारा राज्य में दबदबा कायम करने के सभी पैंतरे असफल होते दिखाई दे रहे हैं। रही सही कसर प्रशांत किशोर पूरी कर रहे हैं, जिनके घमंडी स्वभाव के कारण अब तृणमूल कांग्रेस के भीतर एक विद्रोह उमड़ता दिखाई दे रहा है। 

तृणमूल कांग्रेस के नेता किस हद तक प्रशांत किशोर से नाराज हैं, ये आप नवभारत टाइम्स की रिपोर्ट से अच्छी तरह समझ सकते हैं। कई नेताओं ने आरोप लगाया है कि तृणमूल कांग्रेस अब प्रशांत किशोर की पार्टी अधिक लगती है। नवभारत टाइम्स के रिपोर्ट के अंश अनुसार, “क्या हमें प्रशांत किशोर से राजनीति सीखने की जरूरत है? यदि पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस को झटका लगता है तो इसके लिए सिर्फ प्रशांत किशोर ही जिम्मेदार होंगे…’। जब पब्लिक मीटिंग में तृणमूल कांग्रेस (TMC) के विधायक नियामत शेख खुलेआम ये बातें कहते हैं तो पूरी तस्वीर सामने आ जाती है। इससे पता चलता है कि किस तरह टीएमसी के अंदर प्रशांत किशोर को लेकर नाराजगी है”।

परंतु बात यहीं पर नहीं रुकी। रिपोर्ट में आगे ये भी कहा गया, “कूचबिहार के विधायक मिहिर गोस्वामी भी अपना गुस्सा खुलकर दिखा चुके हैं। गोस्वामी ने सोशल मीडिया पर पोस्ट कर पूछा, क्या तृणमूल कांग्रेस सचमुच ममता बनर्जी की पार्टी है। ऐसा लग रहा है कि इस पार्टी को किसी कॉन्ट्रैक्टर के हाथ में सौंप दिया गया है…”। 

यह गतिविधियां तृणमूल कंग्रेस के लिए चिंताजनक बात है, क्योंकि धीरे धीरे अब उसके कद्दावर नेता भी पार्टी का साथ छोड़ रहे हैं। उदाहरण के लिए एक समय पर तृणमूल कांग्रेस के संकटमोचक माने जाने वाले शुभेन्दु अधिकारी भी अब बगावती तेवर दिखा रहे हैं। इससे पहले अर्जुन सिंह और मुकुल रॉय जैसे नेताओं ने ममता बनर्जी की हेकड़ी के कारण पार्टी छोड़ी थी, और अब प्रशांत किशोर स्थिति को संभालने के बजाए उसे और बिगाड़ते ही चले जा रहे हैं। 

सच कहें तो यदि प्रशांत किशोर ने अपने उत्तर प्रदेश के चुनावी अभियान से तनिक भी सीख ली होती, तो उन्हें समझ होती  कि आप चाहे कितने भी योग्य क्यों न हो, पर आप गधे को घोड़ा या कछुए को चीता नहीं बना सकते। जब 2017 में उत्तर प्रदेश में चुनाव होने थे, तो कांग्रेस की लोकप्रियता लगभग न के बराबर होने के बावजूद पहले प्रशांत किशोर ने उसका दामन थामा, और फिर उसका गठबंधन समाजवादी पार्टी से कराया, जिसके काँग्रेस के बिना उत्तर प्रदेश में पुनः सरकार बनाने की संभावनाएँ अधिक थी। 

परिणाम ये रहा कि दोनों पार्टी मिलकर सरकार बनाना तो दूर, 100 सीटें भी जीत नहीं पाई और उधर भाजपा ने प्रचंड बहुमत प्राप्त करते हुए 325 सीटों के साथ 15 साल बाद सत्ता प्राप्त की थी। लेकिन प्रशांत किशोर ने कोई सीख नहीं लेते हुए 2019 में बंगाल में सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस का दामन थाम लिया, जिसकी लोकप्रियता पार्टी कार्यकर्ताओं की गुंडई के कारण रसातल में जाने लगी थी। जिस प्रकार से अब पार्टी में अंदरूनी कलह बढ़ती जा रही है, उसे देखते हुए यह कहना गलत नहीं होगा कि प्रशांत किशोर आए तो थे ममता बनर्जी को जिताने, पर लगता है प्रशांत के कारण भाजपा को तृणमूल काँग्रेस बंगाल सौंपेगी।

 

Exit mobile version