बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजों को लेकर सभी पत्रकार अपने-अपने तरीके से अपने विश्लेषण कर रहे हैं, लेकिन अगर किसी ने सही विश्लेषण किया है तो वो केवल मैग्सेसे अवॉर्ड विजेता और एनडीटीवी के लिए काम करने वाले रवीश कुमार पांडे हैं। रवीश जो जातीय समीकरण के चलते अपने नाम के साथ पांडे नहीं लगाते हैं, उन्होंने बिहार चुनावों में लोजपा के रोल को भली-भांति समझा है कि किस तरह से चिराग की इस पार्टी ने कम सीटें जीतने के बावजूद नीतीश समेत महागठबंधन का खेल बिगाड़ दिया है। हालांकि, बीजेपी की इस नीति से वो काफी क्षुब्ध हैं, लेकिन किया भी क्या जा सकता है, जो होना था वो तो हो गया। अब रवीश के पास एक सटीक विश्लेषण करने की ही क्षमता थी, और वो अब रवीश पूरी शिद्दत के साथ बखूबी कर रहे हैं।
रवीश ने अपनी प्राइम टाइम रिपोर्ट में बताया है कि किस तरह से लोजपा ने नीतीश को नुकसान पहुंचाया है। लोजपा का मिशन रवीश को काफी देर से समझ आया है। वो अब समझ चुके हैं कि सारा खेल पर्दे के पीछे किस चाणक्य के इशारों पर खेला जा रहा था। रवीश ने बताया है कि चिराग ने बीजेपी के अंदरखाने प्लानिंग के आधार पर नीतीश की पार्टी के खिलाफ उम्मीदवार उतारे और बीजेपी को खुलकर खेलने का अवसर दिया। नीतीश को सीएम पद की कुर्सी से अलग रखने के लिए ही चिराग ने सारा खेल किया था। रवीश इस बात से भी बेहद क्षुब्ध हैं कि कैसे बीजेपी के सहयोगी के खिलाफ लड़ने वाली पार्टी के साथ बीजेपी केन्द्र में गठबंधन कर सकती है।
रवीश कुमार ने चिराग की पोल-पट्टी खोल दी है और कहा कि चिराग का मकसद नीतीश को कमजोर करने के साथ ही बीजेपी को बड़ा भाई बनाने का रहा है और वो काम चिराग ने बखूबी निभाया है, जिससे नीतीश सीएम न बन पाए। चिराग की प्रेस कान्फ्रेंस को लेकर रवीश ने साफ इशारा किया कि चिराग एक असली हीरो हैं, जो नीतीश को अंदरखाने हराकर एक गेम चेंजर की भूमिका में सामने आए हैं। यही कारण है कि चिराग ने तो प्रेसवार्ता की लेकिन सीएम पद की दावेदारी वाले नीतीश मीडिया के कैमरों से नदारद रहे हैं।
रवीश कुमार ने अपने विश्लेषण में बता दिया है कि किस तरह चिराग ने जेडीयू की सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े करके जेडीयू को कमजोर किया। रवीश ने अपने विश्लेषणों में बता दिया कि नीतीश इस जीत के बावजूद खुश नहीं हैं। उन्हें पता है कि वो एक चाणक्य के जाल में फंस चुके हैं, जहां से निकलना अब मुश्किल है।
रवीश के विश्लेषण में कहीं भी किसी भी तरह का कोई खोट है ही नहीं। चिराग ने अपने चुनाव प्रचार के दौरान हर एक मंच से कहा कि वो नीतीश को चुनाव में हराने के लिए ही एनडीए से अलग हुए हैं। चिराग ने हर मंच से कहा था कि अब नीतीश को सीएम पद पर नहीं देखना चाहते। बीजेपी के सीएम को राज्य में शासन करना चाहिए। चिराग की उतनी सीटें तो नहीं आईं, लेकिन नीतीश को जो नुकसान पहुंचाना था वो चिराग पहुंचा चुके हैं।
नीतीश की पार्टी जेडीयू को इन चुनावों के दौरान खूब नुकसान हो गया है। जेडीयू इसको लेकर लोजपा को कोस भी रही है। जेडीयू के ही नेता का अंदरखाने कहना है कि लोजपा के कारण जेडीयू की करीब 30 सीटें कम हो गई हैं। रवीश को ये बात खाए जा रही थी कि नीतीश का विरोधी बीजेपी के लिए इतना फायदेमंद साबित हुआ है लेकिन जब बीजेपी का फायदा देखा तब रवीश समझ गए कि बीजेपी ने पूरी पटकथा लिख रखी है। अब तो बस उसे अमल में लाया जा रहा है।
बिहार चुनावों को लेकर ऐसा नहीं है कि लोजपा के कारण सारा फायदा बीजेपी को ही हुआ है… कुछ फायदा आरजेडी का भी हुआ है। नीतीश से नाराजगी के कारण जहां जनता ने लोजपा को वोट दिया है तो वहीं आरजेडी को भी फायदा हुआ है। इस बात में कोई शक या शुबा नहीं होना चाहिए कि शायद लोजपा न होती तो आरजेडी की सीटें और भी कम हो सकती थी।
चिराग पासवान की एक चाणक्य के साथ रची गई इस पूरी प्लानिंग को रवीश कुमार ने समझ लिया है, जिसके चलते रवीश ने प्राइम टाइम में एक बेहतरीन विश्लेषण किया है लेकिन अफसोस की बात ये है कि रवीश ने इस मामले में काफी देर कर दी है।