जानिए, आखिर क्यों बिहार की राजनीति से सुशील मोदी की विदाई कोई साधारण घटना नहीं है

नीतीश कुमार के 'आज्ञाकारी' सुमो को हटाकर भाजपा ने एक बड़ा संदेश दिया है

सुशील मोदी

(pc -khabar ndtv)

जब सबकी उम्मीदों के विपरीत एनडीए गठबंधन ने बिहार चुनाव में विजय प्राप्त की, तो कई लोगों की नज़र इस बात पर टिकी हुई थी कि अब बिहार की सत्ता कौन संभालेगा। नीतीश कुमार को जैसे ही एनडीए का नेता घोषित किया गया, सबको लगा कि एक बार फिर स्थिति पहले जैसी ही रहेगी, लेकिन सबको चकित करते हुए भारतीय जनता पार्टी ने सुशील कुमार मोदी के स्थान पर यूपी मॉडल अपनाते हुए तारकिशोर प्रसाद और रेणु देवी को बिहार का उपमुख्यमंत्री बनाया गया।

ये केवल एक अप्रत्याशित निर्णय नहीं है, बल्कि भाजपा द्वारा बिहार में अपना जनाधार सशक्त बनाने और अपनी पुरानी गलतियों में सुधार करने की ओर एक अहम कदम बढ़ाया है। सुशील कुमार मोदी का डेप्युटी सीएम के पद पर बने रहना न केवल एनडीए के लिए, बल्कि भाजपा के लिए भी बहुत हानिकारक था, क्योंकि उनके लिए अपनी खुद की पार्टी या बिहार का विकास कम, और नीतीश कुमार का हित अधिक मायने रखता था।

परंतु ऐसा भी क्या हुआ, जिसके कारण सुशील मोदी द्वारा उपमुख्यमंत्री पद के त्यागने से भाजपा समर्थकों में खुशी की लहर व्याप्त है? राजनीति एक बहुत ही अजीब पेशा है, जहां आपको ना चाहते हुए भी कई लोगों का पक्ष लेना पड़ता है, लेकिन कुछ लोग इतने निकृष्ट होते हैं कि उनके अपने पार्टी के समर्थक तक उनका पक्ष लेने से कतराते हैं, और सुशील मोदी भी ऐसे ही लोगों में से एक है।

इसके बारे में प्रकाश डालते हुए TFI Post के संस्थापक अतुल मिश्रा ने अपने वॉइस थ्रेड में बताया, “सुशील मोदी एक बड़े ही विचित्र व्यक्ति है, जो किसी अखबार में अपने बारे में चाहे कुछ भी लिखा गया हो, उसका एक बढ़िया सा स्क्रीनशॉट बनाकर अपने ट्विटर पर पोस्ट करें। पर सुशील मोदी की वास्तविकता इससे कहीं ज्यादा है, और ऐसा बताके मैं उनकी तारीफ कतई नहीं कर रहा हूँ” –

पर एक वरिष्ठ भाजपा नेता ने ऐसा क्या किया, जिसके कारण वे आलोचना का पात्र बने हुए हैं, और उनके हटाए जाने पर बिहार भाजपा को एक नई राह मिलती दिखाई दे रही है? दरअसल, सुशील कुमार मोदी भाजपा के नेता अवश्य थे, पर उनकी वफादारी नीतीश कुमार के प्रति ज्यादा थी। वे न केवल नीतीश कुमार को बिहार के मुख्यमंत्री पद पर बने रहने देखना चाहते है, बल्कि नरेंद्र मोदी को नीचा दिखाना चाहते थे, जब वे गुजरात के मुख्यमंत्री हुआ करते थे।

यदि आपको इस बात पर विश्वास नहीं है, तो 2008 में कोसी नदी में उत्पन्न बाढ़ के बारे में पढ़ लीजिए। 2008 में बिहार में कोसी में उत्पन्न बाढ़ के पश्चात राहत कार्य में सहायता हेतु सीएम नरेंद्र मोदी ने गुजरात की ओर से 5 करोड़ रुपये राहत कोष में जमा कराए थे। लेकिन जैसे ही इसकी खबर अखबार में छपी, तो अल्पसंख्यक वोट बैंक छिनने के भय से नीतीश कुमार ने पूरा का पूरा पैसा वापिस कर दिया। इसके अलावा जब मोदी बिहार के दौरे पर आए, तो नीतीश कुमार ने उनसे मुलाकात तक नहीं की। इतना ही नहीं, जब नरेंद्र मोदी 2010 में एनडीए के लिए प्रचार करने बिहार आने वाले थे, तो उन्हें बिहार में आने से भी रोका गया था।

अब कहा जाता है कि इसके पीछे सुशील मोदी का हाथ रहा है, जिसके बारे में नीतीश कुमार ने भी अप्रत्यक्ष रूप से इशारा किया था।

सच कहें तो सुशील कुमार मोदी को केवल अपने स्वार्थ की पूर्ति करनी थी, जिसके लिए यदि बिहार भाजपा की बलि भी चढ़ानी पड़ती, तो उन्हे स्वीकार था। लेकिन इस बार उन्हें उपमुख्यमंत्री न बनाकर भाजपा ने यह संदेश दिया है – पार्टी हित से समझौता किसी भी स्थिति में स्वीकार नहीं किया जाएगा।

Exit mobile version