पिछले चार सालों को आप अमेरिका-भारत के रिश्तों का स्वर्णिम युग कह सकते हैं। राष्ट्रपति ट्रम्प ने वर्ष 2016 के चुनावों से पहले अभियान में कहा था कि अगर वे जीतते हैं तो White House में भारत को एक सच्चा दोस्त मिलेगा। पिछले चार सालों में जिस प्रकार अमेरिका ने पाकिस्तान और चीन के मोर्चे पर भारत का साथ दिया और भारत के साथ अपने रक्षा सहयोग को नया आयाम दिया, उसके बाद इतना तो तय है कि अमेरिका में आने वाली कोई भी सरकार, फिर चाहे उसका नेतृत्व ट्रम्प करें या बाइडन, वह कभी भी भारत के खिलाफ कोई stand नहीं ले पाएगी, क्योंकि ऐसा करना खुद अमेरिका के रणनीतिक हित में नहीं होगा!
वर्ष 2014 में भारत में PM मोदी की सरकार बनी और वर्ष 2016 में अमेरिका में ट्रम्प सत्ता में आए। उसके बाद से अमेरिका-भारत के रिश्ते मजबूत ही हुए हैं। ओबामा प्रशासन का ध्यान Trans-Pacific Partnership पर था, जो Indo-Pacific में चीन के दबदबे को और ज़्यादा मजबूत करता! अमेरिका में ट्रम्प प्रशासन आने के बाद USA ने इंडो-पेसिफिक पर अपना ध्यान केन्द्रित करना शुरू किया। ट्रम्प ने भारत की दो सबसे बड़ी समस्याओं-यानि चीन और पाकिस्तान को आड़े हाथों लेकर भारत को बड़ा रणनीतिक लाभ पहुंचाया!
ट्रम्प प्रशासन ने पाकिस्तान को मिलने वाली हर प्रकार की मदद पर रोक लगा दी। Centre for Global Development के मुताबिक पाकिस्तान को अमेरिका ने करीब 80 बिलियन डॉलर की सहायता प्रदान की थी, जिसपर ट्रम्प ने आते ही कुल्हाड़ी चला दी। दूसरी ओर CCP पर नकेल कसने में ट्रम्प ने कोई कसर नहीं छोड़ी। वर्ष 2020 आते-आते ट्रेड वॉर और Tech war के चलते अमेरिका चीन को घुटनों पर ला चुका था। इससे भारत को भी रणनीतिक और आर्थिक फायदा हुआ!
साथ ही ट्रम्प प्रशासन के रहते भारत और अमेरिका के सुरक्षा संबंध बेहद मजबूत हुए। ओबामा प्रशासन के रहते भारत और अमेरिका के बीच Logistics Pact (LEMOA) पर हस्ताक्षर हुए थे, लेकिन उसके बाद ट्रम्प प्रशासन के अंतर्गत ही भारत और अमेरिका के बीच COMCASA और BECA जैसे महत्वपूर्ण समझौतों पर हस्ताक्षर हुए हैं।
डोनाल्ड ट्रम्प ने अपने कार्यकाल में चीन के खिलाफ supply chain वॉर भी छेड़ी। कोरोना के बाद अमेरिका को चीन पर उसकी ज़रूरत से ज़्यादा निर्भरता का अहसास हुआ और उसी के बाद अमेरिका ने अपनी सप्लाई चेन को चाइना-फ्री करने की नीति पर काम करना शुरू किया। अमेरिका द्वारा इस नीति के अपनाने के बाद चीन से दुनियाभर की कंपनियों का “mass exodus” शुरू हुआ, जिसका ASEAN और भारत ने सबसे ज़्यादा फायदा उठाया।
अपनी Indo-Pacific नीति में अमेरिका ने भारत को सबसे अहम स्थान दिया है। अमेरिका ने अपनी विदेश नीति में NATO को छोड़कर Quad को प्राथमिकता दी है। अमेरिका की यह नीति अब बाइडन के आने के बाद भी अपरिवर्तित ही रहने वाली है। ट्रम्प ने अपने फैसलों से भारत-अमेरिका के रिश्तों को वो आयाम दिया है, जहां से अब रिश्तों में किसी प्रकार का तनाव खुद अमेरिका के रणनीतिक हितों को ही नुकसान पहुंचाएगा! White House में ट्रम्प रहें या न रहें, पिछले चार सालों में उनके लिए फैसले भविष्य में भी दोनों देशों के रिश्तों को मजबूत रखने में बड़ी भूमिका निभाते रहेंगे!