अमेरिका भारत से क्या सीख सकता है?

अमेरिका ने कभी कठिनाइयों का सामना नहीं किया!

विश्व में कई देश एक ‘cyclical’ शैली की ग्रोथ से होते हुए गुजरते हैं। इसमें समृद्धि भी आती है और उक्त देश की समृद्धि में निरंतर उछाल का होना काफी मुश्किल है। चीन हो, पर्शिया यानि ईरान हो, भारत हो या फिर रोम, सभी ने अपनी सभ्यता और अपने राष्ट्र के परिप्रेक्ष्य में काफी उतार चढ़ाव देखा है। लेकिन एक देश ऐसा भी है, जिसने केवल और केवल प्रगति के कीर्तिमान ध्वस्त किये हैं, और वह है अमेरिका।

1770 में अपनी स्वतंत्रता से लेकर अब तक अमेरिका ने कभी भी निरंतर गति से कोई नुकसान नहीं झेला है। 1783 में अपनी स्वतंत्रता से लेकर अब तक यूनाइटेड स्टेटस निरंतर प्रयास से न सिर्फ विश्व का तीसरा सबसे बड़ा देश बना है, बल्कि आर्थिक रूप से विश्व का सबसे समृद्ध देश भी है। ऐसे में जब आज अमेरिका में चुनाव में संभावित धांधली, आगजनी, अराजकता इत्यादि से दो चार होना पड़ा है, तो उसे समझ में नहीं आ रहा है कि आगे क्या राह होगी, और यहाँ भारत से उसे काफी कुछ सीखने को मिल सकता है।

भारत आज जहां है, वहां वह अनेकों चुनौतियों और शत्रुओं को मात देकर पहुंचा है। आंतरिक कमजोरियों के कारण ये देश इस्लामिक आक्रान्ताओं से पराजित हुआ, और पहले अरब, फिर अफ़गान, फिर तुर्क, फिर मंगोल और फिर मुगलों के रूप में उज़्बेक आक्रान्ताओं का शोषण झेलना पड़ा। करोड़ों सनातनियों को अपने संस्कृति और अपने राष्ट्र की रक्षा हेतु अपना सर्वस्व अर्पण करना पड़ा था, और जब ऐसा लगा कि मराठा साम्राज्य के नेतृत्व में भारत ने पुनः प्रगति के पथ पर अपना रथ बढ़ाया है, तो आगमन हुआ ब्रिटिश साम्राज्य का।

अगले 150 से भी अधिक वर्षों तक भारत का शासन अंग्रेजों के अधीन हुआ, जिन्होंने हिंदुओं को और अधिक दुर्बल बनाया, और जब तक भारत अंग्रेजों से स्वतंत्र हुआ, उसके दो टुकड़े हो चुके थे। तद्पश्चात भारत का शासन ऐसे लोगों के हाथों में गया जिन्होंने भारत को समाजवाद की आग में झोंका, जिसके कारण भारत की स्थिति बद स बदतर होती गई। ये तो कुछ भी नहीं, समाजवादी नीतियों के साथ साथ भारत को चीन और पाकिस्तान जैसे असहयोगी पड़ोसी, नक्सलवाद, अल्पसंख्यक तुष्टीकरण, आतंकवाद इत्यादि एक साथ झेलने पड़ रहे थे।  तो असल में भारत को वास्तविक स्वतंत्रता 1991 में मिली, जब देश ने समाजवाद की बेड़ियाँ तोड़ प्रगति को पुनः गले लगाया।

600 से 700 वर्षों तक गुलामी सहने के पश्चात आखिरकार 1991 में जब भारत को आर्थिक रूप से पूर्ण स्वतंत्रता मिली, तब जाकर भारत के लोगों को राष्ट्रीय एकता, अखंडता और पूंजीवाद का मूल्य समझ में आया। इसीलिए भारत अब किसी भी कीमत पर राष्ट्रहित से कोई समझौता नहीं करना चाहता है। अपनी पुरानी गलतियों से अहम सीख लेकर नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में वर्तमान केन्द्र सरकार भारत का कायाकल्प करने में जुटी हुई है।

वहीं, दूसरी ओर अमेरिका के पास प्रारंभ से ही पूंजीवादी अर्थव्यवस्था की कृपा है, जिसमें आज तक कोई बदलाव नहीं आया है। धार्मिक तौर पर भी अमेरिका प्रारंभ से ही ईसाई रहा है, और यदि 9/11 एवं गृह युद्ध को छोड़ दें, तो अमेरिका ने विशेष तौर पर कोई संकट नहीं झेला है। इसके अलावा यदि अमेरिका में अपराधियों का जब बोलबाला रहा था, तो उन्होंने भी अपने अनोखे शैली में देश को योगदान दिया, जबकि भारत में ऐसा नहीं है।

सच कहें तो अमेरिका को विश्व का सबसे समृद्ध देश बनने के लिए अधिक मेहनत नहीं करनी पड़ी है। वहीं दूसरी ओर भारत हो, जापान हो या फिर यूनाइटेड किंग्डम, सभी को अनेक प्रकार की समस्याएँ झेलनी पड़ी है, जिसके बावजूद उन्होंने आज अपने लिए एक अलग पहचान बनाई है। इसीलिए अमेरिका के अधिकतर लोगों को डोनाल्ड ट्रम्प का राष्ट्रवाद विषैला लगता है, और उन्हे चीन से बढ़ते खतरे का कोई आभास नहीं है। यदि बाइडेन को सत्ता मिली, तो अमेरिका को जिन बातों पर गर्व होता था, अब वो जल्द ही उसके हाथ से बाइडेन के नीतियों की कृपा से फिसलने लगेगी।

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