“अजान है तो जहान है”, हिंदुओं को त्यागने के बाद अब शिवसेना कराएगी “अजान कंपटीशन”?

ऐसे रंग तो गिरगिट भी नहीं बदलता होगा!

ऐसा लगता है कि शिवसेना ने आधिकारिक तौर पर सेक्युलरिज्म का चोगा ओढ़ लिया है। अब पार्टी अज़ान बोलने की प्रतिस्पर्धा का आयोजन करा रही है। जी हाँ, कभी हिन्दू धर्म से जुड़े मामलों पर अपना एकाधिकार जताने वाली शिवसेना आज खुलकर उन्हीं चीजों को अपना रही है, जिनसे कभी वह कोसों दूर रहने का प्रयास करती थी। हालांकि, आलोचना के बाद शिवसेना ने सफाई दी है।

दरअसल, मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक शिवसेना ने एक चौंकाने वाले निर्णय में ये बताया कि वह बच्चों के लिए अज़ान पढ़ने की स्पर्धा का आयोजन करने जा रही है। इस बारे में बातचीत करते हुए शिवसेना के नेता पांडुरंग सकपाल ने कहा, “मैं रोज अज़ान सुनता हूँ। मुझे उसकी आवाज बड़ी अनोखी और प्यारी लगती है। जो भी इसे सुनता है, वह अज़ान के अगले शेड्यूल का इंतज़ार करता है। इसलिए मैंने मुस्लिम समुदाय के बच्चों के लिए अज़ान पढ़ने की स्पर्धा आयोजित करने का निर्णय लिया है। जो भी जीतेगा, उसे पार्टी नकद पुरस्कार देगी।”

जो पार्टी कभी हिन्दुत्व का राग अलापते नहीं थकती, वह अब अज़ान को बढ़िया तरीके से सुनाने पर मुसलमान बच्चों को पुरस्कृत करेगी। परंतु पांडुरंग महोदय वहीं पर नहीं रुके। जनाब आगे कहते हैं, “अज़ान केवल 5 मिनट तक चलती है। तो अगर किसी को इससे आपत्ति है, तो उन्हें अनदेखा करना चाहिए। अज़ान की रीति सदियों पुरानी है, कोई नई बात नहीं है। अज़ान उतनी ही अहम है जितनी महा आरती। ये प्रेम और शांति का प्रतीक है।”

इस बात पर शिवसेना की फजीहत होनी तय थी और वह हुई भी। जैसे ही पांडुरंग सकपाल की यह वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुई, भाजपा ने शिवसेना को इस बात के लिए आड़े हाथों लिया और उन पर अल्पसंख्यकों की जी हुज़ूरी का आरोप भी लगाया। भाजपा के नेता अतुल भटखालकर के अनुसार“शिवसेना पहले ही हिंदुओं को नकार चुकी है और अब उसने स्पष्ट तौर पर अल्पसंख्यकों के तलवे चाटना शुरू कर दिया है। अब बस भगवा को अलग रख हरा झण्डा पकड़ना बाकी है।”

इसके बाद पांडुरंग सकपाल का एक नया बयान सामने आया है, जिसमें उन्होंने स्पष्ट तौर पर ऐसे किसी भी स्पर्धा के आयोजन से इनकार किया है। पांडुरंग के अनुसार, “ ये तो सिर्फ पार्टी के मुस्लिम सदस्यों द्वारा दिया गया सुझाव था। उन्होंने कहा था कि उनके स्कूल जाने वाले बच्चे इधर उधर घूमते रहते हैं और उनके लिए एक स्पर्धा का आयोजन कराना चाहिए। मैंने उनके लिए अज़ान की स्पर्धा कराने का सुझाव दिया था।”

अब पांडुरंग कुछ भी कहे, जो नुकसान होना था हो चुका है। अब लोग आलोचना करते हुए कह रहे हैं कि कभी राम मंदिर के पुनर्निर्माण में हो रहे विलंब के लिए भाजपा को खूब खरी खोटी सुनाने वाली शिवसेना आज अज़ान की स्पर्धा कराना चाहती है। हालांकि, शिवसेना के रुख में ये बदलाव बहुत पहले ही देखने को मिलने लगा था जब उद्धव ठाकरे ने मंदिर निर्माण का मार्ग प्रशस्त होने पर अयोध्या का दौरा करने की बात तो कही थी, लेकिन स्थिति ढाक के तीन पात रही। सच कहें तो शिवसेना ने वर्तमान घटना से यह सिद्ध कर दिया कि सत्ता में बने रहने के लिए वह किसी भी हद तक जा सकती है।

 

Exit mobile version