घर से निकलते ही, थोड़े दूर चलते ही, बार-बार चीनी मंत्रियों की बेइज्ज़ती क्यों हो रही है?

ASEAN, यूरोप, और जापान और अब नेपाल!

चीन

कोरोना के बाद से अगर चीन को “बहिष्कार” के अलावा कुछ मिला है तो वो अन्य देशों में उसके मंत्रियों की “बेइज्जती” है। चीन के मंत्री किसी भी देश में गए हो, चाहे वो यूरोप हो या जापान या फिर नेपाल ही क्यों न हो, इन सभी देशों में चीन के मंत्रियों को शर्मसार होना पड़ा है।

सबसे ताजा घटना नेपाल और बांग्लादेश की है जहां चीन के रक्षा मंत्री दौरे पर गए थे। इस दौरे में चीन के रक्षा मंत्री Wei Fenghe  नेपाल के रक्षा मंत्री से द्विपक्षीय बैठक करना चाहते थे। परंतु नेपाल के प्रोटोकाल के कारण वे नहीं मिल पाए। आपको बता दें कि, प्रधानमंत्री केपी ओली के पास ही रक्षा मंत्रालय है। ऐसे में फिर उन्होंने उप प्रधानमंत्री से मिलने की उम्मीद जताई लेकिन यह बैठक भी कैंसल करनी पड़ी। बाद में उन्हें नेपाल के सेनाध्यक्ष से मिल कर संतोष करना पड़ा जो अंतराष्ट्रीय प्रोटोकाल में एक कदम-नीचे माना जाता है। चीनी रक्षा मंत्री की यह बेइज्जती यहीं नहीं रुकी बल्कि और भी किस्से हुए।

रिपोर्ट के अनुसार नेपाल में स्थित चीनी दूतावास ने दोपहर के भोजन की योजना बनाई थी जिसमें नेपाल के सभी पूर्व विदेश मंत्रियों और रक्षा मंत्रियों को आमंत्रित किया जाना था। लेकिन नेपाल सरकार द्वारा रिज़र्वेशन के कारण इसे भी ठप करना पड़ा। यानि चीन के रक्षा मंत्री Wei Fenghe  की नेपाल यात्रा में उन्हें केवल पीएम और नेपाल के राष्ट्रपति के साथ फोन पर बातचीत करने का और थल सेना प्रमुख थापा के साथ बैठक करने का ही मौका मिल पाया।

उसके बाद चीनी रक्षा मंत्री  बांग्लादेश के लिए उड़ान भरने वाले थे, लेकिन वहाँ की कहानी भी वही थी। योजना तो खूब बनी थी लेकिन इसे भी स्थगित करना पड़ा। बताया यह गया कि बांग्लादेश के वित्त मंत्री, उनके डेप्युटी और सेक्रेटरी को कोरोना है। हालांकि, इस तरह का कारण विश्लेषक किसी भी तरह से पचाने में असमर्थ हैं!

इससे पहले चीन के विदेश मंत्री Wang Yi की कई देशों में फजीहत हो चुकी है। पिछले महीने ही उन्होंने जापान की यात्रा की थी जहां उन्हें घोर बेइज्जती का सामना करना पड़ा। चीनी विदेश मंत्री को इस यात्रा से बहुत उम्मीदें थीं। वह चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के लिए जापान की राजकीय यात्रा कर जापान के साथ खराब हुए रिश्तों को सुधारना चाहते थे। लेकिन एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान Wang Yi को उनके जापानी समकक्ष ने निर्दयता से लताड़ा। बैठक के बाद प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान, जापानी विदेश मंत्री Motegi Toshimitsu ने Wang Yi को सार्वजनिक रूप से अपमानित करते हुए सेनकाकू द्वीप समूह के असहज मुद्दे को उठा कर सवाल किया। Motegi ने स्पष्ट किया कि उन्होंने पूर्वी चीन सागर में द्वीपों को ले कर टोक्यो के स्पष्ट रुख को बताया है। उन्होंने आगे चीन से रचनात्मक तरीके से इस मुद्दे पर कार्रवाई करने का आग्रह किया।

बता दें कि Wang Yi के इस जापानी दौरे से पहले वो यूरोप और दक्षिण एशियाई देशों के दौरे पर भी गए थे, जहां उन्हें घनघोर बेइज्जती का सामना करना पड़ा।

अगस्त में, Wang Yi ने चीन की कूटनीतिक छवि को हुए नुकसान के बाद चीन छवि सुधारने के लिए इटली, नीदरलैंड नॉर्वे, फ्रांस और जर्मनी का दौरा किया था। हालाँकि, यह दौरा उनके लिए एक आपदा साबित हुआ जिसमें Yi को शिंजियांग और तिब्बत में हो रहे मानवाधिकारों के उल्लंघन के साथ-साथ हांगकांग में चीनी राजनीतिक हस्तक्षेप के बारे में कठिन सवालों का सामना करना पड़ा। यही नहीं चेक गणराज्य जैसे यूरोपीय संघ के देशों को धमकियां देने के लिए भी चीन को फटकार लगाई गयी।

इटली के विदेश मंत्री Luigi Di Maio, हांगकांग में चीन के कदमों के बारे में गंभीर थे। मौलिक स्वतंत्रता और स्वतंत्रता बनाए रखने के लिए हांगकांग शहर की क्षमता पर संदेह करते हुए, Maio ने संवाददाताओं से कहा कि रोम राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के प्रवर्तन के बाद स्थिति की निगरानी करना जारी रखेगा। इससे Wang Yi को असहज और रक्षात्मक होते हुए देखा गया था। उन्होंने हांगकांग में राष्ट्रीय सुरक्षा कानून का बचाव करते हुए तर्क देते हुए कहा कि,”यह आवश्यक है कि चीनी कम्युनिस्ट पार्टी देशद्रोही गतिविधियों को रोकने के लिए आवश्यक कदम  उठाए।”

अपनी नीदरलैंड यात्रा पर भी Yi की यही हालत हुई। नीदरलैंड ने चीन के सामने हांगकांग और शिनजियांग में मानव अधिकारों के उल्लंघनों पर मामला उठा दिया।

Wang के असली रंग नॉर्वे में सामने आए, जब ओस्लो में एक प्रेसवार्ता के दौरान कुछ पत्रकारों ने पूछ लिया कि यदि हांगकांग के नेताओं को नोबेल पुरस्कार दिया गया तो उनकी क्या प्रतिक्रिया होगी। वांग यी इस प्रश्न पर बुरी तरह चिढ़ गए और उन्होंने नॉर्वे को धमकी दी कि, “यदि हांगकांग के लोगों को नोबल शांति पुरस्कार दिया गया, तो अंजाम बहुत ही बुरा होगा।” परंतु बात यहीं पर नहीं रुकी।

जब वांग यी जर्मनी आए, तो उन्होंने चेक गणराज्य के संसद के अध्यक्ष को ताइवान के दौरे के लिए धमकी दी। लेकिन इसका प्रभाव उल्टा ही हो गया। जर्मनी के विदेश मंत्री Heiko Maas ने उनके सामने यह कह दिया था कि, “हम यूरोपीय देश एक साथ सहयोग से काम करते हैं। हम अपने अंतरराष्ट्रीय भागीदारों को सम्मान देते हैं और हम उनसे भी यही उम्मीद करते हैं। धमकी यहाँ नहीं चलने वाली है।”

इतना ही नहीं, हीको मास ने चीन द्वारा किए जा रहे मानवाधिकार उल्लंघन के मुद्दे को उठाया, और साथ ही साथ परोक्ष रूप से चीन पर आर्थिक प्रतिबंध लगाने की धमकी भी दी।

यानि देखा जाए तो यह वर्ष को चीन के इतिहास की अब तक की सबसे बड़ी कूटनीतिक शर्मिंदगी का वर्ष कहा जाएगा, जिसका सामना चीन को करना पड़ा और चीनी विदेश मंत्री इसके केंद्र में थे।

 

 

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