प्रशांत क्षेत्र के देशों के व्यापारिक समझौते ट्रांस पैसिफिक ट्रेड पैक्ट ‘ TPP ‘ में प्रवेश की चीन की कोशिशों को जापान ने नाकाम कर दिया है। जापान अगले वर्ष इस व्यापारिक समझौते के तहत बने संघ की अध्यक्षता करेगा और जापान के प्रधानमंत्री योशिहिदा सुगा ने स्पष्ट किया है कि “टीपीपी में 11 सदस्य हैं, और नए देश उनकी मंजूरी के बिना शामिल नहीं हो सकते हैं।” उन्होंने नए सदस्यों के प्रवेश के संदर्भ में आगे कहा कि “इसमें बड़ी बाधा है।” साथ ही उन्होंने कहा कि ” इस पर प्रतिक्रिया देते समय हम रणनीतिक पहलुओं पर भी विचार करेंगे।”
जापान के विदेश मंत्री तोषिमित्सु ने अपने बयान में कहा है कि E कॉमर्स, इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी और सरकार नियंत्रित उद्यमों को लेकर TPP के उच्च मानक हैं। उन्होंने कहा “हमें यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि कोई भी नया सदस्य इन मानकों को पूरा करने के लिए तैयार है।”
स्पष्ट है कि जापान, चीन के लिए TPP में प्रवेश को नामुमकिन बनाने वाला है। बता दें कि चीन की अर्थव्यवस्था डांवाडोल स्थिति में चल रही है, ऐसे में उसकी प्राथमिकता TPP जैसे बहुराष्ट्रीय व्यापारिक समझौते में शामिल होना है, जिससे वह अपनी गर्त में जाती अर्थव्यवस्था को बचा सके। इसी उद्देश्य से उसने पिछले महीने ही ऑस्ट्रेलिया, न्यूज़ीलैंड और आसियान देशों के व्यापारिक समझौते ‘RCEP’ पर हस्ताक्षर किए थे। गौरतलब है कि इस समझौते में चीन के साथ ही जापान भी शामिल है। चीन का इरादा इस RCEP के जरिये क्षेत्रीय भूराजनीतिक समीकरण साधने का है, जिसमें उसे अपनी बड़ी अर्थव्यवस्था का लाभ मिलता। इसलिए जापान व्यापारिक लाभ के अलावा चीन की निगरानी हेतु भी RCEP में शामिल हुआ है।
वहीं TPP की बात करें तो अभी इसमें कुल 11 सदस्य देश हैं, जिनमें सिंगापुर, ब्रूनेई, चिली, न्यूज़ीलैंड, कनाडा जैसे देश शामिल हैं। यह संगठन सीधे रूप से एशिया के अलावा उत्तरी एवं दक्षिणी अमेरिका को जोड़ता है। TPP के आर्थिक महत्त्व को इसी बात से समझा जा सकता है कि यूरोपीय यूनियन से अलगाव के बाद से यूनाइटेड किंगडम इसमें शामिल होने के लिए प्रयासरत है। इसके अतिरिक्त थाईलैंड भी इसमें शामिल होने के लिए प्रयास कर रहा है। चीन यदि इसमें शामिल होता तो उसकी अर्थव्यवस्था के लिए नए अवसर बनते। लेकिन जापान उसकी डूबती अर्थव्यवस्था पर कोई रहम नहीं करने वाला। जापान के हालिया फैसलों में यह स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है।
चीन इसलिए भी व्याकुल है क्योंकि अभी अमेरिका में राष्ट्रपति की शक्ति का हस्तांतरण होने वाला है। बाइडन का चुनावी अभियान घरेलू मुद्दों पर केंद्रित रहा था। ऐसे में चीन को यह समय अपनी चालबाजियों हेतु सबसे उपयुक्त लगा था, किंतु जापान ने उसके इरादों पर पानी फेर दिया।
TPP सदस्य देश मुक्त व्यापार के पक्षधर हैं। सदस्य देशों से अपेक्षा रखी जाती है कि वे कंपनियों में खुली प्रतियोगिता को बढ़ावा देंगे और किसी कंपनी को सरकारी प्रश्रय नहीं मिलेगा। वहीं चीन की नीतियां इन दोनों सिद्धांतों के बिल्कुल विपरीत है। ऐसे में उसे TPP की सदस्यता मिलना लगभग नामुमकिन है। साफ जाहिर है कि जापान न तो TPP को चीनी षडयंत्र का उपकरण बनने देगा और न ही RCEP में चीन की चालबाजियों को सफल होने देगा।