अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प ने तुर्की के रूसी एस -400 मिसाइल-रक्षा प्रणाली की खरीद पर तुर्की के खिलाफ प्रतिबंधों को मंजूरी दे दी है। अब इन प्रतिबंधों के बाद तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोगन ने अमेरिका के नए राष्ट्रपति जो बाइडन की ओर रुख किया है और यह उम्मीद कर रहे हैं कि वे राष्ट्रपति बनने के बाद तुर्की पर लगे प्रतिबंधों को हटा कर उसे कुछ राहत देंगे। परंतु ऐसा कुछ होता नहीं दिखाई दे रहा है। दरअसल, वाशिंगटन ने नाटो के सदस्य तुर्की के Defence Industry Directorate (SSB) और उसके प्रमुख इस्माइल डेमीर और तीन अन्य कर्मचारियों पर रूसी एस -400 मिसाइल रक्षा प्रणालियों के हुए अधिग्रहण के कारण प्रतिबंध लगा दिया।
इस कदम पर अपनी पहली सार्वजनिक टिप्पणी में, एर्दोगन ने कहा कि प्रतिबंधों के कारण उत्पन हुई समस्याओं को दूर किया जाएगा और नाटो सहयोगी को दंडित करने के लिए वाशिंगटन की आलोचना करते हुए एक स्वतंत्र रक्षा उद्योग की दिशा में प्रयासों को विफल करने के लिए आलोचना की। एर्दोगन ने कहा कि, “यह किस तरह का गठबंधन है? यह किस तरह की साझेदारी है? यह फैसला हमारे देश के संप्रभु अधिकारों पर एक हमला है।“
अपने कार्यकाल शुरू होने के कई वर्षों तक तुर्की के मित्र रहने वाले डोनाल्ड ट्रम्प ही थे, जिन्होंने राष्ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोगन के साथ घनिष्ठ और व्यक्तिगत संबंध स्थापित किये थे और उसी के कारण तुर्की की आक्रामक विदेश नीति और तेज़ हुई। अब अपने कार्यकाल के अंतिम क्षणों में ट्रम्प ने यू टर्न लेते हुए एक ऐसा फैसला लिया है जो भविष्य में एर्दोगन पर भारी पड़ने वाला है।
इन प्रतिबंधों का फैसला ऐसे समय पर आया है जब अमेरिका के राष्ट्रपति के रूप में 20 जनवरी को डोनाल्ड ट्रम्प की जगह जो बाइडन पदभार संभालने वाले हैं, जिससे बाइडन के ऊपर और दबाव रहेगा। यही नहीं, एर्दोगन भी इसी भरोसे में बैठे हैं कि अमेरिका के अगले राष्ट्रपति बाइडन आएंगे और उन्हें राहत देंगे।
एर्दोगन के संचार निदेशक, Fahrettin Altun ने कहा कि यह प्रतिबंध बाइडन के लिए एक बोझ होगा, लेकिन अंकारा का मानना था कि वाशिंगटन “देरी के बिना इस गंभीर गलती” को उलट देगा।
यानि एर्दोगन अब इसी उम्मीद में बैठे हैं कि बाइडन व्हाइट हाउस आते ही तुर्की के खिलाफ लगाए गए प्रतिबंधों को पलट देंगे। एर्दोगन ने पिछले हफ्ते कहा था कि वह वाशिंगटन के साथ तनावपूर्ण संबंधों पर चर्चा करेंगे, जब एक बार बाइडन व्हाइट हाउस में प्रवेश करेंगे।
हालांकि, जिस तरह से दूर का ढ़ोल सुहावन होता है, उसी तरह एर्दोगन का भी यह सपना बाइडन के आने के बाद भी सच नहीं होने वाला है और इसके दो कारण हैं। पहला यह कि वे एक तुर्की विरोधी नेता हैं और पहले कई बार तुर्की के खिलाफ बयान दे चुके हैं। वह तो एर्दोगन की आलोचना करते हुए यह भी कह चुके हैं कि अमेरिका को एर्दोगन के राजनीतिक विरोधियों का समर्थन करना चाहिए। वहीं बाइडेन को कुर्द समर्थक सहानुभूति के लिए जाना जाता है, ऐसे में एर्दोगन द्वारा लगातार उत्तर-पूर्व सीरिया को लक्षित करने और तुर्की के लड़ाकों द्वारा किए गए मानवाधिकारों के उल्लंघन के खिलाफ भी बाइडन तुर्की को सबक सिखाना चाहेंगे।
और दूसरा कारण यह है कि अमेरिका ने तुर्की को रूस से S-400 डिफेंस सिस्टम खरीदने के लिए दंडित किया है यानि यह फैसला रूस विरोधी भी है। ऐसे में बाइडन को एक कट्टर रूस विरोधी नेता के तौर पर देखा जाता है और वह कोई ऐसा फैसला नहीं लेंगे जिससे रूस के डिफेंस सेक्टर को बढ़ावा मिले।
पिछले ही साल घोषणा की गई थी कि अंकारा के फैसले के कारण उसे अमेरिका के F-35 फाइटर जेट प्रोग्राम से हटाया जा रहा है। इसने तुर्की की 100 से अधिक विमानों की खरीद की योजना को भी अवरुद्ध कर दिया था। अब इसी क्रम में उस पर प्रतिबंध भी लगा दिया गया है। यानि आने वाले समय बाइडन के राष्ट्रपति बनने के बाद भी तुर्की और अमेरिका के सम्बन्धों में सुधार होने की उम्मीद नहीं है। एर्दोगन जिस सपने को देख रहे हैं, वह भी 20 जनवरी के बाद ताश के पत्तों की तरह ढहने वाला है।