जम्मू कश्मीर में बदलाव की हवा चल रही है। रिपोर्ट लिखे जाने तक भाजपा इन चुनावों में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है, भले ही वह सीटों के मामले में अपनी प्रतिद्वंद्वी गुपकार गठबंधन से पीछे हो। 280 सीटों में से अभी कुछ सीटों पर मतगणना जारी है। हालांकि, नतीजों की तस्वीर लगभग साफ हो चुकी है। गुपकार गठबंधन जम्मू-कश्मीर में 112 सीटें जीतकर सबसे आगे रहा है। हालांकि, भाजपा ने भी 74 सीटें जीती हैं। नेशनल कांफ्रेंस 67 सीटों को जीतकर भाजपा के बाद दूसरे स्थान पर है जबकि भारत का झण्डा न उठाने की कसमें लेने वाली महबूबा मुफ़्ती की पार्टी पीडीपी केवल 27 सीटें जीत सकी है।
जिस कश्मीर में कुछ वर्षों पहले तक भारत पाकिस्तान मैच में भारत की हार पर आतिशबाजी और जश्न होता था वहां चुनावों को लोकतंत्र के उत्सव की तरह मनाया जा रहा है। 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद यह कश्मीर में पहला चुनाव है, साथ ही यह चुनाव अनुच्छेद 370 हटने के बाद से पहली बार हुआ है। महत्वपूर्ण बात यह है कि इस चुनाव में घाटी में पोलिंग प्रतिशत पिछले कुछ दशकों में हुए किसी अन्य चुनाव से अधिक रहा है। 2019 में कश्मीर का कुल वोटिंग प्रतिशत 44.97 प्रतिशत था, जबकि इस स्थानीय जिला विकास परिषद के चुनावों में पोलिंग 51.42 प्रतिशत रही।
निर्दलीय उम्मीदवारों को 49 सीटें मिली हैं जो बताता है कि लोग चुनाव को मात्र राजनीतिक एजेंडा पूरा करने के नजर से नहीं देख रहे बल्कि लोकतांत्रिक प्रक्रिया में विश्वास कर रहे हैं। यह दिखाता है कि भाजपा जम्मू कश्मीर में अपना एजेंडा लागू करने में सफल रही है। मोदी सरकार का उद्देश्य जम्मू कश्मीर के लोगों, विशेष रूप से घाटी के लोगों को लोकतंत्र की मुख्यधारा से जोड़ना है, जिसमें वे सफल हुए हैं। साथ ही लोगों द्वारा चुनावों में ऐसी भागीदारी बताती है कि वे अब अपने विरोध, मतभिन्नता या समर्थन, सभी को लोकतांत्रिक तरीके से दर्ज कराना सीख गए हैं। यही एक बात पाकिस्तान और अलगाववादी ताकतों के मुंह पर करारा तमाचा हैं।
एक अन्य महत्वपूर्ण बात जो इस चुनाव में सामने आई है वह यह कि भाजपा ने अपनी शक्ति को पहले से कहीं ज्यादा बढ़ा दिया है। जम्मू इलाके में उसका दबदबा कायम है, जबकि वह गुपकार गठबंधन के गढ़, कश्मीर में सेंध लगाने में कामयाब हो गई है। कश्मीर घाटी में भाजपा का कोई जनाधार नहीं रहा है। घाटी ही अलगाववाद का गढ़ रही है। लेकिन इसके बाद भी वहाँ भाजपा 3 सीट जीत गई है। भले गुपकार गठबंधन को उससे कहीं अधिक सीट मिली है लेकिन यह तभी संभव हुआ जब सारे राजनीतिक दल गठबंधन में एकसाथ भाजपा के खिलाफ लड़े और उनका घाटी में पारंपरिक वोटबैंक रहा है। यदि यह मुकाबला पूर्व की भांति कांग्रेस, पीडीपी, नेशनल कांफ्रेंस और भाजपा के बीच चतुष्कोणीय होता तो भाजपा संभवतः स्पष्ट बहुमत से चुनाव जीत सकती थी।
यह मुकाबला मजेदार था, लेकिन उससे भी मजेदार होगा कश्मीर का आने वाला चुनावी माहौल। भाजपा की बढ़ी ताकत कश्मीर में भ्रष्टाचार के दौर को खत्म करेगी। अब विकास फंड पर तीन परिवारों का कब्जा नहीं होगा, जिससे आने वाले समय में जम्मू कश्मीर का विकास तेजी से होगा।