कभी-कभी कुछ लोग दूसरों के लिए इतनी तत्परता से गड्ढा खोदते हैं कि वे अंत में उसी गड्ढे में खुद ही गिर जाते हैं, और कुछ ऐसा ही हुआ चीन के साथ। ऑस्ट्रेलिया द्वारा चीन की हेकड़ी को चुनौती देने और वुहान वायरस के लिए होने वाली जवाबदेही पर चीन उसे एक भारी भरकम टैरिफ नीति से बर्बाद करना चाहता था, लेकिन ये दांव उल्टा चीन पर ही भारी पड़ा है, क्योंकि अब चीन में Iron Ore के दामों में जबरदस्त बढ़ोतरी हुई है, जिसके कारण ऑस्ट्रेलिया के पास अब चीन को उसकी औकात बताने का एक सुनहरा अवसर है।
जिस प्रकार से वुहान वायरस की महामारी के दौरान चीन ने इन्फ्रास्ट्रक्चर संबंधी प्रोजेक्ट्स में निवेश किया है, उससे स्टील की मांग काफी बढ़ी है। लेकिन अब चीन के पास पर्याप्त Iron Ore ही नहीं है, जिससे वो इस मांग को पूरा कर सके। यही समय है कि ऑस्ट्रेलिया अपने Iron Ore की सप्लाई रोक कर चीनी अर्थव्यवस्था की कमर तोड़ दे।
ऐसा कैसे संभव है? दरअसल, चीन अपना 60 प्रतिशत Iron Ore ऑस्ट्रेलिया से आयात करता है। स्वयं ऑस्ट्रेलिया Iron Ore के उत्पादन और निर्यात में दुनिया भर के देशों में शीर्ष स्थान रखता है। लेकिन जिस प्रकार से चीन ने ऑस्ट्रेलिया पर टैरिफ थोपा है, उससे उसने अपनी ही पैर पर कुल्हाड़ी मारी है, क्योंकि उसे ऑस्ट्रेलिया के Iron Ore का अब तक एक असरदार विकल्प नहीं मिल पाया है। ।
अब Iron Ore ऑस्ट्रेलिया के चीनी एक्सपोर्ट्स का कुल 40 प्रतिशत की हिस्सेदारी रखता है, लेकिन जिस प्रकार से इसके दाम बढ़ रहे हैं, उससे न सिर्फ चीनी स्टील उत्पादकों को नुकसान हो रहा है, बल्कि ऑस्ट्रेलियाई नागरिकों के लिए अत्यंत लाभकारी सौदा सिद्ध हो सकता है।
ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि ऑस्ट्रेलिया अब इसी स्थिति का इस्तेमाल चीन के विरुद्ध कर सकता है। अपने टैरिफ युद्ध में चीन ने एक और गलती की थी, जब उसने ऑस्ट्रेलिया के उस कोकिंग कोयले पर ऊंची टैरिफ दर लगाई, जिसके कारण चीन का स्टील उद्योग इतने वर्षों से फल फूल रहा था। मतलब अपने ही हाथों से अपने देश की लंका लगाना तो कोई चीन से सीखे।
अब चीन के सामने समस्या ये भी है कि कहीं अगर ऑस्ट्रेलिया ने चीन को ठेंगा दिखाकर अपना Iron Ore दूसरे देशों को बेचना शुरू कर दिया, तो चीन की अर्थव्यवस्था रसातल में जाने लगेगी। ऐसे में ऑस्ट्रेलिया के लिए यही सही अवसर है, जब वह अपने Iron Ore के एक्सपोर्ट्स को दूसरे देशों, जैसे भारत और जापान की ओर केंद्रित कर सकता है, जिससे न सिर्फ चीन के स्टील उत्पादन को तगड़ा नुकसान पहुंचेगा, बल्कि स्टील उत्पादन में चीन का वर्चस्व भी समाप्त होगा। इसके लिए केवल और केवल चीन की साम्राज्यवादी नीति ही जिम्मेदार होगी, और कोई नहीं।