‘ट्रम्प के कारण चीन को बहुत झेलना पड़ा था’, चीन ने अपने दर्द को किया बयां

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पिछले चार वर्ष चीन के लिए किसी दुस्वप्न से कम नहीं रहे हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के नेतृत्व में चीनी प्रशासन की हेकड़ी के लिए, पूरे देश को दुष्परिणाम भुगतने पड़े हैं। चाहे व्यापार में पंगा मोल लेने के लिए असीमित टैरिफ़ लगाने हो, या फिर मानवाधिकार उल्लंघन के लिए चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के विरुद्ध प्रतिबंध लगाना हो, डोनाल्ड ट्रम्प ने चीन की खटिया-खड़ी करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है।

एक बेहद ही मार्मिक लेख में चीन के मुखपत्र चाइना डेली ने बताया कि कैसे ट्रम्प प्रशासन के निर्णयों ने चीन और अमेरिका के रिश्तों में कुछ ऐसी दरारें ला दी है, जिसे नहीं भरा जा सकता। इस लेख में चाइना डेली ने स्पष्ट कहा है, “यदि वर्तमान प्रशासन के भीतर संबंध सुधारने की इच्छा भी होगी, तो भी कुछ जगह ऐसे हैं, जहां चीन को हुए नुकसान की भरपाई नहीं की जा सकती।”

चाइना डेली द्वारा प्रकाशित यह संपादकीय एक तरह से इस बात को सिद्ध करता है कि चीनी कम्युनिस्ट पार्टी को जो बाइडन के प्रशासन पर ज्यादा विश्वास नहीं है। अभी हाल ही में उनकी शंकाओं को पुष्ट करते हुए जो बाइडन ने कहा कि फिलहाल वे स्थिति सामान्य होने तक चीन पर ट्रम्प प्रशासन द्वारा लगे प्रतिबंधों के संबंध में कोई एक्शन नहीं लेंगे।

चीन को हर मोर्चे पर ट्रम्प प्रशासन एक करारा झटका देने में कामयाब रहा है। वर्षों तक जिस तरह से चीन अमेरिका से बेहिसाब धन और बौद्धिक संपत्ति लूटता था, वो सुविधा ट्रम्प प्रशासन के दौरान उससे बुरी तरह से छीन ली गई। इसका सबसे प्रत्यक्ष उदाहरण अभी हाल ही में देखने को मिला, जब अमेरिकी संसद के निचले सदन ने फॉरेन कम्पनीज अकाउंटेबल एक्ट को पारित कराया, जो अमेरिकी स्टॉक एक्सचेंज से चीनी कंपनियों को हटाने का मार्ग प्रशस्त करेगा।

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इसके अलावा चाहे Huawei से उसकी ‘Tech Giant’ की पदवी छीननी हो, या फिर दुनिया में इसे प्रतिबंधित करवाने के लिए मजबूती से प्रचार-प्रसार करना हो, आप बस बोलते जाइए और ट्रम्प प्रशासन ने वो सब किया। इसके अलावा अमेरिका ने ये भी सुनिश्चित किया की वित्तीय धांधली में गिरफ्तार Huawei की सीएफ़ओ फिलहाल कनाडा से बाहर नहीं निकल पाएँ, और चीन चाहकर भी इसके विरोध में कुछ नहीं कर पा रहा है।

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रणनीतिक और सैन्य रूप से डोनाल्ड ट्रम्प ने बीजिंग को नाकों चने चबवाने पर मजबूर कर दिया है। पिछले चार वर्षों में दक्षिण चीन सागर में चीन के कथित ‘संपत्तियों’ के विरुद्ध अमेरिका ने जोरदार तरह से मोर्चा संभाला है। जिस प्रकार से उसने खुलकर ताइवान की सहायता की है, उससे स्पष्ट है कि अमेरिकी प्रशासन, चीन को हराने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार है। इसके अलावा भारत, ऑस्ट्रेलिया और जापान के साथ QUAD के गठन ने ये भी स्पष्ट किया कि इंडो-पेसिफिक क्षेत्र में चीन की दादागिरी अब और नहीं चलेगी।

कूटनीतिक मोर्चे पर ट्रम्प प्रशासन की सबसे बड़ी सफलता रही है चीन को दुनिया से अलग-थलग करने में। अब कोई भी देश चीन के साथ संबंध स्थापित करने से पहले दस बार सोच रहा है। ऊपर जो उदाहरण है, वो तो बस कुछ ही हैं, और चीनी प्रशासन को भली-भांति पता है कि बाइडन प्रशासन उसे पूछेगा तक नहीं, सहायता देना तो बहुत दूर की बात है।

 

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