चीन: विरोध के भय से जिनपिंग ने मोल ली, चीनी टेक कंपनियों से लड़ाई

उद्योगपति बगावत करे, उससे पहले ही जिनपिंग ने तैयार किया प्लान

चीन की कम्युनिस्ट सरकार सिर्फ विश्व के ताकतवर देशों के साथ युद्ध से नहीं बल्कि आंतरिक युद्ध से भी जूझ रही है। चीन के अंदर शी जिनपिंग को अब न सिर्फ अपने विरोधियों से डर लग रहा है बल्कि टेक कंपनियों से भी डर लग रहा है। उन्हें लग रहा है कि चीन की बड़ी कंपनियाँ उनके प्रभुत्व को चुनौती दे रहे हैं। इसी क्रम में अब शी जिनपिंग ने चीन की दो सबसे बड़ी कंपनियों यानि अलीबाबा ग्रुप और टेनसेंट होल्डिंग्स के साथ युद्ध छेड़ दिया है।

Reuters की रिपोर्ट के अनुसार चीन ने सोमवार को अपने इंटरनेट दिग्गज कंपनियों को चेतावनी दी कि वह उन कंपनियों के एकाधिकारवादी प्रथाओं को बर्दाश्त नहीं करेगा और साथ ही जुर्माना लगते हुए अलीबाबा ग्रुप और टेनसेंट होल्डिंग्स पर जांच की घोषणा कर दी।

चीन की State Administration of Market Regulation (SAMR) ने कहा कि 2008 के एकाधिकार विरोधी कानून के तहत अलीबाबा, टेनसेंट -समर्थित चाइना लिटरेचर और शेन्ज़ेन हाइव बॉक्स को 500,000 युआन (76,464 डॉलर) को जुर्माना भरना होगा क्योंकि इन कंपनियों ने अपने पिछले सौदों की रिपोर्टिंग सरकार को नहीं की है। यानि किसी भी निजी कंपनी को CCP से अपने सभी डील की जानकारी शेयर करनी होगी।

SAMR ने कहा कि यह अक्टूबर में घोषित किए गए गेम लिविंगस्ट्रीमिंग कंपनियों Huya Inc और DouYu International के बीच विलय पर भी जांच करेगा। टेनसेंट दोनों में एक प्रमुख निवेशक है।

SAMR ने कहा कि तीनों मामलों का जुर्माना समाज के लिए एक संकेत है कि इंटरनेट क्षेत्र में एकाधिकार-विरोधी जांच को मजबूत किया जाएगा। यही नहीं सरकार के इस संस्थान का यह मानना है कि यह जुर्माना अपेक्षाकृत कम लगाया गया है।

शी जिनपिंग के इस कार्रवाई के बाद अलीबाबा और टेनसेंट दोनों के हांगकांग में सूचीबद्ध शेयर गिर गए। अलीबाबा के 2.6% और Tencent के शेयरों में 30 नवंबर के बाद से 2.9% गिरावट दर्ज हुई।

यह पहली बार है जब बीजिंग ने एंटी-ट्रस्ट वेटिंग के लिए अपने सभी सौदों को ठीक से रिपोर्टिंग न करने के कारण किसी इंटरनेट कंपनी पर 2008 के एंटी-मोनोपॉली कानून के तहत जुर्माना लगाया है। बीजिंग ने पिछले महीने इंटरनेट कंपनियों द्वारा एकाधिकारवादी व्यवहार को रोकने के उद्देश्य से मसौदा नियम जारी किए थे।

कंपनियों का सरकार को अपने सौदों की जानकारी न देना कितना बड़ा मुद्दा बन गया था यह इसी बात से समझा जा सकता है कि राष्ट्रपति शी जिनपिंग की अध्यक्षता में एक पोलित ब्यूरो की बैठक हुई। शी जिनपिंग को ऐसा लग रहा है कि ये कंपनियाँ उनके प्रभुत्व को चुनौती दे रही है।

अरबपति जैक मा द्वारा स्थापित अलीबाबा का Ant Group की भी उच्च स्तरीय जांच हो रही है। इसकी 37 बिलियन डॉलर की लिस्टिंग, जो दुनिया की सबसे बड़ी लिस्टिंग होने वाली थी उसे भी पिछले महीने अचानक रोक दिया गया था। ध्यान देने वाली बात है कि शी जिनपिंग ने पिछले कुछ समय में जैक मा को अपने निशाने पर लिया है और कारण बस ये था कि उन्होंने एक विवादास्पद बयान दे दिया था। चीन के नियामक ढांचे पर जैक मा ने कहा था कि देश के वित्तीय विनियमन पुराने और आउटडेटेड है।

अगर ताजा घटनाक्रम को देखा जाए तो यह स्पष्ट हो जाएगा कि शी जिनपिंग देश के निजी क्षेत्र को नष्ट करने के मार्ग पर चल रहे हैं। उन्हें डर सता रहा है कि कहीं पूंजीपति स्वायत्तता प्राप्त कर देश की कम्युनिस्ट विचारधारा और पार्टी से बगावत पर न उतर जाएँ।

किसी भी कम्युनिस्ट देश में निजी क्षेत्रों के लिए ऐसी ही भावना रहती है। वह नहीं चाहते हैं कि किसी भी उद्योगपति को किसी भी प्रकार की छूट मिले जिससे वे अपने स्वायत्त तरीके से फैसले ले। उनके अंदर निजी क्षेत्र के लिए एक ऐसी कुंठा भरी रहती है जिससे बच पाना मुश्किल है। यही हाल शी जिनपिंग का है।

यह और कुछ और नहीं बल्कि जिनपिंग का डर है जो उन्हें सता रहा है कि कोई बगावत कर उन्हें चुनौती दे देगा। वर्चस्ववाद की एक गलत भावना के साथ अहंकार और साम्यवाद में लिपटे शी जिनपिंग अब पूरी तरह से चीन के निजी क्षेत्र को उसी तरह घुटने पर लाने की राह पर हैं जैसे एक पश्चिमी मालिक अपने दासों को लाता था।

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