यदि किसी को अब भी लगता है कि चीन नेपाल को अपने नियंत्रण में ले सकता है, तो उसकी नादानी पर हंसी आती है। ऐसा लगता है कि चीन द्वारा नेपाली क्षेत्र पर कब्जा और आँसू गैस के गोले दागने से केपी शर्मा ओली ने ऐसा सबक सीख लिया है कि वे अब किसी भी तरह से चीन के झांसे में नहीं आने वाले।
हाल ही में जब केपी शर्मा ओली ने नेपाली संसद भंग करवाने का निर्णय लिया, तो चीन की ओर से एक डेलीगेशन उन्हें मनाने के लिए आई, लेकिन ओली ने स्पष्ट तौर पर उनकी बात सुनने से ही मना कर दिया। हालांकि इस बैठक के बारे में ज्यादा बातें सार्वजनिक नहीं हुई, लेकिन मीडिया रिपोर्ट्स की माने तो केपी शर्मा ओली चीन को स्पष्ट शब्दों में कह रहे थे – आपका यहाँ कोई काम नहीं।
हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, “रविवार की शाम को ओली चीन से आए एक संसदीय दल से मिले थे, जिसका नेतृत्व शी जिनपिंग के खास माने जाने वाले CCP सदस्य गुओ येज़हू कर रहे थे। दो घंटे तक चली बातचीत के दौरान वास्तव में क्या बातचीत क्या हुई, इसकी पूरी जानकारी सार्वजनिक नहीं हुई है। परंतु अगर नेपाली सूत्रों का माने, तो चीन को अबकी बार खाली हाथ ही लौटना पड़ा।”
परंतु ऐसा भी क्या हो गया, जिसके कारण ओली अपने संसद भंग करने के निर्णय पर अडिग हैं, और चीन तक की सुनने को तैयार नहीं हैं? इसके पीछे तीन प्रमुख कारण हो सकते हैं, जिनमें यदि एक भी सत्य सिद्ध हुआ, तो किसी को कोई हैरानी नहीं होगी। पहला कारण यह हो सकता है कि सत्र के मध्य में चुनाव कराकर पीएम ओली आंतरिक कलह को खत्म करना चाहते हैं। दूसरा कारण ये भी है कि चीन की बढ़ती गुंडई से ओली तंग आ चुके हैं, और वे अब चीन के चंगुल से पीछा छुड़ाना चाहते हैं। तीसरा कारण ये भी हो सकता है कि इन दिनों नेपाल में वर्तमान सत्ता के विरुद्ध भारी विरोध प्रदर्शन चल रहे हैं, जिसमें नेपाल की हिन्दू राजशाही को बहाल करने की मांगें भी उठी हैं।
इसीलिए ओली ने अब आक्रामक रुख अपनाते हुए चीन को आँखें दिखाना शुरू कर दिया है। हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट में आगे बताया गया, “नेपाल के विशेषज्ञों का मानना है कि बैठक के दौरान CCP का रवैया स्पष्ट था – पीएम ओली की सरकार अपना निर्णय वापिस ले, और बदले में CCP पूर्व प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल ‘प्रचंड’ और माधव नेपाल के विरोध को कुचल देगी और उन्हें अपना पाँच साल का कार्यकाल पूरा करने का अवसर मिल जाएगा।
लेकिन ओली भी अपने निर्णय पर अडिग रहे, कि सुप्रीम कोर्ट ही अब नेपाल का भविष्य तय करेगी। अब तक नेपाल प्रशासन के वर्तमान निर्णय के विरुद्ध 12 से अधिक याचिका दायर की जा चुकी है, जिसपर 5 सदस्यीय पीठ विचार करेगी। इसके अलावा अभी कुछ दिनों पहले जब चीनी राजदूत हू यानकी ने ओली से मुलाकात की, तो उन्होंने दो टूक उत्तर दिया कि वे अपनी कैबिनेट के निर्णय के विरुद्ध कोई कदम नहीं उठायेंगे।”
सच कहें तो ओली ने अपने रुख से स्पष्ट कर दिया कि अब वे पहले वाले ओली नहीं रहे, जो चीन के एक इशारे पर भारत से भिड़ने तक को तैयार हो जाते थे। केपी शर्मा ओली जिस प्रकार से अपने फैसले पे अडिग हैं, उससे वे न सिर्फ जनता में अपनी छवि सुधारना चाहते हैं, बल्कि चीन को भी एक कड़ा संदेश देना चाहते हैं कि चीन अपनी हदों को न भूले।