बिहार में शराबबंदी को राजनीतिक रूप से खूब प्रचारित और प्रसारित किया गया है, लेकिन आज स्थिति यह है कि जिस बिहार में शराबबंदी का कानून लागू है, वहां महाराष्ट्र जैसे राज्य से ज्यादा शराब पी जा रही है। नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे 2019-20 ने बिहार में शराबबंदी की व्यवस्थाओं की पोल खोल दी है, जिसमें काला बाजार में शराब भी बिक रही है और सरकार को राजस्व भी प्राप्त नहीं हो रहा है। वहीं, शराबबंदी के कानून के बावजूद बिहार का प्रशासन शराब की बिक्री पर रोक लगाने में भी विफल साबित हुआ है।
नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे 2019-20 का आंकड़ा बताता है कि बिहार में आज भी 15.5 फ़ीसदी लोग शराब पीते हैं। ये बेहद ही चौंकाने वाली बात है कि महाराष्ट्र में केवल 13 फीसदी लोग ही शराब का सेवन करते हैं। बिहार के ग्रामीण इलाकों में 14.05 फीसदी और शहरी इलाकों में 15.8 फीसदी लोग खुलकर शराब पीते हैं। गौरतलब है कि यह सर्वे 15 साल से अधिक उम्र के लोगों पर किया जाता है। ऐसे में संभावना यह भी है कि 15 से लेकर 17 साल का एक बड़ा नाबालिक वर्ग भी बिहार में धड़ल्ले से शराब के जाम छलका रहा है।
बिहार में शराबबंदी 2016 से लागू है, लेकिन इस सर्वे के आंकड़ों में तब से लेकर अब तक कोई खास बदलाव नहीं आया है। वहां शराबबंदी होने के बावजूद शराब की खपत प्रतिवर्ष बढ़ रही है। महाराष्ट्र जहां किसी भी प्रकार की शराबबंदी नहीं है, वहां शराब का सेवन करने वाले लोगों की संख्या केवल 13 फ़ीसदी है लेकिन एक ऐसा राज्य जहां की सरकार यह दावा करती है कि उसने शराबबंदी को लागू किया है, वहां पर सेवन करने वालों की संख्या 15 फ़ीसदी से ज्यादा हो जाती है जो अपने आप में आश्चर्यजनक और सरकार पर सवाल खड़े करने वाली बात है।
बिहार में शराबबंदी को लेकर नीतीश कुमार ने हमेशा अपनी पीठ ठोकी है। इसके चलते एक बड़ा महिला वर्ग उन्हें वोट भी देने लगा, वोटों की राजनीति के लिए तो नीतीश कुमार का यह फैसला सही साबित हुआ लेकिन कोई बदलाव नहीं आया है। बिहार में शराब का सेवन पहले जैसा ही है। विपक्ष इसे लगातार मुद्दा बनाता रहा है।
नीतीश के सहयोगी जीतन राम मांझी भी शराबबंदी के कानून को लेकर विचार करने की बात कर चुके हैं। बिहार जो हमेशा से ही शराब के सेवन और खपत के मामले में अग्रणी राज्यों में रहा है, उसमें राज्य सरकार की शराबबंदी का भी कोई असर नहीं दिख रहा है। बिहार में शराब को लेकर ये भी कहा जाता था कि राजधानी पटना दुनिया का लास वेगस था। नीतीश ने इस छवि को बदलने की कोशिश की लेकिन उनकी नाकामयाबी सामने आने लगी है।
शराबबंदी के कारण पड़ोसी राज्यों से आने वाली शराब दोगुने दामों में बेची जाती है। इससे फायदा काला बाजारियों के अलावा एक बड़ा मुनाफा पड़ोसी राज्य सरकारें कमाती हैं, जबकि बिहार सरकार के हिस्से शराबबंदी की आलोचनाओं और राजस्व की कमी ही आती है।